आगरा। सिकंदरा स्थित नहर वाली मस्जिद के ख़तीब व इमाम जुमा हाजी मुहम्मद इक़बाल में जुमा के ख़ुत्बे में कहा कि रमज़ान में ऐसा क्या करें कि अल्लाह हमसे राज़ी हो जाए, तो इसका एक सबसे आसान हल है कि इस रमज़ान को हम अपनी ज़िन्दगी का आख़िरी रमज़ान मानें। अब तक हमने बहुत से रमज़ान गुज़ारे हैं अपनी ज़िन्दगी में, लेकिन हमारे अंदर कोई तब्दीली नहीं आई। तो इसका मतलब है कि हमने सिर्फ़ रस्म अदा की है। हक़ीक़त में जो रमज़ान का हक़ था वो सही तरीक़े पर अदा नहीं कर सके। अब अल्लाह ने हमें एक और मौक़ा दिया है इसीलिए इस मौके को ग़नीमत जानते हुए इस रमज़ान को आख़िरी मौका समझें और इस तरह इसको गुज़ारें कि अब इसके बाद मालूम नहीं कि ज़िन्दगी में रमज़ान मुझे मिले या न मिले, कब तक की ज़िन्दगी है ये किसी को नहीं मालूम। कई लोग जो पिछले रमज़ान में हमारे साथ थे वो इस बार नहीं हैं, वो अपने रब के पास जा चुके। क्या पता हम में से कौन आगे आने वाले रमज़ान तक ज़िन्दा रहे या रब से जा मिले ? जब ये किसी को मालूम ही नहीं तो फिर इस मौके को आख़िरी मौका समझें। इसीलिए इसमें बिल्कुल लापरवाई न करें। रब को राज़ी करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करें। अपनी पिछली ज़िन्दगी को सामने रखकर अल्लाह से माफ़ी मांगें, अपने गुनाहों से तौबा करें और आइन्दा गुनाह न करने का पक्का इरादा करें। अपने किए पर शर्मिंदा हों। मेरा रब बहुत रहीम है, पूरी उम्मीद है वो ज़रूर माफ़ करेगा। इन-शा-अल्लाह।
सूरह बक़रह आयत नं. 183 में अल्लाह ने ईमान वालों को मुख़ातिब किया है और कहा है, ‘‘ऐ ईमान वालों तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किए गए हैं, जैसे तुमसे पहले लोगों पर फ़र्ज़ किए गए थे। ताकि तुम परहेज़गार बनो।’’
यहां ख़ास तौर पर सिर्फ़ ईमान वालों से अल्लाह ने फ़रमाया है, अब ये ईमान वालों की ज़िम्मेदारी है कि अपने रब का हुक्म मानें।
और रमज़ान के मुबारक महीने में अपने रब को राज़ी करें और जन्नत के हक़दारों में अपना नाम शामिल करा लें। ये आख़िरी मौका किसी भी तरह बरबाद न करें क्योंकि हमें नहीं मालूम कि आगे आने वाले रमज़ान तक हम ज़िन्दा रहें या अपने रब से जा मिलें। जिस तरह इस मरतबा कई लोग हमारे साथ नहीं हैं क्या पता आगे आने वाले रमज़ान में हमें भी लोग याद कर रहे हों। ईमान वालों ! इस रमज़ान में अपने रब को मना लो और अपनी आख़िरत को कामयाब कर लो।
अल्लाह मुझे भी और आप सबको भी तौफ़ीक़ अता फ़रमाए कि हम अपने रब को राज़ी कर लें। आमीन।