संवाद/ विनोद मिश्रा
बांदा। बांदा नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव में प्रकाश के तेज नें सपा प्रत्याशी गीता साहू के पति “मोहन साहू के अहंकार को जलाकर राख” कर दिया? “मालती बासू गुप्ता पर प्रकाश की चांदनी बिखरी” और उनके हाथों “अहंकार का बध” हुआ। पति के कथित अहंकार,भ्रष्टाचार एवं अशिष्टता और अमर्यादित भाषा का खामियाजा उनकी अर्धांगिनी गीता साहू नें चुनावी हार के रूप में भोगा। उनके पति “मोहन” ही “गीता” के गूढ़ सिधान्तो को भुला बैठे और परिणाम यह हुआ “मतगणना के दिन आशा और निराशा के भंवर जाल में जनता जनार्दन डाल कर विहंसती और खिलखिलाती” रही।
जनता का मानना है की सपा प्रत्याशी पति शायद यह भूल गये थे की उन्होंने अपने कार्यकाल में पालिका की कथित तौर पर दुर्गत कर डाली थी। नगरवासी और पालिका कर्मचारी परेशान !गरीबों की नौकरी छीनी। कर्मचारियों पर तानाशाही के आरोप लगते रहे। आरोप है की कमीशन खोरी से “कुबेर” बन गये!समय -समय पर निज स्वार्थ हेतु “लालटोपी धारण लल्ले गुरु” भी बनें। अपने चुनाच के वादे भूल “गुरु घंटाल” का रोल किया!पालिका द्वारा संचालित बालिका इंटर कालेज में अव्यवस्थाओं का नगाड़ा सा बजता रहा। “नगर रोम की भांति जलने की कहावत चरित्रार्थ करता रहा और मोहन की चैन की वंशी बजती” रही। परिणाम यह रहा की गीता चुनाव हारी। “मोहन साहू के सपने मुंगेरी लाल की तरह ढेर” हो गये!