आगरा , सिकंदरा स्थित नहर वाली मस्जिद के इमाम जुमा हाजी मुहम्मद इक़बाल ने खुतब ए जुमा में कहा कि हम बात करेंगे इंसान की एक ख़ास सिफ़त की , जो कि इंसान के अलावा दुनिया में किसी के पास नहीं है, जबकि इस दुनिया में 87 लाख मख़लूक़ है और ये भी इसी दुनिया का अंदाज़ा है, जबकि अल्लाह ने फ़रमाया : “अगर तुम अल्लाह की नेमतों को गिनने लगो तो उनका शुमार नहीं कर सकोगे।” सूरह नहल आयत नम्बर 18
इन 87 लाख में इंसानों की तादाद 7 अरब है। अब इसी तरह आप बाक़ी चीज़ों को भी लगा लें। मिसाल के तौर पर जानवर, फिर उसमें भी अलग-अलग किसमें। परिंदे, फिर उसमें भी मुख़्तलिफ़ किसमें। यानि हमारा कैलक्यूलेटर फ़ेल हो गया आप हिसाब लगा ही नहीं सकते।
इंसान के अलावा जितनी भी मख़लूक़ हैं बस वो जैसी हैं वैसी ही रहेंगी। पहाड़ है वो पहाड़ ही रहेगा, फूल है वो फूल ही रहेगा, कोई जानवर है वो वही रहेगा।
मतलब ये सब जो तक़दीर अल्लाह ने उनकी लिख दी वो बदल नहीं सकती, अमरूद के दरख़्त पर आम नहीं लग सकता।
हाँ! इन्सान को अल्लाह ने इस पूरी कायनात में सबसे अफ़ज़ल कर दिया। फरिश्तों से सज्दा भी करा दिया। इसीलिए वो तमाम मख़लूक़ में सबसे आगे है।
उसको अल्लाह ने ये क़ुव्वत भी अता की कि वो अगर चाहे तो जो तक़दीर अल्लाह ने उसकी लिखी है, वो उसको भी तब्दील कर सकता है।
कोई भी इन्सान अगर चाहे अपनी किसी ख़राब आदत को बदलना तो वो अपनी आदत बदल सकता है। ये फ़ैसला करने की ताक़त अल्लाह ने उसको दी है। आदत के बदलने से उसमें जो तब्दीली आती है उस से उसका नसीब तक बदल जाता है। मिसाल के तौर पर कोई शख़्स पहले नमाज़ नहीं पड़ता था, फिर उसने नमाज़ पढ़नी शुरू कर दी तो आप महसूस करेंगे कि उसके हालात बदलने शुरू हो गए। लोग भी उसको अब अच्छी नज़र से देखते हैं और उसकी तारीफ़ भी होनी शुरू हो गयी। अब वो अच्छे लोगों से मिलता है तो अल्लाह तआला की मदद भी उसको हासिल हो जाती है, तो अल्लाह ने सिर्फ़ इन्सान को अपनी बेशुमार मख़लूक़ में ये ऐज़ाज़ और इनाम बख़्शा।
क्या हमने कभी इस तरफ़ ध्यान दिया कि ये कितनी बड़ी बात है जो अल्लाह ने सिर्फ़ इन्सान को इस क़ाबिल बनाया कि वो ख़ुद अपनी तक़दीर को बदल सके। अल्लाह ने ख़ुद उसको अपना नाइब बनाया है। ये इन्सान के लिए बहुत बड़े ऐज़ाज़ की बात है। 87 लाख मख़लूक़ एक तरफ़ और अकेला इन्सान एक तरफ़।
ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर से पहले।
खुदा बन्दे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।।
हम अल्लाह का जितना भी शुक्र अदा करें वो कम है। अल्लाह से दुआ है कि अल्लाह हमें अपने शुक्रगुज़ार बंदों में शामिल फरमाए। आमीन।