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अहमद हसन ख़ान
रामपुर सहसवान घराने का बेमिसाल तबला वादक


उर्दू के मशहूर शायर अल्लामा इक़बाल ने यह शेअर:
मैं कहाँ रुकता हूँ अर्श ओ फ़र्श की आवाज़ से
मुझ को जाना है बहुत ऊंचा हद ए परवाज़ से
अपने “शाहीन” के लिए कहे थे, लेकिन यह शेअर इस समय “अहमद हसन ख़ान” के लिए भी अनुकूल है।
रामपुर सहसवान घराना शास्त्रीय संगीत में अपनी प्रतिभा और कला प्रदर्शन के लिए देश भर में प्रसिद्ध है। इस घराने की स्थापना इनायत हुसैन ख़ान ने की थी, एवं इसके प्रचार-प्रसार में उस्ताद मुश्ताक हुसैन ख़ान की सेवाएँ सराहनीय हैं। जिस के बदले भारत सरकार ने उन्हें 1957ई में पहला पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था। आजकल शास्त्रीय संगीत के प्रति लोगों के सोच में परिवर्तन आया है, लेकिन देश में आज भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो शास्त्रीय संगीत की सेवा कर रहा है और वह इसे अपना कर्तव्य भी समझता है, उनमें दर्शक और श्रोता भी हैं और कलाकार भी। यह कहा जा सकता है कि शास्त्रीय संगीत के प्रति लोगों का रुझान कम हुआ है, लेकिन यदि यह कहा जाए कि शास्त्रीय संगीत लुप्त हो जाएगा, यह असंभव है। इस का कारण यह है कि नई पीढ़ी भी रफ़्ता रफ़्ता अब शास्त्रीय संगीत की तरफ आ रही है. जिसे नेक शगुन समझना चाहिए।
इसी तरह रामपुर सहसवान घराना अपने पुरखों के मिशन को पूरा करने के लिए अग्रिम पंक्ति पर खड़ा नज़र आता है। और इस की सेवा कर के अपनी मिसाल क़ाएमकर रहा है। इसी घराने के अहमद हसन ख़ान हैं, जिन का जन्म 26 अगस्त 2003 को दिल्ली में हुआ।
उनके पूर्वज यूपी के रामपुर के रहने वाले हैं, रामपुर सहसवान घराने के संस्थापक उस्ताद इनायत हुसैन ख़ान और मरहूम उस्ताद मुश्ताक हुसैन ख़ान रामपुर नावाब के सरकारी मुलाज़िम थे। जब रामपुर स्टेट ख़त्म हो गया तो आजीविका की तलाश और शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने और उसकी सेवा के लिए दिल्ली आ गए।
यह अपने पूर्वज की परंपराओं की शमा जलाये होए हैं, और उन के मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं. इनके घर का वातावरण संगीतमय है, बल्कि संगीतमय घराना इनकी विशेषता में शामिल है। जब से होश की आँखें खोली, घर में ‘सारे गामा पा’ की आवाजें कानों से टकराईं, घर के सभी सदस्य संगीत से जुड़े होए हैं। इसी जुड़ाव के कारण उन्हें तबला वादन और अन्य वाद्य यंत्रों में रुचि हो गयीम, और तबला वादन को अपना लिया, यद्यपि ईन को मॉडलिंग से भी रूचि है, किन्तु मॉडलिंग पर ज़्यादा तवज्जुह ना दे कर अपने पूर्वजों के पेशे को चुना। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर में माता-पिता से प्राप्त की, बाद में उन्होंने अपने चाचा के पास शास्त्रीय संगीत की तालीम हासिल की और शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सीखने में समय बिताया। लेकिन शास्त्रीय संगीत की तालीम और रियाज़ का सिलसिला जारी है।
इतनी कम उम्र में एक तबला वादक के रूप में वह वर्तमान में जिस ऊँचाइयों के शिखर पर हैं ,यह बताने के लिए काफी है कि इन्हों ने शास्त्रीय संगीत के रियाज़ और कड़ी मेहनत के लिए पर्याप्त समय बिताया है और खुद को इस ले लिए समर्पित कर दिया है। इसकी एक वजह भी है. उनके परिवार के सभी सदस्य शास्त्रीय संगीत से ताल्लुक रखते हैं , बल्कि उनकी आजीविका ‘संगीत’ ही है।
फ़ारसी में एक कहावत है “पिदरम सुल्तान बूद” जिसका अर्थ है “मेरे पूर्वज राजा थे” यह कहावत उर्दू या फारसी में घमंड दिखने के मौक़े पर बोला जाता है , किन्तु यह फ़ारसी कहावत उन पर लागू नहीं होती, यह अलग बात है कि उनके दादा मरहूम उस्ताद तक़ी ख़ान और परदादा मरहूम उस्ताद मुश्ताक हुसैन ख़ान शास्त्रीय संगीत में अपनी एक अलग पहचान रखते थे, लेकिन उन्होंने कभी इस पुश्तैनी रिश्ते का घमंड नहीं किया अपने पाँव ज़मीन पर ही रखे और रियाज़ अथवा सख़्त मेहनत को ही अपने लिए ज़रूरी माना।
जिस तरह से उनकी संगीत यात्रा शुरू हुई है वह क़बिल -ए-तारीफ़ है, ऐसा नहीं है कि उन्होंने एक ही बार में मैदान जीत लिया हो, बल्कि धीरे-धीरे वह ऊंचाइयों को छू रहे हैं। वह अपने परिवार के अन्य कलाकारों के साथ मंच शेयर करते हैं , जिसके कारण शास्त्रीय संगीत में रुचि रखने वालों के बीच उनकी प्रतिष्ठा प्रभावी रूप से स्थापित हो रही है।
यह अहमद हसन ख़ान की शास्त्रीय संगीत यात्रा की शुरुआत है। और जिस प्रभावशाली तरीक़े से इस यात्रा की शुरुआत हुई है, शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक नए सितारे के आगमन की घोषणा भी है। शास्त्रीय संगीत को आने वाले कल भविष्य में एक बड़ा कलाकार मिलने की आशा है। अल्लामा इक़बाल ने सही कहा कि:
मैं कहाँ रुकता हूँ अर्श ओ फ़र्श की आवाज़ से
मुझ को जाना है बहुत ऊंचा हद ए परवाज़ से
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लेख: अहमद फ़ाख़िर, नई दिल्ली
Email: ahmedfaakhir9818@gmail.com


(उर्दू लेख से हिन्दी में अनुवाद)