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हज़रत ख़्वाजा सय्यद मुईन उद्दीन हसन संजरी चिश्ती के उर्स पर फातिहा का आयोजन

आगरा। उर्स ख़ाव्वजा ए ख़वाजगान ए ख़्वाजा हज़रत सय्यद मुईन उद्दीन हसन संजरी चिश्ती रज़ि अल्लाह अन्हो के मौक़े पर सज्जादा नशीन हज़रत सय्यद मोहम्मद अजमल अली शाह क़ादरी नियाज़ी की सरपरस्ती मे आस्ताना हज़रत मैकश ख़ानक़ाह ए क़ादरिया नियाज़िया,मेवा कटरा सेव का बाज़ार,आगरा पर
दोपहर 1बजे क़ुल की रस्म अदा की तयगई शाम बाद नमाज़ मग़रिब 6:30 बजे महफिल ए सिमा (क़व्वाली) का आयोजन होगा. रंग और सलाम पेश किया गया सुल्ताने हिन्द हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का परम्परागत उर्स शरीफ जश्ने ग़रीब नवाज़ के रूप में उत्साह के साथ मनाया गया। मुल्क में खुशहाली की दुआ के साथ अकीदतमंदो को तबर्रुक तक्सीम वितरित किया गया।

उर्स मौके पर अपने खिताब में सैय्यद फैज़ अली शाह ने कहा कि हजरत ख़्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती र.ह का मज़ार अजमेर शहर में है। यह माना जाता है कि मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म 638 हिज़री संवत् अर्थात 1143 ई॰ पूर्व पर्शिया के सिस्तान क्षेत्र में हुआ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खादिम भील पूर्वजों के वंसज है। ख़्वाजा नवाब के नाम से भी जाना जाता है। ग़रीब नवाज़ इन्हें लोगों द्वारा दिया गया लक़ब है।
चिश्तिया तरीका अबू इसहाक़ शामी ने ईरान के शहर “चश्त” में शुरू किया था, इस लिए इस तरीक़े को “चश्तिया” या चिश्तिया . तरीका नाम पड गया। लेकिन वह भारत उपखन्ड तक नहीं पहुन्चा था। मोईनुद्दीन चिश्ती साहब ने इस सूफ़ी तरीक़े को भारत उप महाद्वीप या उपखन्ड में स्थापित और प्रचार किया। यह तत्व या तरीक़ा आध्यात्मिक था, भारत भी एक आध्यात्म्कि देश होने के नाते, इस तरीक़े को समझा, स्वागत किया और अपनाया। धार्मिक रूप से यह तरीका बहुत ही शान्तिपूर्वक और धार्मिक विग्नान से भरा होने के कारण भारतीय समाज में इन्के सिश्यगण अधिक हुवे। इन्की चर्चा दूर दूर तक फैली और लोग दूर दूर से इनके दरबार में हाजिर होते, और धार्मिक ग्यान पाते।
इमामुल-मुहद्दिसीन मुहक़्क़ि-ए-इ’ल्म-ए-हदीस मौलवी अ’ब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी र.ह अख़्बारुल-अख़्यार में लिखते हैं “आप बर्र-ए-सग़ीर के बड़े-बड़े मशाइख़ के सर-ए-हल्क़ा और सिल्सिला-ए-चिश्तिया के बानी हैं। बीस साल तक सफ़र और हज़र में ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी (रहि·) की ख़िद्मत में रहे और आपके सोने के लिबास वग़ैरा की निगरानी फ़रमाते रहे|ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी ने इस ख़िद्मत के बा’द ने’मत-ए-ख़िलाफ़त से नवाज़ा।”


