यौमे ए शहादत हजरत अली अ.
अली इब्ने अबी तालिब यानी हजरत अली अ. की शहादत 21 रमजान (माहे रमजान) सन् 40 हिजरी को इराक के कूफा शहर में हुई थी। उन्हें सुबह की नमाज में अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम ने तब शहीद किया जब मौला नमाज की पहली रकअत का सजदा कर रहे थे।
हजरत अली का जन्म मक्का शहर में हुआ था। आप की अम्मीजान हज़रते बीबी फ़ातिमा बिन्ते असद ने अपने वालिद के नाम पर आप का नाम ” हैदर ” रखा। वालिद ने आप का नाम ” अली ” रखा और हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने आप को ” असदुल्लाह ” के लकब से नवाज़ा। हज़रत अली का निकाह बीबी फातिमा से हुआ। हज़रत इमाम हसन और इमाम हुसैनआपके बेटे हैं।
हज़रत अली शिया मुस्लिम समुदाय के पहले इमाम थे। वहीं हजरत मोहम्मद पैगंबर के बाद सुन्नी मुसलमानों के चौथे खलीफा भी थे। हजरत अली उस वक्त इस्लाम की मदद के लिए आगे आए जब इस्लाम का कोई भी हमदर्द नहीं था। हज़रत अली इस्लाम धर्म को आम लोगों तक पहुंचाया। उनकी इसी सेवाभाव को देखते हुए हजरत मुहम्मद साहब ने उन्हें खलीफा मुकर्रर किया। आप ने 4 साल 8 माह, 9 दिन तक ख़िलाफ़त फ़रमाई। उन्होंने शांति और अमन का पैगाम दिया था। उन्होंने कहा था कि इस्लाम इंसानियत का धर्म है और वह अहिंसा के पक्ष में है।
हजरत अली ने हमेशा राष्ट्रप्रेम और समाज से भेदभाव हटाने की कोशिश की तथा यह भी कहा था कि अपने शत्रु से भी प्रेम करो तो वह एक दिन तुम्हारा दोस्त बन जाएगा। उनका कहना था कि अत्याचार करने वाला और उसमें सहायता करने वाला तथा अत्याचार से खुश होने वाला भी अत्याचारी ही होता है।
उन्होंने यह भी कहा था कि बोलने से पहले शब्द आपके गुलाम होते हैं लेकिन बोलने के बाद आप लफ्जों के गुलाम बन जाते हैं। अत: हमेशा सोच समझकर बोलें। इसके साथ ही उन्होंने भीख मांगना, चुगली करना जैसे कार्य करने को सख्त मना किया है। उन्होंने यह भी कहा कि हमेशा अपनी सोच को पानी के बूंदो से भी ज्यादा साफ रखो, क्योंकि जिस तरह बूंदों से समुंदर बनता है उसी तरह सोच से ईमान बनता है। अत: अपनी जुबान की हिफाजत तथा सोच को हमेशा पाक बनाए रखों।
17 या 19 रमज़ानुल मुबारक को एक ख़बीस ख़ारिजी के कातिलाना हम्ले से आप शदीद ज़ख्मी हो गए ! और 21 रमज़ानुल मुबारक , इतवार की रात आप शहीद हो गए !
जिस तरह इब्ने सबा के गिरोह को सहाबा-ए-किराम से अदावत थी !उसी तरह ख़ारजी गिरोह को अहले-बैत से अदावत थी ! यह दोनो गिरोह ही इस्लाम और मुसलमानों के लिये खतरनाक साबित हुए !
चुनांचे मौला अली रजियल्लाहु तआला अन्हु से उन ख़ारजियो को सख्त अदावत थी ! एक ख़ारजी मलऊन ने जिसका नाम इब्ने मलजम था ! हजरत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु को शहीद करने कां प्रोग्राम बनाया !
एक तलवार को खास इसी नापाक मकसद के लिये जहर में बुझाया और मौके की तलाश में रहा ! हज़रत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु की राजधानी कूफा थी !
आप एक रोज़ सुबह की नमाज़ पढ़ने मस्जिद को जा रहे थे कि इब्ने मलजम ख़ारजी ने, जो रास्ते से छुपकर बैठा हुआ था ! हज़रत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु पर हमला कर दिया ! और आपके माथे पर तलवार मारी !
हज़रत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु ने तलवार का ज़ख़्म खाकर एक नारा मारा ! खुदा की कसम मै अपनी मुराद को पहुंचा ! और फिर आप जमीन पर गिर गये ! और हुक्म फ़रमाया कि मेरे कातिल को पकडकर मेरे पास लाओ !
यह सुनकर लोग इब्ने मलजम ख़ारजी को पकडकर ले आये ! हजरत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु ( hazrat ali ) ने फ़रमाया इस मेरे मेहमान के लिये नर्म बिस्तर बिछाओं ! अच्छा खुश जायकदार खाना पकाकर इसे खिलाओ ! इसे ठंडा पानी भी पिलाओ !
ज़ख़्म से खून ज्यादा निकल जाने से फिर आपको बहुत कमजोरी लाहक़ हुई ! आपको शिद्दत से प्यास लगी ! घर वाले आपके लिये शर्बत बनाकर लाये ! हजरत अली ने फ़रमाया कि पहले मेरे कातिल को यह शर्बत पिलाओ !
घर वाले जब यह शर्बत इब्ने मलजम के पास लाये तो वह बदबख्त बोला मै जानता हूं कि तुमने मेरे लिये जहर घोलकर रखा है ! यह कहकर पीने से इंकार कर दिया !
हज़रत अली ( hazrat ali ) यह बात सुनकर रोये ! और फ़रमाया: ऐ बदनसीब ! अगर तू इस वक्त मेरा यह शर्बत पी लेता ! तो में क्यामत के दिन जामे कौसर हरगिज़ न पीता ! जब तक पहले तुझे न पिला देता !
मगर मै क्या करूं कि तूने मेरे साथ रहना पसंद नहीं किया ! इसके बाद आपकी हालत बहुत नाजुक हो गयी ! और फ़रमाया: मैं देख रहा हू कि बहुत बडी जमाअत फरिश्तों की है ! उनके साथ बहुत बडे काफिले नबियों के हैं !
सबसे आगे सालारे क़ाफ़िला हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं ! मुझसे फ़रमाते हैं कि ऐ अली ! खुश हो जाओं कि अब तुम बडे चैन और राहत से बुलाये जाते हो !
इसके बाद आपने कूछ वसीयतें फ़रमाइ ! फिर कुछ मुश्क बतौर तबर्रुक निकाला और दिया ! पूछा गया कि यह मुश्क कैंसा है ? फ़रमाया: हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि के मुबारक जनाज़े को इस मुश्क से बसाया गया था !
उस वक्त थोडा -सा मुश्क बतोर तबर्रुक मैंने आज के दिन के लिये रख लिया था ! जब मुझे गुस्ल -देकर कफ़न पहनाओं तो यह मुश्क मेरे बदन पर लगा देना !
फिर अस्सलामु अलैकुम कहा ! इसके बाद कलिमा शरीफ़ का विर्द फ़रमाया और अपनी जान राहे हक में कुरबान कर दी !