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आरएसएस मुख्यालय को किस आधार पर दी सुरक्षा? बुजुर्ग ने आरटीआई में जानकारी मांगी तो पुलिस ने भेजा समन, कोर्ट पहुंचा मामला

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने 61 वर्षीय बुजुर्ग की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार और नागपुर पुलिस को नोटिस जारी किया है। दरअसल, बुजुर्ग ने एक आरटीआई के जरिए महाराष्ट्र सरकार से पूछा था कि किस आधार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नागपुर स्थिति मुख्यालय को सुरक्षा प्रदान की गई और इस पर कितना खर्च आ रहा है।

आरटीआई दाखिल करने वाले 61 वर्षीय ललन किशोर सिंह का दावा है कि वो दिहाड़ी मजदूर हैं, साथ ही एक्टिविस्ट भी हैं। उन्होंने कोर्ट से मांग की है कि उन्हें नागपुर के असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर (ट्रैफिक) द्वारा 26 दिसंबर 2021 को जारी नोटिस रद्द की जाए। याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रोहित देव और जस्टिस वाईवी खोबरागड़े ने सरकार को नोटिस जारी कर दिया है। अगली सुनवाई 24 जनवरी को होगी।

ललन किशोर सिंह के वकील जितेश दुहिलानी का कहना है कि याचिकाकर्ता को अखबार के जरिए पता लगा था कि सरकार, नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय को सुरक्षा प्रदान कर रही है, जबकि संघ एक अपंजीकृत गैर सरकारी संस्था है। इसीलिए उन्होंने जिज्ञासावश 30 जून 2021 को आरटीआई लगाई और महाराष्ट्र के गृह विभाग से पूछा कि आरएसएस मुख्यालय को सुरक्षा प्रदान करने करने का आधार क्या है। इस पर कितना खर्च आ रहा है। बाद में उनकी आरटीआई राज्य के खुफिया विभाग को भेज दिया गया और बाद में वहां से नागपुर पुलिस के पास पहुंचा।

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बाद में नागपुर के डिप्टी पुलिस कमिश्नर (स्पेशल ब्रांच) ने जवाब दिया और कहा कि याचिकाकर्ता ने जो सूचना मांगी है उसे आरटीआई अधिनियम के तहत छूट मिली हुई है और इस तरह की सूचना प्रदान नहीं की जा सकती है। इसी बीच कुछ महीने बाद 26 दिसंबर 2021 को ललन किशोर को नागपुर के असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर (ट्रैफिक) की तरफ से समन भेज दिया गया और आरटीआई के जवाब में संबंध पूछताछ के लिए उपस्थित होने को कहा गया।

याचिकाकर्ता (ललन किशोर) ने कहा कि अगर किसी गैर सरकारी संस्था को राज्य के फंड से सुरक्षा प्रदान की जा रही है तो एक नागरिक होने के नाते उसका अधिकार है कि उसे जानकारी प्रदान की जाए। ऐसा न करना मौलिक अधिकार का हनन है। सिंह के वकील ने कहा कि आरटीआई दाखिल करने के बाद उन्हें जिस तरीके से समन किया गया, वह गैरकानूनी है और मौलिक अधिकारों का हनन भी करता है।

वकील ने कहा कि ललन सिंह ने अपनी आरटीआई में जो जानकारी मांगी थी वह जनहित में है और किसी भी तरह के कानून का उल्लंघन नहीं करती है, इसलिए आरटीआई का जवाब दिए बगैर याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच शुरू करना गैरकानूनी है।