शहरीकरण दुनिया में एक बड़ा दिलचस्प काम है जिसमें आर्किटेक्चर, अर्बन प्लानिंग, कारोबार, पर्यावरण, और जीवनशैली जैसे दर्जनों पहलुओं की जगह रहती है, और इन सबको ध्यान में रखकर शहरी योजनाएं बनाई जाती हैं। अब आज शहरों के इर्द-गिर्द नए शहर का विस्तार देखना हो तो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगकर बने नए रायपुर को देखा जा सकता है जो कि खेतों को खाली करवाकर बनाया गया नया शहर है। हिन्दुस्तान में किसी पूरे के पूरे शहर को किसी ने एक योजना के तहत बनाया हो, इसकी एक बड़ी मिसाल चंडीगढ़ है जिसे नेहरू के वक्त एक फ्रेंच आर्किटेक्ट ने बनाया था। गुजरात में अहमदाबाद के पास सरकारी राजधानी गांधीनगर भी एक बसाया हुआ शहर या इलाका है, और भी देश में कुछ जगहों पर बड़ी कॉलोनी या छोटे शहर बनाए गए हैं।
लेकिन आज इस मुद्दे पर चर्चा की एक बड़ी वजह है। अपनी संपन्नता के लिए जाने जा रहे सऊदी अरब में एक इमारत वाला एक शहर बनाने की योजना शुरू हुई है। यह पूरे का पूरा शहर नए लोगों की बसाहट का होगा, और इससे इस देश की आबादी की शक्ल भी बदल जाएगी जो कि आज साढ़े तीन करोड़ है, और इस एक इमारत वाले शहर की आबादी 90 लाख होने जा रही है। इससे सऊदी अरब की आबादी सवा गुना हो जाएगी। अब एक छोटा देश किसी एक इमारत के भरोसे न्यूयॉर्क शहर जितना एक शहर बसाने का यह सपना छोटा नहीं है, और जब देश ने तय कर लिया है कि यह इमारत बनानी है, तो फिर यह सपना न होकर एक योजना है। अब इस एक इमारत की आबादी का एक हिन्दुस्तानी अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसमें अहमदाबाद शहर से अधिक लोग रहेंगे।
अब इस इमारत को देखें तो यह दो सौ मीटर (656 फीट) चौड़ी, पांच सौ मीटर (1640 फीट) ऊंची, और 170 किलोमीटर (105 मील) लंबी रहेगी। हिन्दुस्तान के दो शहरों के बीच जैसी दूरी रहती है, उस किस्म की 170 किलोमीटर लंबी यह अकेली एक इमारत रहेगी, यह लंबाई विमान से जाने पर ठीक भोपाल से इंदौर जितनी है। इसकी ऊंचाई को देखें तो यह एक सौ पच्चीस मंजिल की इमारत से ऊंची रहेगी। इसकी चौड़ाई का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि इसमें अगल-बगल तीन फुटबॉल मैदान बन सकते हैं, और लंबाई तो 170 किलोमीटर है ही।
यह इमारत रेगिस्तान का सीना चीरते हुए, पहाड़ों से गुजरती हुई, समंदर को छूती हुई रहेगी, और इसे इस तरह से सौर ऊर्जा पर चलने वाला बनाया जा रहा है कि 90 लाख आबादी भी धरती पर कोई बोझ नहीं बढ़ाएगी। पूरी इमारत कांच से घिरी रहेगी, और अपनी बिजली खुद पैदा करेगी। इसका नाम द लाईन रखा गया है क्योंकि यह धरती पर एक लकीर की तरह दिखेगी। अभी ऐसा माना जा रहा है कि यह धरती के किसी भी हिस्से, किसी भी शहर के मुकाबले कम जमीन का इस्तेमाल करेगी, और बहुत बड़ी संख्या में लोगों के लिए एक पूरी दुनिया ही बना देगी। इसमें एयरपोर्ट भी होगा, बंदरगाह भी रहेंगे, और औद्योगिक इलाके भी रहेंगे। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि कारों से मुक्त यह शहर एक अलग तेज रफ्तार बिजली-गाडिय़ों का रहेगा जिसमें 170 किलोमीटर का सफर भी 20 मिनट में पूरा किया जा सकेगा। लोगों को बिना प्रदूषण एक सेहतमंद जिंदगी उपलब्ध कराने के लिए बन रहा यह शहर नई से नई तकनीक को लेकर चलेगा, और धरती पर प्रति व्यक्ति पडऩे वाले बोझ में यह बहुत कमी भी करेगा।
इस प्रोजेक्ट पर आई एक रिपोर्ट याद करती है कि एक लकीर की तरह बनाए गए शहर की योजना बहुत नई भी नहीं है, 1982 में स्पेन के एक शहरी योजनाकार ने ऐसी एक योजना बनाई थी जिसमें बिजली, पानी, गैस और ट्रांसपोर्ट सीधे एक लंबाई में होने से उन सबमें किफायत रहनी थी। लेकिन इस बार लोगों की एक फिक्र यह भी है कि 170 किलोमीटर लंबी और 500 मीटर ऊंची कांच से घिरी यह इमारत इस देश के इस पूरे हिस्से में किस तरह पर्यावरण को प्रभावित करेगी?
