आगरा। सिकंदरा स्थित नहर वाली मस्जिद के खतीब वा इमाम हाजी मुहम्मद इक़बाल ने जुमा के ख़ुत्बे में एक हदीस कि माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है। (सुनन निसाई : 3106) पर बात की.
हाजी इक़बाल ने कहा कि ये हदीस हम सब ने ज़रूर सुनी होगी, लेकिन क्या हमने कभी ये बात जानने की कोशिश की है कि वो कौनसी माँ है कि जिसके पैरों के नीचे जन्नत जैसी मुक़द्दस व पाक चीज़ है। तो उस माँ का रुत्बा कितना बुलन्द होगा।
तो जवाब इसका ये है कि वो माँ जो अपने बच्चों की परवरिश और तरबियत इस तरह करे कि जो तालीम दीन-ए-इस्लाम देता है उसकी रौशनी में बच्चों को सिराते मुस्तक़ीम (सीधी राह) पर डालकर अपना पूरा फ़र्ज़ अदा करती है और ख़ुद भी अपनी ज़िंदगी को इस तरह गुज़ारती है जैसा उसके रब ने उसे हुक्म दिया है।
ये है वो माँ जिसके क़दमों के नीचे अल्लाह ने जन्नत जैसी मुक़द्दस और पाक चीज़ को रखा है।
अब ये माँ के ऊपर है कि वो अपने बच्चों को कौनसे रास्ते पर डालती है, जैसा कि आजकल का माहौल है आप समझ सकते हैं कि बच्चों की तरबियत किस अंदाज़ से हो रही है।
आप सब ने सोशल मीडिया पर ज़रूर देखा होगा कि एक शख़्स जिसके हाथ में माइक होता है वो लोगों से दीनी सवाल पूछता है कि
जिन पैग़म्बरों पर अल्लाह ने किताब उतारी उन के नाम बताओ।
जावाब : ज़ीरो।
बकरीद किस पैग़म्बर की सुन्नत है ?
जवाब : ज़ीरो।
इसी तरह और भी कई सवाल होते हैं लेकिन अफ़सोस कि वो नौजवान कोई भी जवाब नहीं दे पाते। जहाँ ऐसी हालत होगी वहाँ कौन सी जन्नत मिलेगी ? ये सोचने का मक़ाम है।
इसीलिए अगर समाज में एक औरत की तरबियत दीनी अंदाज़ में होती है तो पूरे समाज में बदलाव आता है फिर वो माँ जब अपने बच्चों की भी दीनी माहौल में परवरिश करती है तो एक जागा हुआ दीनी इंसान इस समाज में जन्म लेता है जिसे हम मोमिन कहते हैं। अल्लाह हम सबको मोमिन बनाए। आमीन।