इस्लाम धर्म स्वीकार करने वाली पहली महिला थी हज़रत ए ख़तीजा
हज़रत ए ख़तीजा का जन्म सन 555 में मक्का में हुआ। पिता का नाम खुवायलद इब्न असद जोकि एक व्यापारी थे और माँ का नाम फातिमा बिन्त ज़ैदह्, था ,
हज़रत ए ख़तीजा तीन बार शादी की पहली अबु हाला मलक इब्न नबश इब्न जरारा इब्न अत तमिमी से और दूसरी अतीक इब्न ऐद इब्न अब्दुल्ला अल मख्जुमी से । उनके पहले पति से उन्हे दो बेटे, जिनके दिए गए नाम आम तौर पर हाला और हिंद थे।व्यवसाय में सफल होने से पूर्व ही उनके पहले पति की मृत्यु हुई। दूसरे पति अतीक से ख़दीजा को एक बेटी हिंदाह हुई। इस शादी के बाद भी ख़दीजा विधवा हुई।
ख़दीजा एक बहुत ही सफल व्यापारी थी। यह कहा जाता है कि कुरैश के व्यापार कारवाँ जब गर्मियों में यात्रा करने के लिए सीरिया या सर्दियों में यात्रा पर यमन के लिए एकत्र होते,तब ख़दीजा के कारवाँ को भी कुरैश के अन्य सभी व्यापारियों के कारवाँओं के साथ रखा जाता था। उन्हे आमेएरत्-कुरैश (“कुरैश की राजकुमारी”), अल-ताहिरा(“शुद्ध एक”),और खदीजा अल-कुब्र (ख़दीजा “महान”)नामों से जाना जाता था।कहा जाता है कि वह अन्न और वस्त्र से ग़रीबो को आर्थिक रूप से और गरीबों की शादी के लिए हमेशा सहायता किया करती थी।ख़दीजा मूर्तियों में न विश्वास करती थी और न ही उनकी पूजा में, जिसे इस्लाम पूर्व अरब संस्कृति में असामान्य कहा गया था।
ख़दीजा व्यापार कारवाँ के साथ यात्रा नहीं करती थी,बल्कि नौकरों को अपनी ओर से व्यापार करने के लिए कमीशन पर नियुक्त करती थी। इस.594 में सीरिया में एक सौदे के लिए ख़दीजा को एक एजेंट की जरूरत पडी। अबू तालिब इब्न अब्द अल मुतालीब ने उसके दूर के चचेरे भाई मोहम्मद इब्न अब्दुल्ला की सिफारिश की। मुहम्मद ने अपने चाचा अबू तालिब के कारवाँ के व्यवसाय में अल सादिक (“सच्चा”)और अल-अमीन(“विश्वसनीय” या “ईमानदार”)का खिताब अर्जित किया। ख़दीजा ने मुहम्मद को काम पर रखा,तब वे 25 साल के थे।ख़दीजा के रिश्तेदार खजिमह इब्न हाकिम ने ख़दीजा से कहा कि उसे मुहम्मद का कमीशन दोगुना करना होगा।
ख़दीजा ने अपने सेवकों, में से मय्सरह को मुहम्मद की सहायता के लिए भेजा। लौटने पर, मय्सरह ने बताया कि मुहम्मद ने बडे ही प्रामाणिकता से व्यवसाय किया है जिसके परिणामस्वरूप उन्हे दोगुना लाभ हुआ है। मय्सरह ने यह भी कहा कि वापसी यात्रा पर, मुहम्मद एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए बैठ गए। तभी वहाँ से गुजरते हुए एक भिक्षु ने मय्सरह को बताया कि, ” इस पेड़ के नीचे जो बैठा है यह कोई और नहीं है, एक नबी है। ” मय्सरह ने यह भी दावा किया कि जब वह मुहम्मद के पास खड़ा था और वे सो गए, देखा कि मुहम्मद के ऊपर खड़े दो स्वर्गदूतों ने उन्हे गर्मी और सूरज की चमक से बचाने के लिए घना बादल बना दिया।