हज़रत बख्तियार काकी (र अ) को पत्र लिखकर उन्हें आने के लिये कहें। ख्वाजा साहेब के बाद क़ुरान-ए-पाक, उनका गालिचा और उनके चप्पल काकी (र अ) को दिया गया और कहा “यह विशवास मुहम्म्द (स अ व्) का है, जो मुझे मेरे पीर-ओ-मुर्शिद से मिला हैं, मैं आप पर विशवास करके आप को दे रहा हुँ और उसके बाद उनका हाथ लिया और नभ की ओर देखा और कहा “मैंने तुम्हें अल्लाह पर न्यास्त किया है और तुम्हें यह मौका दिया है उस आदर और सम्मान प्राप्त करने के लिए।” उस के बाद ५ और ६ रजब को ख्वाजा साहेब अपने कमरे के अंदर गए और क़ुरान-ए-पाक पढने लगे, रात भर उनकी आवाज़ सुनाई दी, लेकिन सुबह को आवाज़ सुनाई नहीं दी। जब कमरा खोल कर देखा गया, तब वे स्वर्ग चले गये थे, उनके माथे पर सिर्फ यह पंक्ति चमक रही थी “वे अल्लाह के मित्र थे और इस संसार को अल्लाह का प्रेम पाने के लिए छोड दिया।” उसी रात को काकी (र अ) को मुहम्मद (स अ व्) स्वपन में आए थे और कहा “ख्वाजा साहब अल्लाह के मित्र हैं और मैं उनहें लेने के लिये आया हुँ। उनकी जनाज़े की नमाज़ उन के बड़े पुत्र ख्वाजा फ़क्रुद्दीन (र अ) ने पढाई। हर साल हज़रत के यहाँ उनका उर्स बड़े पैमाने पर होता है।
हुज़ूर ग़रीब नवाज़ की बारगाह में महात्मा गांधी का नज़्राना-ए-अ’क़ीदतः
हुज़ूर ख्वाजा गरीब नवाज़ हिन्दु उल वली सय्यद मुईन उद्दीन चिश्ती के पुरी दुनिया मे करोड़ों मुरीद हैं चिश्ती सिलसिले के ताजदार हैं हिन्दुस्तान को आप पर फ़र्ख़ है सूफी ही नहीं हर हिन्दुस्तानी को ख़्वाजा साहब से अक़ीदत है


गांधी जी जब 1922 में दरगाह पर हाज़िर हुए तो आपने तक़रीर करते हुए कहा कि लोग अगर सच्चे जज़्बे के साथ ख़्वाजा साहिब के दरबार में जाएं तो आज भी उनके बातिन के बहुत सी ख़राबियाँ हमेशा के लिए ना-पैद हो सकती हैं और आदमी अपने अंदर ग़ैर-मा’मूली क़ुव्वत का इद्राक कर सकता है। मुझे ये देखकर दुख होता है कि आ’म तौर पर लोग सिर्फ़ दुनियावी मक़ासिद लेकर ख़्वाजा साहिब के पास जाते हैं और ये नहीं सोचते कि उनकी पूरी ज़िंदगी अंदर की ता’लीम देते गुज़री।उन्होंने रूह की रौशनी को बाक़ी रखने के लिए जो पैग़ाम दिया उसे कोई नहीं सुनता। नहीं तो ये एक दूसरे से लड़ने झगड़ने की बात क्यूँ करते।
ख़्वाजा साहिब ने सच्चाई के हथियार से लोगों का मन जीत लिया। उनकी ज़िंदगी में अ’दम-तशद्दुद की साफ़ झलक थी ।अफ़्सोस हम लोग उनकी ज़िंदगी को अपने लिए आदर्श नहीं बनाते।
इसी तरह जवाहर लाल नेहरू, डॉक्टर राधा कृष्णन, डॉक्टर राजेंद्र प्रशाद वग़ैरा ने बहुत कुछ कहा है जिससे मा’लूम होता है कि सुल्तानों, हुक्मरानों, मज़हबी रहनुमाओं सभी ने आपकी अ’ज़्मत का ऐ’तिराफ़ किया है।
हज़रत शाह नियाज़ बे नियाज़ क़ादरी चिश्ती रज़ि
फरमाते हैं
क़ुर्बे हक़ ऐ नियाज़ गर ख़्वाही
साज़ विर्दे ज़ुबां मुईन उद्दीन

(ये नियाज़ अगर आप हक़ के क़रीब होना चाहते हैं तो अपनी हर सांस के साथ मुईन उद्दीन के नाम जाप करिये)