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राहुल गांधी को सजा

राहुल गांधी को 2019 के चुनावों के दौरान कर्नाटक में दिए एक बयान पर अब सूरत के सत्र न्यायालय ने दो साल की सजा सुनाई है। राहुल गांधी ने नीरव मोदी और ललित मोदी जैसे भगोड़ों का जिक्र करते हुए कहा था कि सभी चोरों का सरनेम यानी उपनाम मोदी क्यों होता है। इस बयान पर राहुल गांधी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत केस दर्ज किया गया था। चार साल पुराने इस आपराधिक मानहानि प्रकरण में अब राहुल गांधी को सजा सुनाई गई, हालांकि उन्हें अदालत से जमानत भी मिल गई, साथ ही ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए 30 दिनों का समय दिया गया है। इस घटना के बाद देश में राजनीतिक हलचल का तेज होना स्वाभाविक है। क्योंकि एक पक्ष में राहुल गांधी हैं और दूसरे पक्ष में भाजपा।
दरअसल भाजपा के लिए राहुल गांधी एक ऐसी उलझन बन चुके हैं, जिनसे किस तरह पार पाया जाए, यह भाजपा समझ ही नहीं पा रही है। उन पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाए गए, छवि खराब करने में मीडिया का सहारा लिया गया, उनके परिवार पर, परिजनों पर अशोभनीय टिप्पणियों के साथ निम्नस्तर के आरोप लगाए गए, लेकिन राहुल गांधी किसी भी प्रहार से जरा सा भी विचलित नजर नहीं आ रहे हैं। और ये एक-दो बरस की बात नहीं है, पिछले 20 सालों से ऐसा ही चलता आ रहा है और राहुल गांधी व्यक्तिगत, राजनैतिक तमाम तरह के हमलों का सामना करते हुए अपनी बात बेधड़क रखते चले जा रहे हैं। हाल ही में उन्होंने 4 हजार किमी की लंबी पदयात्रा करने का अद्भुत और लगभग असंभव काम संभव कर दिखाया। इस पूरी यात्रा के दौरान भाजपा के उन पर हमले जारी रहे। इससे पहले नेशनल हेराल्ड मामले में उनसे कई घंटों की लंबी पूछताछ हुई, उसमें भी राहुल गांधी ने धैर्यपूर्वक सारे सवालों का जवाब दिया, जांच एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग किया।
संसद में उनसे माफी की मांग पर रोज सत्र ठप्प करवाए जा रहे हैं, तब भी राहुल गांधी अपनी बात पर अडिग हैं और माफी मांगने तैयार नहीं। उनके खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने की तैयारी भी भाजपा कर रही है, जिससे उनकी लोकसभा सदस्यता जा सकती है। और अब सूरत की अदालत से दो साल की सजा का फैसला आ गया है। जिसके बाद फिर सवाल उठने लगे हैं कि क्या इससे राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म हो जाएगी। क्योंकि जनप्रतिनिधि कानून के मुताबिक अगर किसी सांसद या विधायक को 2 या 2 साल से अधिक की सजा सुनाई जाती है, तो उनकी सदस्यता रद्द हो जाती है साथ ही छह साल के लिए वे चुनाव भी नहीं लड़ सकते। राहुल गांधी को अब इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट में अपील कर, इस फैसले पर स्टे लेना होगा। यानी फिलहाल राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होने के आसार हैं। लेकिन इससे उनसे अधिक तकलीफ भाजपा को हो सकती है।
राहुल गांधी जब तक सांसद हैं, तब तक उन्हें घेरना आसान रहेगा। लेकिन जिस दिन वे संसद से बाहर होंगे, उस दिन जनता के बीच उनकी पैठ और गहरी हो जाएगी। वैसे भी सूरत की अदालत के फैसले के बाद उन्होंने गांधी जी के आदर्शों को याद करते हुए ट्वीट किया है कि ‘मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है, अहिंसा उसे पाने का साधन।’ उन्होंने अदालत में ये भी कहा कि वो किसी समुदाय को अपने बयान से ठेस नहीं पहुंचाना चाहते थे। अगर यह फैसला छह महीने पहले आया होता, तब शायद भाजपा इसका कुछ लाभ ले सकती थी। लेकिन अब तो राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के बाद वाले शख्स हैं, जिन्होंने पूरी यात्रा के दौरान नफरत के खिलाफ प्यार का संदेश दिया है। लाखों लोगों ने उनके इस संदेश को सुना और महसूस किया है। इसलिए अब राहुल गांधी के लिए सहानुभूति और बढ़ेगी। बस अब कांग्रेस को यह तय करना है कि वह इस मामले में शब्दबाण ही चलाएगी या फिर इस मौके का लाभ उठाकर पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करेगी।
यह संयोग ही है कि राहुल गांधी को 23 मार्च के दिन सजा सुनाई गई। 23 मार्च भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का शहादत दिवस है। इसी तारीख को मशहूर क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह संधू उर्फ पाश की खालिस्तानियों ने हत्या कर दी थी। अंग्रेजों की क्रूरता और नाइंसाफी के सामने झुकने की जगह, उन्हें अपनी बहादुरी से चौंकाने वाले युवा भगत सिंह, राजगुरु औऱ सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी दे दी, ताकि वे अपने खिलाफ सिर उठाने वाले हर शख्स को डरा सकें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भले आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ने बंच ऑफ थॉट्स में कहा हो कि हम उनकी शहादत को महानता के उस चरम बिंदु के रूप में नहीं देख सकते, जिससे लोगों को प्रेरित होना चाहिए।
क्योंकि वे अपने आदर्शों को पाने में विफल रहे और इस विफलता में उनका बड़ा दोष है। (बंच ऑफ थॉट्स, साहित्य सिंधु, बंगलुरु, 1996, पेज- 283)। लेकिन सच्चाई यही है कि इनकी शहादत से लाखों नौजवानों को अन्याय के खिलाफ उठने की प्रेरणा मिली। तरीके भले अलग-अलग रहे, मगर आजादी के लिए संघर्ष और तेज हुआ और आखिरकार अंग्रेजों को अपनी हुकूमत समेट कर जाना पड़ा। जिन लोगों ने स्वतंत्रता संघर्ष में रत्ती भर भी योगदान नहीं दिया, वे शहीदे आजम को विफल कह सकते हैं।
लेकिन देश आज भी भगत सिंह और उनके साथियों के देश प्रेम और सर्वोच्च बलिदान को आदर्श की तरह देखता है। इसी तरह मशहूर क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह संधू उर्फ पाश भी ताउम्र गलत को गलत और सही को सही करने की हिम्मत दिखाते रहे। उन्होंने हिंदुस्तान के आम लोगों को सपने देखने का साहस दिया और बता दिया कि सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना, क्योंकि बिना सपनों के इंसान केवल हाड़-मांस का पुतला होता है, सपने उसमें चेतना भरते हैं। इसलिए पाश ने लिखा कि सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना।
देश में इस वक्त ऐसी ही मुर्दा शांति भरने की कोशिश की जा रही है। लेकिन राहुल गांधी उसमें विरोध के स्वर भर कर जान फूंक रहे हैं