संवाद/ विनोद मिश्रा
बांदा। जिलाधिकारी दीपा रंजन प्रधानमंत्री आयुष्मान कार्ड योजना की लक्ष्य के अनुरूप प्रगति न होने पर कड़ा रुख अपनाया हैं। इसके चलते ज़िम्मेदार अधिकारियों में बेतहाशा हड़कंप का आलम हैं। योजना की प्रगति आकड़ों में सुधारने की कवायद तेज हो गई हैं लेकिन धरातलीय स्थिति आकड़ों के बिल्कुल विपरीत हैं। वास्तव में “पात्र लाभार्थियों को आयुष्मान कार्ड बन पाना लोहे के चने चबाना हैं”। “अपात्रों को खेला करके”प्रदेश में “रैंक बढ़ानें का कुचक्र भरा इतिहास रचा” जा रहा है? गजब की स्थिति यह हैं कि डीएम दीपा रंजन को आकड़ों के जरिये कार्ड बनाने की “हाई स्पीड का आंकड़ा” दिखाने में स्वास्थ विभाग से लेकर खंड विकास अधिकारी आदि “कबड्डी -कबड्डी खेलने” लगे हैं।
वास्तविक स्थिति यह हैं कि कार्ड बनने की धीमी गति पर जब हमने ताबड़ -तोड़ खबरें लिखी तो खलबली मच गई! एक सप्ताह के भीतर ही कार्ड बनने का आंकड़ा 25 हजार से बढ़ा कर 38 हजार कर दिया। जबकि बांदा योजना में फिसड्डी एवं नीचे से ऊपर चढ़ने में तीसरे पायदान तक नहीं पहुंच पाया। आपको बता दें कि “डीएम दीपा रंजन नें योजना की धीमी प्रगति” पर “जब कड़ाई का मंजन रगड़ा”तो जिम्मेदारों के “हाथ -पैर फूल गये हैं”।वह “फूले हाथ -पैरों की सेंकाई आकड़ों के आयोडक्स मलहम से” करने लगे हैं।डीएम नें पिछले माह 22 नवंबर से आयुष्मान कार्ड बनाने के लिए पंचायत सहायकों को प्रतिदिन कैंप लगाने के निर्देश दिए थे, लेकिन इन निर्देशों का पालन 90प्रतिशत कहीं नहीं दिखाई दिया! परिणाम “रेत के महल की तरह ढ़ेर हो बहुत आशा जनक” नहीं रहा।
डीएम के निर्देश पर पंचायत सहायकों को दी गई फिंगर प्रिंट डिवाइस के बारे में शिकायतें हैं कि बिना “सुविधा शुल्क के चलती ही नहीं”! आयुष्मान कार्ड बनाने की गति पर “सुविधा शुल्क का सर्प कुंडली सा मारे बैठा हैं”। डीएम दीपा साहिबा की नाराजगी दूर करने के लिये हकीकत के विपरीत “मीडिया को सूचना विभाग के माध्यम से विज्ञप्ति जारी कर दी गई”। उसमें बताया गया कि प्रतिदिन पंचायत सहायकों द्वारा स्वास्थ्य विभाग व पूर्ति विभाग के सहयोग से अच्छी प्रगति की जा रही है। पर “जन्नत की हकीकत कुछ औऱ हैं”। आयुष्मान कार्ड के लिये न तो प्रभावी कैंप लग रहे हैं औऱ न ही ज़िम्मेदार निरीक्षण कर रहे हैं।
डीएम दीपा रंजन यदि जिले में बनें “आयुष्मान कार्डों की जांच करलें” तो “90प्रतिशत आयुष्मान कार्ड अपात्रों के बनें मिलेंगे!” इनके पास मक्के मकान,मोटर साईकिलें ,ट्रैक्टर ,कार,खेत सब हैं। वास्तविक पात्रों को तो कार्ड बन नहीं रहे, क्योंकि पूर्ति विभाग नें उनके बीपीएल कार्ड बनाये नहीं। तहसील से मिलें आय प्रमाण पत्र को आयुष्मान कार्ड के लिये मंजूर नहीं किया जा रहा। आयुष्मान कार्ड बनने में जो प्रगति दर्शाई जा रही हैं उसमें “पात्रों की संख्या नगण्य औऱ अपात्रों का ग्राफ ज्यादा” है।