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अल्लाह उस वक़्त तक क़यामत क़ायम नहीं करेंगे जब तक एक भी ईमान वाला होगा- हाजी मुहम्मद इक़बाल

आगरा। सिकंदरा स्थित नहर वाली मस्जिद के खतीब व इमाम जुमा हाजी मुहम्मद इक़बाल ने जुमा के ख़ुत्बे में कहा कि हर शख़्स एक बात कहता नज़र आता है, वो ये कि मैं बहुत परेशान हूँ, मैं पूरी मेहनत करता हूँ लेकिन फिर भी मेरी परेशनी ख़त्म नहीं होती, मेरे पास जमा पूँजी नहीं है। अक्सर इस तरह की बातें सुनने को मिलती हैं। एक तरह से वो अल्लाह तआला से शिकवा-शिकायत कर रहा होता है।
क्या हमने कभी इस बात पर ग़ौर किया है कि हम कितने क़ीमती हैं, और अल्लाह ने हमको किस क़द्र नेमतों से नवाज़ा हुआ है। इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि “अल्लाह उस वक़्त तक क़यामत क़ायम नहीं करेंगे जब तक एक भी ईमान वाला होगा।” ये मुस्लिम शरीफ़ की हदीस नम्बर 375 का मफ़हूम है। अब अंदाज़ा करें कि हम कितने क़ीमती हैं,लेकिन अगर आप क़ीमत सिर्फ़ पैसों से ही समझते हैं तो ग़ौर से इस बात को सुन लें, कुछ चीज़ें आपके सामने रखता हूँ, इससे आपको अंदाज़ा हो जएगा कि पैसों के हिसाब से भी हम कितने क़ीमती हैं।
सबसे पहले हवा, जिसके ज़रिए हम साँस लेते हैं, जोकि अल्लाह की तरफ़ से बिल्कुल मुफ़्त है, जिसके बिना इंसान ज़िंदा नहीं रह सकता अगर साँस जारी रखने के लिए ऑक्सीजन खरीदना पड़े तो रोज़ाना के हिसाब से तक़रीबन 15 हज़ार रुपये देना होगा। कोरोना में हम सबने इसका अंदाज़ा कर लिया। एक गुर्दा 50 लाख, दो गुर्दे इंसान में होते हैं एक करोड़ रुपये हुआ। लिवर कम से कम 20 लाख का। आँख 10 लाख की। दिल की क़ीमत कम से कम 1.5 करोड़। दिमाग़, जिसकी क़ीमत लगाना नामुमकिन है, बेशक़ीमती नेमत है अल्लाह की तरफ़ से, मार्किट में है ही नहीं।
इसके अलावा पूरे जिस्म का अंदाज़ा आप ख़ुद लगा सकते हैं, यानि पैसों के हिसाब से भी हमारी वैल्यू हमारी सोच से भी बहुत ज़्यादा है। इसलिए अल्लाह से शिकायत के बजाए उसका शुक्र अदा करें, हमारे पास इसके अलावा दूसरा ऑप्शन है ही नहीं।
अपने आपको पूरी तरह इस्तेमाल करें और फ़ैसला अल्लाह पर छोड़ दें, और फिर जो रिज़ल्ट आए उसको क़ुबूल करें। ये ही एक मोमिन का काम है। अमीरी-ग़रीबी अल्लाह की तरफ़ से है। सब अमीर नहीं हो सकते और ना सब ग़रीब।
ये अल्लाह का निज़ाम है और वो सबसे बेहतरीन निज़ाम वाला है।
अल्लाह हम सबको अपना शुक्रगुज़ार बनाये। आमीन।