नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी महिला महाविद्यालय और इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में “भारतीय ज्ञान परंपरा: समय के साथ संवाद” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस अवसर पर पद्मश्री श्री चामू कृष्ण शास्त्री जी, अध्यक्ष, भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, श्री अशोक वाजपेयी, सांसद, राज्यसभा, श्री प्रफुल्ल केतकर जी, संपादक, ऑर्गनाइज़र(साप्ताहिक), प्रो. रजनीश कुमार मिश्र, जेएनयू , प्रो. निरंजन कुमार उपस्थित रहे।
प्राचार्या प्रो. साधना शर्मा, एसपीएम कॉलेज ने अतिथियों का स्वागत करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा की विशिष्ट परंपरा को रेखांकित करते हुए इसे अतीत, वर्तमान और भविष्य की यात्रा बताया।
प्रो. रजनीश कुमार मिश्रा (जेएनयू) ने भारतीय संस्कृति को ज्ञान केंद्रित बताते हुए इसे ‘मैं’ की खोज, ‘आत्मानुसंधान’ की प्रक्रिया के रूप में देखा। इस ज्ञान परंपरा की विशिष्टता ‘भाषा की केन्द्रीयता’ का भी उल्लेख किया।
विशिष्ट अतिथि श्री प्रफुल्ल केतकर ने अपने वक्तव्य में यूरोपीय चश्मे से भारतीय ज्ञान परंपरा को देखने की आदत की व्यर्थता का उल्लेख करते हुए भारत के आध्यात्मिक लोकतंत्र की विशिष्टता को सामने रखते हुए विविधता को भिन्नता से अलग बताया और इसके मूल सूत्र ‘एकात्मकता की खोज’ पर बल दिया।
मुख्य अतिथि श्री अशोक वाजपेयी ने वैदिक परंपरा की विशिष्टता को बताते हुए वर्तमान संदर्भों से विषय को जोड़ा और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों को भारतीय परंपरा में प्रकृति उपासना की ओर ध्यान दिलाते हुए बताया कि हमारी परंपरा में उपासना ही संरक्षण है।
श्री चामू कृष्ण शास्त्री जी ने भारतीय शब्द को केवल भौगोलिक अभिव्यक्ति न मानते हुए इसे एक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति बताया। साथ ही यह प्रश्न भी सामने रखा कि आज कि भारतीय व्यवस्थाओं में भारतीय ज्ञान की परंपरा का कितना अंश है? इन्होंने व्यक्ति जीवन के विकास के साथ ही राष्ट्र जीवन के विकास को एकमात्र लक्ष्य माना।
प्रो. निरंजन कुमार ने ईशोपनिषद की चर्चा करते हुए चर-अचर समस्त संसार में एक ही परमात्मा के व्यक्त होने को भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल मानते हुए संसार की तमाम समस्याओं के समाधान के रूप में देखा।
अंत में कार्यक्रम संयोजक डॉ. वीरेंद्र यादव ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।