नई दिल्ली , भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व करते हुए राहुल गाँधी तमिलनाडु के कन्याकुमारी से निकल कर दिल्ली पहुंच चुके है, दिल्ली में कुछ विराम के बाद
ये यात्रा 3 जनवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के लोनी पहुंचेगी जहां से बागपत, शामली और कैराना आएगी. कैराना में राहुल गांधी की अगुवाई में पदयात्रा होगी. इसके बाद यह यात्रा 6 जनवरी को हरियाणा में पहुंचेगी. पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र और अंबाला होते हुए 12 जनवरी को पंजाब पहुंच जाएगी.
लेकिन यात्रा का दूसरा चरण जब शुरू होगा तो राहुल गांधी, कांग्रेस और समूचे विपक्ष की भूमिका आने वाले वक्त में लोकसभा चुनाव 2024 की एक तस्वीर खींचेगी. इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकता का भी कड़ा इम्तेहान होने वाला है.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार अपना आधार मजूबत करती जा रही है. 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रही समाजवादी पार्टी से उसके वोट प्रतिशत में 10 फीसदी का अंतर है.
बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में जिस तरह से गैर-यादव ओबीसी, सवर्णों और गैर-जाटव दलितों का जातीय समीकरण तैयार किया है उसके आगे सपा, बीएसपी और कांग्रेस के अकेले दम पर सामना फिलहाल तो बिलकुल करते नजर नहीं आ रहे हैं.
कांग्रेस की ओर से यूपी की भी विपक्षी पार्टियों को शामिल करने का न्योता भेजा गया है. फिलहाल सपा, आरएलडी और बीएसपी तीनों प्रमुख इसमें आने की मंशा नहीं जता रही हैं. समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने साफ कहा है कि उनको अभी तक कोई आमंत्रण नहीं मिला है.
उत्तर प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा का जो रूट तय किया गया है, दरअसल इसी ने तीनों पार्टियों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है. शामली, कैराना और बागपत के जिन इलाकों से ये यात्रा गुजरेगी, वे मुस्लिम बहुल इलाके हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक चुनाव में एक अहम किरदार निभाता है.
खास बात ये है कि पश्चिमी यूपी में इस वोटबैंक पर सपा, आरएलडी और बहुजन समाज पार्टी तीनों ही दावा करते हैं. ऐसे राहुल गांधी की अगुवाई स्वीकार करके इस यात्रा में शामिल होने का मतलब है कि अपने ही वोटों पर कांग्रेस को स्पेस देना.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से जब इस यात्रा में शामिल होने के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि उनकी पार्टी की विचारधारा अलग है. बीजेपी और कांग्रेस एक ही सोच वाली पार्टी हैं. वहीं सपा के साथ-साथ आरएलडी नेताओं ने भी इस यात्रा से अभी तक दूरी बनाए रखने के संकेत दिए हैं.
यूपी में कभी मुसलमान और दलित कांग्रेस का कोर वोट बैंक हुआ करते थे. लेकिन 90 के दशक में मुस्लिम वोटबैंक समाजवादी पार्टी के साथ चला गया और दलित वोटों पर बीएसपी का एकमुश्त कब्जा हो गया. कांग्रेस दोनों ही समुदाय के वोटरों को अपने पाले में लाने की रणनीति पर काम कर रही है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में ही प्रियंका गांधी की एक टीम दलित बहुल सीटों पर काम कर ही थी जो उस समय मायावती की तीखी बयानबाजी की वजह भी बनी थी.
अब बागपत, कैराना और शामली के मुस्लिम बहुल इलाकों से यात्रा को निकालने का मकसद का भी एक रणनीति का हिस्सा हो सकता है. जिन जगहों से ये यात्रा निकलेगी वहां पर करीब 30 फीसदी वोटर मुस्लिम हैं. ये कांग्रेस के लिए यूपी में बड़ा मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है क्योंकि यूपी में शायद दशकों बाद कांग्रेस बड़ा नेता लोगों से मिलने के लिए ‘यात्रा’ कर रहा हो.
सपा, आरएलडी और बीएसपी को अंदेशा है कि राहुल गांधी की ये यात्रा इन इलाकों में उनकी पकड़ कमजोर कर सकती है और यही वजह है कि तीनों ही पार्टियां इसको तवज्जो देने से बच रही हैं.
80 लोकसभा सीटें वाले राज्य उत्तर प्रदेश में यह यात्रा प्रदेश की विपक्षी पार्टियों के लिए चुनौती, दुविधा और टेंशन तीनों लेकर आ रही है.साल 2024 के लोकसभा चुनाव में जहां संयुक्त विपक्ष के दम पर बीजेपी को चुनौती देने की बात हो रही है, वहीं भारत जोड़ो यात्रा से किनारा करना विपक्षी एकता की रणनीति पर कमज़ोरी नज़र आएगी,
विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी, मुख्य प्रतिद्वंदी सपा से 10 फीसदी ज्यादा वोट पाकर 255 सीटें लेकर आई है. यूपी के इतिहास में यह दशकों बाद हुआ है कि कोई पार्टी ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाई हो.
जिस तरह से बीजेपी के पक्ष में ओबीसी-सवर्णों और दलितों की जातीय गोलबंदी दिखाई दे रही है ऐसे में वोटों के इस अंतर को पाटना फिलहाल किसी एक दल के अकेले के बूते की बात नहीं है.
2019 के लोकसभा चुनाव की तो बीजेपी को यूपी में 49 फीसदी वोट मिले थे. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने मिलकर चुनाव लड़ा था. लेकिन इन पार्टियों के जातीय समीकरण मिलने के बाद भी गठबंधन बीजेपी से 10 फीसदी कम वोट पा सका.