संवाद- सादिक जलाल (8800785167 )
नई दिल्ली। भगवान झूलेलाल जी का जन्मदिन समारोह मनाया जाएगा इस विषय पर सिंधु समाज दिल्ली के महासचिव श्री नरेश बेलानी जी ने पत्रकार वार्ता में पत्रकारों को बताया झूलेलाल सिन्धी हिन्दुओं के उपास्य देव हैं जिन्हें इष्ट देव कहा जाता है। उनके उपासक उन्हें वरुण (जल देवता) का अवतार मानते हैं। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज भी पूजता है। भगवान झूलेलाल के अवतरण दिवस को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाते है। कुछ विद्वानों के अनुसार सिंध का शासक मिरखशाह अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा था जिसके कारण सिंधी समाज ने सिंधु नदी के किनारे 40 दिनों तक कठिन जप, तप और साधना की। तब सिंधु नदी में से एक बहुत बड़े नर मत्स्य पर बैठे हुए भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और कहा मैं चैत्र नवरातों में जन्म लेकर मिरखशाह के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाउंगा। चैत्र माह की द्वितीया को एक बालक ने अरोड़वंशी ठक्कर परिवार में जन्म लिया जिसका नाम उडेरोलाल रखा गया। अपने चमत्कारों के कारण बाद में उन्हें झूलेलाल, लालसांई, के नाम से सिंधी समाज और ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से मुसलमान भी पूजने लगे। चेटीचंड के दिन श्रद्धालु बहिराणा साहिब मनाते हैं। शोभा यात्रा में छेज (जो कि गुजरात के डांडिया की तरह लोकनृत्य होता है) के साथ झूलेलाल की महिमा के गीत गाते हैं। ताहिरी (मीठे चावल), छोले (उबले नमकीन चने) और शरबत का प्रसाद बांटा जाता है। शाम को बहिराणा साहिब का विसर्जन कर दिया जाता है।
भगवान झूलेलाल जी का जन्मदिन समारोह कार्यक्रम की योजना के वारे में विस्तार से सिंधु कौंसिल ऑफ़ इंडिया दिल्ली के अध्यक्ष श्री अशोक लालवानी जी ने पत्रकार वार्ता में पत्रकारों को बताया भगवान झूलेलाल जी का जन्मदिन समारोह वीरवार 23 मार्च 2023 को उनके जन्म दिन पर मनाया जा रहा है इस कार्यक्रम में भव्य शोभा यात्रा धूमधाम के साथ सिंधी समाज मंदिर से आरम्भ होकर पुराने व् नए राजेंदर नगर से होते हुए सिंधी समाज भवन में समाप्त होगी। शोभा यात्रा का सिंधी समाज भवन में स्वागत उपरान्त भगवान झूलेलाल जी की मूर्ति को वजीराबाद के यमुना तट पर पहुंचकर फिर उनका विसर्जन वहां कर दिया जाएगा।
श्री अशोक लालवानी ने पत्रकारों को बताया यमुना नदी में प्रदूषण ना हो इसलिए सिंधी समाज भगवान झूलेलाल जी की मूर्ति को खाने के समान से बनाया जाता है ताकि विसर्जन के बाद यमुना नदी की मछलियां उसे खा सके।