उत्तर प्रदेश

किरन पटेल, पुलवामा के डिप्टी कमिश्नर और आरएसएस नेता त्रिलोक सिंह चौहान से एनआईए करे पूछताछ- शाहनवाज़ आलम

किरन पटेल को गुजरात पुलिस जानबूझ कर ठग बता रही है, ताकि उसके आरएसएस से संबंधों पर चर्चा न हो

पुलवामा मामला छत्तिसिंहपुरा जनसंहार जैसा, जिसकी जांच वाजपेयी सरकार ने नहीं होने दी थी

लखनऊ, अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने जम्मू-कश्मीर में खुद को पीएमओ अधिकारी बताकर उच्च अधिकारियों के साथ बैठकें करने वाले किरन पटेल के पुलवामा के डिप्टी कमिशनर और एक आरएसएस नेता के साथ नजदीकी के खुलासे के बाद आतंकी घटनाओं में पटेल की भूमिका की जांच की माँग की है. उन्होंने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 92 वीं कड़ी में इस मुद्दे पर बात की.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि एक अंग्रेज़ी अखबार द्वारा किए गए खुलासे कि किरन पटेल कश्मीर में आरएसएस के पूर्व विस्तारक राजस्थान निवासी त्रिलोक सिंह चौहान और पुलवामा के डिप्टी कमिश्नर बशीर उल हक़ चौधरी के साथ बैठकें करता था, पुलवामा समेत कई आतंकी घटनाओं में उसे, आरएसएस नेता और चौधरी को संदेह के दायरे में ला देता है. इसलिए इन तीनों को एनआईए और आतंकवाद निरोधी एजेंसियों द्वारा जाँच के दायरे में लाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि गुजरात पुलिस द्वारा पटेल की ठग और दूसरों की संपत्तियों पर क़ब्ज़ा करने वाले अपराधी की छवि जान बूझकर बनाई जा रही है ताकि आरएसएस से उसके संबंधों पर चर्चा न हो.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि पुलवामा आतंकी हमले में विस्फोटक कहाँ से आया इसका खुलासा आज तक पुलवामा के डिप्टी कमिश्नर बशीर उल हक़ चौधरी नहीं कर पाए. जो कि उनका मुख्य काम था. लेकिन यह बड़े आश्चर्य की बात है कि उन्हें टीबी उन्मूलन के काम के लिए बनारस में प्रधानमंत्री जी ने 24 मार्च को सम्मानित किया.

उन्होंने कहा कि आतंकवाद प्रभावित पुलवामा जैसे ज़िले के डिप्टी कमिश्नर को अपने क्षेत्र से आतंकवाद उन्मूलन के बजाए टीबी उन्मूलन के लिए सम्मानित किया जाना न सिर्फ़ अस्वाभाविक है बल्कि उस घटना पर तमाम तरह के संदेह भी उत्पन्न करता है.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इस नए खुलासे के बाद पुलवामा प्रकरण भी 20 मार्च 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में हुए अनंतनाग के छत्तिसिंहपुरा जनसंहार जैसा प्रतीत होने लगा है. जिसमें अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दौरे की पूर्व संध्या पर नक़ाबपोश आतंकियों ने 36 सिखों की हत्या कर दी थी. जिसमें नानक सिंह नाम के एक व्यक्ति बच गए थे। जिन्होंने मीडिया को बताया था कि हत्यारों ने गोली चलाने से पहले ‘जय माता दी’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए थे और आपसी संवाद में वो गोपाल, पवन, बंसी और बहादुर नाम से एक दूसरे को संबोधित कर रहे थे।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने अमरीकी संयुक्त सचिव मैडेलिन अलब्राइट की पुस्तक ‘द माइटी ऐण्ड द अलमाइटी: रिफ्लेक्शन्स ऑन अमेरिका, गॉड ऐंड वर्ल्ड एफेअर्स’ की भूमिका में भी लिखा था ‘2000 में मेरे भारत दौरे के दौरान कुछ हिंदू अतिवादियों ने अपनी नाराज़गी का प्रदर्शन करते हुए 38 सिखों की ठंडे दिमाग से हत्या कर दी।’

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि तत्कालीन मुख्यमन्त्री फारूक अबदुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट के सेवा निवृत्त जज एसआर पांडियन से सिख जनसंहार की जांच कराने की घोषणा की तो प्रधानमंत्री वाजपेयी ने उन्हें दिल्ली बुलाकर जांच रोकने का निर्देश दे दिया.

वहीं इस जनसंहार में शामिल आतंकियों को मारने के नाम पर हुए पथरीबल मुठभेड़ के फ़र्ज़ी साबित हो जाने पर सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर से अनंतनाग के एसपी फारुक खान का ही नाम हटा लिया गया जिनके दावे पर वह फ़र्ज़ी मुठभेड़ हुई थी. फारुक खान कर्नल पीर मोहम्मद के पोते हैं जो जम्मू कश्मीर जनसंघ के पहले अध्यक्ष थे और रिटायर होने के बाद 2014 में कठुआ की भाजपा रैली में मोदी जी की मौजूदगी में वे भाजपा में शामिल हो गए थे.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि पुलवामा के डिप्टी कमिश्नर बशीर उल हक़ चौधरी के खिलाफ़ विस्फोटक का पता न लगा पाने पर कार्यवाई के बजाए टीबी उन्मूलन के लिए पुरस्कृत किया जाना उन्हें फारुक खान की तरह संदेह के दायरे में ला देता है. उन्होंने कहा कि कश्मीर में ब्यूरोक्रेसी के एक हिस्से का आरएसएस के साथ संदिग्ध भूमिका में लिप्त रहना देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है.