ख़दीजा ने उसके चचेरे भाई वरक़ह इब्न नवफल बिन असद इब्ने अब्दुल्-ऊज़्ज़ वरक़ह से सलाह ली।उस ने कहा कि मय्सरह ने जो ख्वाब देखा था सच था, मुहम्मद, जो पहले से ही लोगों को उम्मीद थी की नबी होंगे, वास्तव में था। यह भी कहा जाता है कि ख़दीजा ने एक सपना देखा जिसमें सूरज उसके आंगन में आसमान से उतरा है,और पूरी तरह से उसके घर को रोशन किया है। उसके चचेरे भाई वरक़ह ने उसे बताया कि चिंतित होने की बात नहीं, सूरज एक संकेत है कि उसके घर पैगंबर की कृपा होगी। इस पर माना जाता है कि ख़दीजा ने मुहम्मद से शादी का प्रस्ताव रखा। कई अमीर कुरैश पुरुष पहले से ही ख़दीजा से शादी के लिए हाँ कह चुके थे, लेकिन ख़दीजा ने सभी को मना कर दिया गया था।
हज़रत मुहम्मद से विवाह
हज़रत ए ख़दीजा ने एक विश्वासू सहेली नफीसा से हज़रत मुहम्मद को शादी करने पर विचार पूछने का जिम्मा सौंपा। सबसे पहले मुहम्मद ने संकोच किया क्योंकि उनके पास विवाह निभाने हेतु पैसे नहीं थे। नफीसा ने पूछा कि क्या अगर एक औरत जो विवाह के लिए सभी साधन जुटाए, तो वह शादी करने पर विचार करेगा। इस पर मुहम्मद-ख़दीजा साथ मिलने के लिए सहमत हुए, और इस के बाद उन्होंने अपने चाचा से सलाह ली। चाचा ने शादी के लिए सहमति व्यक्त की, और मुहम्मद के चाचा ख़दीजा के लिए एक औपचारिक प्रस्ताव रखने के लिए राजी हुए। यह विवादित है, कि केवल हमजा बिन अब्दुल मुत्तलिब या केवल अबू तालिब या दोनों थे, जो इस काम पर मुहम्मद के साथ गये थे। ख़दीजा के चाचा ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, और शादी हुई।शादी के वक़्त हज़रत मुहम्मद की उम्र 25 साल और हज़रत ए ख़दीजा की उम्र 40 साल थी .
हज़रत मुहम्मद और ख़दीजा को छह बच्चे थे।उनके पहले बेटे कासिम, जिसकी अपने दूसरे जन्मदिन से पहले मृत्यु हो गई थी। ख़दीजा ने अपनी बेटियों ज़ैनब , रुकय्या, उम्म-कुलसुम, और फातिमा को जन्म दिया। और अंत में उनके बेटे अब्दुल्ला। अब्दुल्ला तय्यिब़ ( “अच्छा”) के और ताहिर ( “शुद्ध”) नाम से जाना जाता था,क्यो़कि मुहम्मद को पैगंबर घोषित करने के बाद उसका जन्म हुआ था। अब्दुल्ला का भी बचपन में निधन हो गया।
दो अन्य बच्चे भी ख़दीजा के घर में रहते थे।एक अली इब्ने अबी तालिब, मुहम्मद के चाचा के बेटे , जब अबू तालिब को वित्तीय कठिनाई हुअी, मुहम्मद ने उसे अपने ही बेटे के रूप में बड़ा किया।
ख़दीजा की मृत्यु रमजान में हो गई ,यानि अप्रैल या मई 620 इ.स. में मुहम्मद के पैगंबर घोषित किये जाने के १० वर्ष बाद। मुहम्मद ने इस वर्ष को “दु:ख का वर्ष” कहा। इसी वर्ष में मुहम्मद के चाचा और रक्षक अबू तालिब भी निधन हो गया। ख़दीजा की 65 वर्ष की आयु में मृत्यु हुई, उन्हे जन्नत-उल बकी कब्रिस्तान में दफनाया गया,जो मक्का, सऊदी अरब में है।