उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सड़क पर बुर्का पहने एक औरत कंधे पर स्विगी बैग लादे हुए नजर आती है. इस औरत की तस्वीर वायरल हुई तो लोग पूछने लगे कि आखिर बुर्का वूमेन कौन है?
दरअसल इस औरत का नाम रिजवाना है, जो लखनऊ के चौक इलाके में रहती है. यह शहर की सड़क पर बुर्के पहने एक औरत कंधे पर स्विगी बैग लादकर घूमते हुए दिख जाएगी. इस औरत की तस्वीर वायरल हुई तो लोग पूछने लगे कि आखिर बुर्का वूमेन कौन है? आइए जानते हैं क्या है बुर्का वूमेन रिजवाना की कहानी-
चौक के जनता नगरी की पतली सकरी गली के अंदर 16 बाई 8 के कमरे में रिजवाना रहती हैं. उसी कमरे में ही शौचालय है. रिजवाना और उनके बच्चे कमरा बंद करके उसमें ही नहाते हैं. कपड़ा फैलाने के लिए भी कोई जगह नहीं है. कमरे के अंदर ही रस्सी बांधकर उसी पर कपड़े सुखाते हैं. इसके अलावा किचन भी उसी कमरे में ही बना है.
आइए रिज़वाना के संघर्ष की कहानी उसकी ही जुबानी सुनते है . रिजवाना ने बताया कि कड़कड़ाती ठंड में वह सुबह 8 बजे ही अपना स्विगी का बैग लेकर काम पर निकल जाती है, वह हर रोज करीब 25 किलोमीटर का सफर तय करती है और बारिश के मौसम में भी वह पैदल ही निकल जाती है, बस हाथ में होता है एक छाता.
रिजवाना बताती है कि उनके पास जो स्विगी कंपनी का बैग है, उसे उसने डालीगंज से 50 रुपए में एक आदमी से खरीदा था ताकि वह अपना सारा बेचने का सामान उसमें रख सके. रिजवाना का कहना है कि वह स्विगी कंपनी में काम नहीं करती है बल्कि डिस्पोजल जैसे प्लास्टिक के चम्मच, प्लेट, पन्नियां, चाय के कप इन सभी को बेचती है.
रिजवाना ने आगे बताया कि फेरी लगाने के साथ ही वह एक घर में खाना बनाने का भी काम करती हैं, जहां से उन्हें 3 हज़ार रुपए मिल जाते हैं, उसकी कुल मासिक आय 5 से 6 हज़ार तक की हो जाती है, लेकिन इस छोटी सी आय से उनका घर नहीं चल पाता है क्योंकि घर में उनको लेकर 4 लोग हैं, दो बेटियां और एक छोटा बेटा.
रिजवाना की एक बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है. रिजवाना ने आगे बताया कि उनके पति पिछले 3 सालों से मिसिंग चल रहे हैं, उनको बहुत ढूंढने की कोशिश की गई लेकिन वह नहीं मिले, वह रिक्शा चलाने का काम करते थे. रिज़वाना हमेशा आस लगाए रहती हैं कि कभी उनके पति वापस आ जाएंगे और सब कुछ ठीक हो जाएगा.
रिजवाना की माने तो उनके पति की दिमाग की हालत थोड़ी गड़बड़ थी, फिलहाल वो अपना गुजारा दूसरे के घर में खाना बनाकर और फेरी लगाकर कर रही है ताकि शाम को उनका चूल्हा चल सके और वह अपने साथ-साथ अपने बच्चों का भी भरण पोषण कर सकें.
रिजवाना ने सरकार से मांग की है कि अगर सरकार उन्हें रहने के लिए घर दे दें तो वह रूखी सूखी चटनी रोटी खाकर और अपना यही काम करके गुजारा कर लेंगी, लेकिन एक घर कि उन्हें आवश्यकता है. रिजवाना ने यह भी बताया कि आसपास के लोग उनके मेहनत की तारीफ करते हैं कि उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया.