अन्य

पहला रोज़ा गौस पाक शेखअब्दुल क़ादिर जीलानी की पैदाइश का दिन

आगरा। रमज़ान की पहली तारीख़ यानि पहले रोज़े को हज़रत हुज़ूर ग़ौस आज़म के नाम से मशहूर और क़ादरिया सूफ़ी परंपरा की नींव रखने वाली शेख़ अब्दुल क़ादिर, जीलानी का जन्म पहला रमजान ( पहला रोजा ) बरोज़ जुमा सन् 470 हिजरी मुताबिक सन् 1075 ईस्वी. गीलान कस्बे में हुआ। आपका नाम सैयद अब्दुल कादिर नाम रखा गया आपका लकब मुईनुद्दीन गौसे आज़म और महबूबे सुब्हानी है आपने 91 साल की उम्र पाई और 11 रबी उल आखिर सन् 561 हिजरी को इस दुनिया फानी से आलमे जावदानी की राह ली।

 

 

पीराने पीर हुजूर सैयदना गौसे आजम शेख मुईनुद्दीन जीलानी रहमतुल्लाह अलैहे ( sheikh abdul qadir jilani ) का सिलसिलाए नसब वालिद मौहतरम की जानिब से हज़रत सैयदना इमाम हसन इब्ने अली रहमतुल्लाह अलैहे से मिलता है और वालिदा माज़दा की तरफ से आपका सिलसिलाए नसब सैयदना इमाम हुसैन शहीदाने कर्बला रदियल्लाहो से मिलता है।

इसलिए आपको हसनी और हुसैनी कहा जाता हैँ आप मादर जाद वली थे इसलिए आपकी विलायत बचपन ही से जाहिर होने लगी एक बार लोगों ने सरकार गौसे आजम रदियल्लाहो अन्हो से दरयाफ्त किया कि आपको अपनी विलायत का इल्म कब हुआ । तो आपने फरमाया कि दस बरस की उम्र में जब मदरसे में पढने जाता था तो एक ग़ैबी आवाज़ आती थी जिसको तमाम अहले मकतब सुना करते थे इफसहू ले वली यल्लाह” यअनी अल्लाह के वली के लिए जगह कर दो।

हुजूर गौसे आजम रहमतुल्लाह अलैहे ( sheikh abdul qadir jilani ) ऐसे मुत्तकी और परहेज़गार थे कि उनकी तक़वा का अन्दाजा कौन कर सक्ता है ! आप खुद इरशाद फरमाते हैँ कि मैं बराबर चालीस बरस तक इशा के वजू से फज़र की नमाज़ पढता रहा और पन्द्रह साल तक मुसलसल नमाज़ इशा के बाद सें सुबह तक रोजाना बिला नागा एक कुरआन पाक की तिलाबत करता रहा अल्लाहो अकबर हुजूर गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैहे फरमाते हैं कि शुरू में मेरी तकरीर में बहुत कम लोग हाजिर होते थे ।

लेकिन सन् 551 हिजरी माह शव्वाल में शम्बा के रोज़ जौहर की नमाज़ के क़ब्ल ! हुजूर सलल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुझें अपने दीदार पुर अनवार से मुशर्रफ फरमाया और कमाल शफ़क़त के साथ इरशाद फरमाया- ऐ मेरे प्यारे फरज़न्द तुम वाज क्यों नहीं करते मैने अर्ज किया-या रसूलल्लाह सलल्लाहो अलेहे वसल्लम मैं एक अजीम शख्स हूँ फसहाए बग़दाद के सामने किस तरह वाज कहूं तो हुजूर ने इरशाद फ़रमाया ”अच्छा तुम अपना मुंह खोलो मैंने अपना मुंह खोला तो आकाए दो जहाँ ने मेरे मुंह मेँ अपना लुआब मुबारक सात मर्तबा डाला और फरमाया-तुम हिकमत और बेहतरीन नसीहत के साथ लोगों क्रो खुदा के रास्ते की तरफ बुलाओ ।

फिर मै जौहर की नमाज़ पढ़कर बैठा तो हज़रत अली रदियल्लाहो अन्हो की जियारत से मुशर्रफ हुआ तो उन्होंने कहा-ऐ फरज़न्द वाज क्यों नहीं करते मैँने अर्ज किया आका मेरी ज़बान नहीं खुलती तो फ़रमाया अपना मुंह खौल मैने मुंह खोला तो आपने अपना लुआबे दहन मेरे मुंह मेँ 6 बार डाला मैने अर्ज किया कि-हुजूर सात बार क्यों नहीं तो आपने फ़रमाया -आदाब रसूले अकरसत स्वलल्लाहो अलेहे वसल्लम की पासदारी है यह कहकर आप गायब हो गए ।