संवाद/ विनोद मिश्रा
बांदा। भाजपा की बबेरू नगर पंचायत में अध्यक्ष पद की हार प्रत्याशी का चयन मुख्य कारण माना जा रहा है! जनता में चर्चा है की प्रत्याशी में बदलाव यदि हुआ होता तो भाजपा यहां जीत का रिकार्ड कायम कर सकती थी।हालांकि प्रत्याशी को जिताने के लिये जिला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल नें एकाग्रता से दिन -रात जो मेहनत की वह जनता में सराही गईं और आकर्षण का केंद्र रहीं,लेकिन मतदाताओं में भाजपा प्रत्याशी के प्रति आवश्यकता अनुसार लगाव उत्पन्न नहीं हो सका।
दरअसल भाजपा आलाकमान नें यहां से नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर अपने निवर्तमान अध्यक्ष विजय पाल सिंह को पुनः टिकट देकर मैदान में उतारा। विजय पाल सिंह का कार्यकाल नगर वासियों के आशा अनुरूप नहीं था? नगर की सड़क,प्रकाश व्यवस्था ,नालियों से जल निकासी ,नई बस्तियों की अनदेखी आदि कारणों से नगर वासियों की आंखों के किरकिरी विजय पाल सिंह बन चुके थे? बबेरू नगर के अधिकांश पार्टी जन भी उनसे व्यक्तिगत रूप से खफा थे।
पूरे चुनाच में जो दृश्य दिख रहा था तो “दिल से विजय पाल की विजय के लिये जिला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल” हीं पार्टी जनों को समझा -बुझा कर “प्रचार की कमान को डोर टू डोर संपर्क कर ताने रहने का प्रयास” कर रहे थे लेकिन “सुनील की प्रत्याशी के प्रति बेतहाशा मेहनत भी जीत की कामयाबी को लपकते -लपकते रह गईं,। विजयपाल सिंह के प्रति मतदाताओं की नाराजगी पूरी तरह नहीं मिट पाई और उन्होंने “सपा से दो वार नगर पंचायत अध्यक्ष रहे सूर्यपाल यादव के गले में विजय माला डाल” दी। जन चर्चाओं के अनुसार सपा प्रत्याशी सूर्यपाल यादव का दोनों कार्यकाल जनता में प्रशंसनीय था। सपा नें पिछले चुनाव में तीसरी बार जब उन्हें प्रत्याशी बनाया था तो भाजपा नें उन्हे मात्र 42 वोटों से पराजित कर पाई थी। इनके प्रति नगर वासियों में विकास के प्रति अति विश्वास सा भी दिख रहा था।