संवाद। सादिक जलाल (8800785167)
नोएडा,: दुनिया में रोडोटुरुला इंफेक्शन (रोडोटुरुला दरअसल, पिग्मेंटेड ईस्ट के परिवार का है) के साथ सीएमवी मेनिंजाइटिस का पहला मामला उस वक्त सामने आया जब 2 वर्षीय एक शिशु को इससे पीड़ित पाया गया। शिशु का फोर्टिस नोएडा में सफल इलाज किया गया है। उपलब्ध मेडिकल रिकॉर्ड्स के मुताबिक, यह दुनिया में सीएमवी मेनिंजाइटिस का दूसरा मामला है जिसका बायोफायर (यह सीएमवी – साइटोमेगलोवायरस नामक वायरस के कारण मस्तिष्क की सतह के संक्रमण और सूजन के कारण होता है) के मार्फत पता चल पाया। डॉ आशुतोष सिन्हा, डायरेक्टर एवं हैड, पिडियाट्रिक्स, फोर्टिस नोएडा के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने मामले की पूरी जांच और समय पर डायग्नॉसिस के चलते शिशु का उपचार किया।
मरीज़ मथुरा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था जिसे बुखार, अत्यधिक चिड़चिड़ेपन और असामान्य किस्म की मूवमेंट, जिसमें आंखों का उलटना और चिड़चिड़ेपन के साथ रोते रहना शामिल था, की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती किया गया था। शिशु की एमआरआई, सीएसएफ (सेरीब्रोस्पाइनल फ्लूड) समेत कई प्रकार की मेडिकल जांच की गई जिससे इंफेक्शन सामने आया और पता चला कि शिशु मेजिंजाइटिस से ग्रस्त था। शिशु को दौरे भी पड़ने लगे थे और उसकी अनियंत्रित अवस्था को देखते हुए उसे तत्काल ट्यूब के जरिए एंटीबायोटिक्स दी गईं। क्लीनिकल स्तर पर शिशु की हालत में सुधार दिखायी देने लगा था तथा फीडिंग भी सही तरीके से कर रहा था लेकिन तेज बुखार ठीक नहीं हो रहा था। उसे प्रतिदिन 3-4 बार बुखार आ रहा था, इसलिए दोबारा से सीएसएफ जांच की गई और बायोफायर जांच के लिए भेजा गया जिसमें सीएमवी पॉजिटिव पाया गया। शिशु को गैन्सीक्लोविर का इंजेक्शन छह सप्ताह तक दिया गया। हालांकि, आईवी से गैन्सीक्लोविर दिए जाने के 10 दिन बाद भी बुखार कम नहीं हुआ। सीएसएफ फंगल कल्चर में रोडोटुरुला संक्रमण की मौजूदगी का पता चला जो दुनिया भर में पहली बार रिपोर्ट किया गया।
मामले की जानकारी देते हुए डॉ. आशुतोष सिन्हा ने कहा, ‘‘बच्चे का शुरू में आईवी के जरिये एंटीबायोटिक्स और एंटीपीलेप्टिक्स के साथ इलाज किया गया था। हालांकि उसे बेहोशी के कई दौरे पड़े थे, जिसके लिए उसे वैकल्पिक रूप से इंटुवेटेड किया गया था और मैकेनिकल वेंटिलेशन और आईवी मिडाज़ोलम पर रखा गया था। बेहोशी की हालत से राहत मिलने के 48 घंटे बाद बच्चे को बाहर निकाला गया। क्नीनिकली बच्चे में सुधार दिखा लेकिन तेज बुखार ठीक नहीं हो रहा था। इसके बाद, जांच में साइटोमेगालोवायरस मेनिंजाइटिस (सीएमवी) का पता चला था। जिसकी वजह से बच्चे को गैन्सीक्लोविर का इंजेक्शन लगाया गया जो छह सप्ताह तक जारी रहा। हालांकि बुखार 10 दिनों तक बना रहा। बार-बार होने वाले सीएसएफ फंगल कल्चर से एक दुर्लभ यीस्ट – रोडोटुरुला प्रजाति की उपस्थिति का पता चला, जिसे दुनिया में कहीं भी सीएमवी में पहचाना या