राजनीति

तीसरे मोर्चों का इतिहास संघ को लाभ पहुँचाने का रहा है- शाहनवाज़ आलम

संविधान विरोधी मोर्चा नाम नहीं हो सकता इसलिए इन्हें कांग्रेस विरोधी मोर्चा नाम दिया जाता है

साम्बा. जम्मू कश्मीर . कांग्रेस विरोधी मोर्चों का इतिहास हमेशा से कमज़ोर तबकों को मिले संवैधानिक अधिकारों को छीनने और संघ को लाभ पहुंचाने का रहा है. चूंकि इन मोर्चों का नाम खुलेआम संविधान विरोधी या गरीब विरोधी मोर्चा नहीं हो सकता इसलिए इन्हें कांग्रेस विरोधी मोर्चे का नाम दिया जाता है. ये बातें उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 81 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 1952 के पहले चुनाव में जनसंघ और रामराज परिषद का गठबंधन कांग्रेस के खिलाफ़ बना था जिसके तीन प्रमुख एजेंडे थे- देश में वर्ण व्यवस्था को क़ायम करने के लिए भारतीय संविधान के बजाए मनुस्मृति को लागू करना. दूसरा, नेहरू सरकार द्वारा छुआछूत को अपराध घोषित किए जाने के क़ानून को पलटना और मन्दिरों में दलितों के प्रवेश के अधिकार को खत्म करना. उन्होंने कहा कि कांग्रेस विरोधी यह गठबंधन मुख्य तौर पर दलितों और पिछड़ों को कांग्रेस द्वारा दिये गए अधिकारों को छीनने की कोशिश थी.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 1977 में जनता पार्टी के नाम पर बने कांग्रेस विरोधी गठबंधन का मकसद इंदिरा गांधी सरकार द्वारा राजाओं को भारत में विलय के एवज में दिये जाने वाले मुआवजे यानी प्रिवी पर्स को खत्म कर देने, दलितों को ज़मीन के पट्टे देने, बिहार में एक मुस्लिम अब्दुल गफूर खान को मुख्यमंत्री बना देने, संविधान में 42 वां संशोधन करके सेकुलर और समाजवाद शब्द जोड़ देने से नाराज़ कमज़ोर विरोधी वर्गों के पक्ष में इन क्रांतिकारी बदलावों को पलट देने की कोशिश थी. इस गठबंधन ने गांधी जी की हत्या के बाद अछूत हो चुके संघ की राजनीतिक शाखा भारतीय जनसंघ को राजनीतिक वैधता दे दी थी.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इसीतरह कांग्रेस विरोध के नाम पर 1989 में वीपी सिंह सरकार को भाजपा और वामपंथी दलों ने सहयोग किया था. जिसका लाभ उठाकर भाजपा ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए अभियान चलाया और अंततः मस्जिद का ध्वंस किया गया.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि भाजपा इस प्रयोग को फिर दुहराने की कोशिश के तहत ही अखिलेश यादव, केसीआर और केजरीवाल का गठबंधन बनवा रही है. इससे लोगों को सचेत रहने की ज़रूरत है.