लेकिन बात सिर्फ पर्यावरण और प्रदूषण की नहीं है, इस तरह एक बक्से में रहने के सामाजिक और मानसिक प्रभाव क्या होंगे, यह भी एक दिलचस्प अध्ययन होगा। क्या यह संपन्न लोगों की एक ऐसी आत्मकेन्द्रित इमारत हो जाएगी जो कि किसी संपन्न टापू की तरह बाकी दुनिया से कटी हुई रहेगी? ऐसे दर्जनों सवाल अभी सामने आएंगे, और जो लोग इस शहर में बसेंगे, बसने के लिए दुनिया के दूसरे देशों से यहां आएंगे, उनके आर्थिक स्तर, उनकी राजनीतिक सोच, उनकी पसंद-नापसंद से यह शहर एक अलग किस्म का समाज भी बनेगा, वह कैसा रहेगा इसका अंदाज आज आसान नहीं है। लेकिन हम हिन्दुस्तान के अलग-अलग शहरों में बनने वाली ऐसी संपन्न कॉलोनियों को देख रहे हैं जिनमें सिर्फ करोड़पति ही रह सकते हैं, लेकिन उसमें फर्क यही रहता है कि यहां रहने से परे उन्हें रोजाना बाहर जाना ही होता है, और वे बाकी दुनिया से जुड़े रहते हैं। अब अगर कोई द लाईन नाम की इस दुनिया के भीतर ही रहते चले जाएं, और बाहर ही न निकलें, तो क्या होगा? फिलहाल यह प्रोजेक्ट बनाने वाले लोगों का यह कहना है कि यहां रहने वाले लोग इमारत के भीतर साइकिलों पर भी चलेंगे, और कुदरत का कोई न कोई हिस्सा उनके लिए दो मिनट की दूरी से भी कम पर रहेगा।
शहरी ढांचों में प्रति व्यक्ति रहने-खाने और काम करने के लिए जितनी जमीन लगती है, जितनी भवन निर्माण सामग्री लगती है, उससे इस इलाके में बहुत ही कम जगह और सामग्री लगेगी। नब्बे लाख लोग कुल 34 वर्ग किलोमीटर जमीन पर रहेंगे जो कि कुल 13 वर्ग मील होती है। साथ ही यह किसी भी तरह के पेट्रोलियम या कोयले के इस्तेमाल से परे रहेगी, और सिर्फ सौर ऊर्जा जैसी तकनीक पर चलेगी। दुनिया में आज तक न तो इस किस्म के आकार का, और न ही इतना बड़ा कोई शहर बसा है, और इतनी बड़ी इमारत की तो कल्पना भी इसके पहले सामने नहीं आई थी। यह योजना और तकनीक का, कारोबार और बसाहट का एक बिल्कुल ही नया प्रयोग होने जा रहा है, और प्रति व्यक्ति सबसे कम जमीन का इस्तेमाल करके, प्रति व्यक्ति सबसे अधिक आकार का शहरी ढांचा देना अपने आपमें एक अनोखा प्रयोग है। आज की यहां की चर्चा सिर्फ लोगों के सोचने के लिए है कि दुनिया किस तरह की बनने जा रही है।