आगरा, नहर वाली मस्जिद सिकंदरा के इमाम जुमा हाजी मुहम्मद इक़बाल ने जुमा के ख़ुत्बे में कहा कि एक अहम मसले पर बात करनी है, वो है तौहीन का मसला। हर मुसलमान ये तो जानता है कि इस्लाम की तौहीन नहीं होनी चाहिए, लेकिन ये नहीं जानता कि मुस्लिम की तौहीन भी नहीं होनी चाहिए। इस्लाम की तौहीन पर वो एकदम भड़क जाता है और उसमें अपना ही नुक़सान कर लेता है। मालूम होना चाहिए कि इस्लाम अल्लाह का दीन है, अल्लाह ने इसके लिए हमेशा की अज़मत का फ़ैसला कर रखा है।
किसी शख़्स या किसी जमात के लिए ये मुमकिन नहीं कि वो इस्लाम को नीचा कर सके, इस्लाम की हिफ़ाज़त करने वाला ख़ुद अल्लाह है और अल्लाह से बड़ा कौन हिफ़ाज़त करने वाला हो सकता है? ये बात हमको ज़ेहेन में रखनी चाहिए, असल बात मुस्लिम की तौहीन का मामला है तो इसके ज़िम्मेदार ख़ुद मुसलमान हैं। हम रोज़ एक-दूसरे की तौहीन करते रहते हैं और कोई मुसलमान नहीं बोलता, जबकि ज़रूरत इस बात की है कि ऐसा करने वाले को फ़ौरन रोकना चाहिए। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो मुस्लिम समाज अल्लाह की रहमतों से दूर हो जाएगा। ये बहुत बड़ा नुक़सान है लेकिन हम उसकी परवाह नहीं करते। ख़ूब समझ लें कि शरीअत में मोमिन का इकराम फ़र्ज़ है (सहीह मुस्लिम, हदीस नम्बर 2162) और मोमिन की तौहीन हराम है। (मुसनद अहमद, हदीस नम्बर 7727)। इसीलिए हमें इस बात का बहुत ख़याल रखना चाहिए कि किसी बात पर भड़क जाना ख़ुद अपना नुक़सान करना है। ज़रूरत है समझदारी से किसी मसले को हल करने की।
अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में एक पढ़े-लिखे शख़्स ने जिस तरह एक आलिमे दीन पर तूफ़ान बरपा किया वो मज़म्मत के क़ाबिल है, लेकिन अफ़सोस! किसी तंज़ीम ने आगे बढ़कर उस शख़्स पर गिरफ़्त नहीं की, क्या किसी को मालूम नहीं कि मुस्लिम की तौहीन हराम है? इख़्तिलाफ़ हो सकता है, इसका हक़ सबको है लेकिन मुस्लिम की तौहीन की इजाज़त नहीं। एक मोमिन की हुरमत काबा की हुरमत से ज़्यादा है। (तिर्मिज़ी, हदीस नम्बर 2032)
पढ़-लिखकर आप ‘एडवोकेट’ तो बन सकते हैं लेकिन क्या आपने इस्लाम की तालीमात को पढ़कर ‘मुस्लिम ऐडवोकेट’ बनने की कोशिश की? काश ऐसा होता तो आज मुस्लिम समाज की हालत ये नहीं होती। काबा के रब की क़सम अगर मुसलमान आपस में एक दूसरे का एहतराम करने लगें तो अल्लाह की मदद ज़रूर आएगी। मैं उन मोहतरम ‘एडवोकेट’ से अपील करता हूँ कि जिस तरह इन्होंने खुले आम तौहीन की है, उसी तरह वो एहतराम का भी ऐलान फरमाएं, इससे उनका क़द बढ़ेगा। अल्लाह तो माफ़ी को पसंद करने वाला है।
अल्लाह हम सबको एक दूसरे का एहतराम करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये। आमीन।