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हमें उन दो वकीलों की ख़ुश रखना है जो आख़रत में हमारी वक़ालत करेंगे -हाजी मुहम्मद इक़बाल

आगरा। सिकंदरा स्थित नहर वाली मस्जिद के ख़तीब व इमाम जुमा हाजी मुहम्मद इक़बाल ने ख़ुत्बा ए जुमा मेंकहा कि आज हम उन दो वकीलों की बात करेंगे जो इस वक़्त हमारे साथ में हैं। बस इस वक़्त अगर हमने इन दोनों की अच्छे तरीक़े से मेहमानी कर ली, ख़ूब देख-भाल कर ली और ये दोनों हमारे से ख़ुश हो गए तो, काबा के रब की क़सम है ये दोनों वकील हमारा उस वक़्त साथ देंगे और बग़ैर फ़ीस के जब हमारे लिए कोई दुनिया का ऑप्शन नहीं होगा और हम बिल्कुल अकेले होंगे और दिन भी पचास हज़ार साल का होगा, उस वक़्त वो दोनों हमारे लिए हमारे रब से ज़ोरदार तरीक़े से सिफ़ारिश करेंगे। एक कहेगा अल्लाह! इसने हमारे लिए दिन भर खाना-पीना छोड़े रखा, तेरे हुक्म को माना और तेरी इबादत में लगा रहा। दूसरा कहेगा, ऐ अल्लाह! ये बन्दा रातों को जागता रहा, बहुत कम आराम किया और सिर्फ़ तेरी ही बढ़ाई बयान करता रहा और पूरे शौक से तेरे कलाम को पढ़ता रहा, हम दोनों की सिफ़ारिश इस बन्दे के हक़ में कुबूल फ़रमा। दुनिया के सबसे बेहतरीन इन्सान और अल्लाह के आख़िरी पैग़म्बर ने ये ख़ुशख़बरी सुनाई कि अल्लाह उन दोनों की सिफ़रिश कुबूल फ़रमा लेगा। अल्लाहु अकबर! ये मुस्नद अहमद की हदीस नं. 2/176 का खुलासा है। अब आप समझ गए होंगे कि ये दोनों रोज़ा और क़ुरआन हैं, लेकिन ये सिफ़ारिश तब ही मुमकिन है जब हम इस वक़्त रोज़े को इसके हक़ के साथ पाबन्दी से पूरे एहतिराम के साथ इसको मुकम्मल करें। और इसी तरह क़ुरआन को भी पूरे अदब के साथ इसकी तिलावत करें। इसके मायने को समझें और अमल करें तब जाकर हक़ अदा होगा। आज हम जो कुछ क़ुरआन के साथ कर रहे हैं, वो तो सरासर बे हुरमती है। क़ुरआन जैसी अ़ज़ीम किताब हमारे पास है। इसके बावजूद हम दुनिया में रुस्वा हैं, तो यही कहा जाएगा-
“वो ज़माने में मुअज़्ज़िज़ थे मुसलमाँ होकर,
और तुम ख़्वार हुए तारिके क़ुरआँ होकर।”


उस वक़्त मुसलमान होना ही काफ़ी था। दुनिया में वक़ार था, इज़्ज़त थी, हम क़ुरआन के साथ जो सुलूक़ कर रहे हैं, हम सब उससे वाक़िफ़ हैं। ग़ैर मुस्लिम जो क़ुरआन को नहीं जानता वो बेहुरमती करे तो दुनिया में कोहराम मच जाता है और मुसलमान क़ुरआन को जानने के बावजूद बेहुरमती करता है और क़ौम आराम से पीछे खड़ी होकर सुनती है। कौन है उसका ज़िम्मेदार ? आज दुनिया में हम ज़लील व ख़्वार हैं। अभी वक़्त है हम अल्लाह से माफ़ी माँगें, तौबा करें, क़ुरआन को संजीदगी से पढ़ें और अमल करें तब रोज़ा और क़ुरआन हमारी सिफ़ारिश करेंगे। इस रमज़ान हम इस बात का अहद करें कि क़ुरआन को रोज़ पढ़ेंगे इसके मायने के साथ और उस पर अमल भी करेंगे। नहीं तो उस वक़्त जब पचास हज़ार साल का दिन होगा, कौन हमारी मदद करेगा ? अल्लाह के बन्दों! क़ुरआन को अपना लो और अल्लाह के बन जाओ, अल्लाह को राज़ी कर लो। आज अपने को सरेंडर कर दें और पक्का अहद करें कि अल्लाह और रसूल की मानेंगे।