पहले भी एंकाउंटर हुए हैं लेकिन कभी मुख्यमन्त्री उसका श्रेय नहीं लेते थे
मुख्यमन्त्री की भाषा फ़र्ज़ी एनकाउंटरों को बढ़ावा देने वाली, कल्याण सिंह की ऐसी ही भाषा पर हाई कोर्ट ने लगाई थी फटकार
लखनऊ, . अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने कहा है कि माफिया और पूर्व सांसद अतीक के बेटे के कथित एनकाउंटर में हत्या पर जिस तरह सवाल उठ रहे हैं उस पर न्यायपलिका को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए. ऐसा नहीं होने पर लोगों की नज़र में अदालतों की अहमियत कम होती जाएगी. जो न्यायतंत्र के लिए घातक होगा.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जिस तरह संदेह के दायरे में आ चुके इस कथित एनकाउंटर के लिए एसटीएफ के अधिकारियों के बजाए मुख्यमन्त्री आदित्यनाथ जी को उनके मन्त्री, भाजपा नेता और सरकार समर्थक मीडिया बधाई दे रही है उससे यह संदेश जा रहा है कि खुद मुख्यमन्त्री जी ही हत्या में शामिल हैं. प्रदेश में इससे पहले भी कई अपराधी मुठभेड़ में मारे गए हैं लेकिन यह पहली बार हो रहा है कि मुख्यमन्त्री इसके लिए सीधे बधाई ले रहे हैं.
उन्होंने कहा कि सपा और बसपा सरकारों में भी संदिग्ध मुठभेड़ होते थे लेकिन उसमें कम से कम एकाध पुलिस वालों को भी छर्रे से घायल दिखा दिया जाता था. लेकिन इस मामले में तो ऐसा भी करना ज़रूरी नहीं समझा गया. जबकि मारे गए अपराधियों के पास अत्याधुनिक हथियार होने का दावा किया जा रहा है. क्या ये हथियार उन्होंने सिर्फ़ मरने के बाद मीडिया वालों के फोटोशूट के काम आने के लिए रखे होंगे? जिस बाइक से उनके धूल भरे रास्ते से भागने और फिर बाइक के पलट जाने की कहानी बताई जा रही है उसमें कोई खरोच भी नहीं है, टायर बिल्कुल साफ हैं. न तो बाइक में चाभी है न नेम प्लेट है, न चेचीस नम्बर. क्या कोई अपराधी बिना नेम प्लेट की गाड़ी से भाग कर खुद संदेह के दायरे में आ जाने का रिस्क लेगा?
सबसे अहम कि यह एक ऐसी कथित मुठभेड़ थी जिसकी संभावना हर व्यक्ति लगा रहा था. राज्य द्वारा किसी की संभावित हत्या की धारणा का सच साबित होना कानून के राज के लिए खतरे की घण्टी है. कानून के कस्टोडियन होने के नाते न्यायपालिका को इसे स्वतः संज्ञान लेना चाहिए.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि तत्कालीन मुख्यमन्त्री कल्याण सिंह के बयान कि अपराधियों के मानवाधिकार नहीं होते पर दायर वाद (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 1 दिसंबर 2000) पर उच्च न्यायालय ने अपने ऑब्जर्वेशन में संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा ऐसी भाषा पर आपत्ति ज़ाहिर की थी. उन्होंने कहा कि दो दशकों में राजनीति और समाज ज़रूर बदला है लेकिन कानून की अवधारणा स्थायी होती है. मौजूदा मुख्यमन्त्री सदन के अंदर और बाहर ऐसी भाषा बोलते रहे हैं जिससे कानून के राज के प्रति उनकी हिकारत ज़ाहिर होती है. इससे फ़र्ज़ी एनकाउंटरों के लिए पुलिस का मनोबल बढ़ता है.