देखा नहीं गया है। इसके बाद एम्फोटेरिसिन बी शुरू किया गया और उसे चार सप्ताह तक दिया गया, जिससे शिशु को ठीक होने में मदद मिली और उसका बुखार भी कम हो गया। तत्काल और सही इलाज के बिना, उसके बचने की संभावना कम थी। शुरुआती एमआरआई में मस्तिष्क में बदलाव दिखा था लेकिन बाद में मस्तिष्क के एमआरआई में सुधार दिखा और हमने बिना किसी जटिलता के बच्चे को सामान्य स्थिति में छुट्टी दे दी। इस तरह की स्थिति में अगर बीमारी को अनियंत्रित छोड़ दिया जाता और उपचार नहीं किया जाता तो इसमें जोखिम थे जैसे कि उच्च मृत्यु दर, न्यूरोडिसेबिलिटी और अन्य संबंधित जटिलताएं।’’
डॉ. सिन्हा ने आगे कहा, ‘‘साइटोमेगालोवायरस एक सामान्य वायरस है और एक बार संक्रमित होने के बाद, शरीर में जीवन भर के लिए वायरस बना रहता है। अधिकांश लोगों को पता नहीं होता कि उन्हें सीएमवी है, क्योंकि यह शायद ही कभी स्वस्थ लोगों में समस्याएं पैदा करता है। यह संक्रमण आम तौर पर कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले और एचआईवी रोगियों या कीमोथेरेपी कराने वालों में होता है। जन्म से पहले मां से या जन्म के बाद स्तनपान के माध्यम से प्राप्त शिशुओं में सीएमवी संक्रमण के मामले सामने आए हैं लेकिन मस्तिष्क का संक्रमण बेहद दुर्लभ है। कुछ बच्चों में जन्म के बाद स्तनपान से यह संक्रमण हो सकता है। हालांकि इस मामले में, यह पता लगाना संभव नहीं था कि क्या स्तन का दूध वाहक था, लेकिन हमने जोखिम को सीमित करने के लिए स्तनपान रोक दिया था।’’
डॉ. शुभम गर्ग, सीनियर कंसल्टेंट – सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, फोर्टिस नोएडा, जिन्होंने इस मामले का मूल्यांकन किया और केमोपोर्ट की सलाह दी, ने कहा, ‘‘शिशुओं को आईवी के जरिये दवा देने के लिए नस खोजने में हमेशा चुनौती होती है। यह 2 महीने का बच्चा था और हमें एक महीने से अधिक समय तक इंट्रा-वेनस दवाओं को तत्काल देने की आवश्यकता थी। केमोपोर्ट का उपयोग आमतौर पर उन रोगियों में किया जाता है जिन्हें कीमोथेरेपी के कई राउंड की आवश्यकता होती है। इसे क्लैविकल के नीचे की त्वचा में डाला जाता है और कैथेटर का उपयोग करके बड़ी नस से जोड़ा जाता है। इस मामले में, यह एक चुनौती थी क्योंकि कैथेटर का व्यास छोटे शिरा/नसों में फिट नहीं हो सकता था। इस प्रकार, हमने एक विशेष छोटे आकार के पोर्ट (6F) का ऑर्डर दिया और एनेस्थीसिया की मदद से इसे सफलतापूर्वक लगाने में सक्षम हुए।’’
मोहित सिंह, जोनल डायरेक्टर, फोर्टिंस हॉस्पिटल नोएडा ने कहा, ‘‘यह पेचीदा मामला था क्योंकि इससे पहले ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया था। फोर्टिस नोएडा के डॉक्टरों की टीम को एक और क्लिनिकल कीर्तिमान हासिल करने के लिए बधाई। रोडोटुरुला के साथ सीएमवी को ठीक करने के लिए उपचार की कोई स्थापित विधि नहीं थी, सभी बाधाओं और चुनौतियों के बावजूद, शिशु की जान सही चिकित्सा मूल्यांकन और समय पर उपचार की वजह से बच गई।’’