अन्य

ग़लत फ़हमी या बदगुमानी के मामले में बहुत होशियार रहने की ज़रूरत है- हाजी मुहम्मद इक़बाल

आगरा। सिकन्दरा स्थित नहर वाली मस्जिद के ख़तीब व इमाम ए जुमा हाजी मुहम्मद इक़बाल ने ख़ुत्बा ए जुमा में कहा कि आज हम बात करेंगे एक ऐसी ख़तरनाक चीज़ की जिसकी लपेट में उल्माए किराम, दानिशवर मर्द, औरतें, अमीर, ग़रीब, शहर का, गाँव का सब आ चुके हैं। बस फ़र्क़ इतना है कि कोई कम या कोई ज़्यादा। जी हाँ! हर एक उसकी लपेट में है, उस चीज़ का नाम है ‘ग़लत फ़हमी’। पहले एक बुख़ारी की हदीस 6045 को समझ लें ताकि बात आसानी से समझ आ सके, “रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम ने फ़रमाया, जब कोई शख़्स किसी के ऊपर बदकारी का इल्ज़ाम लगाए या उसके ऊपर कुफ़्र का इल्ज़ाम लगाए तो उसका इल्ज़ाम ख़ुद उसी की तरफ़ लौट आएगा, अगर दूसरा शख़्स वैसा न हो।” इस हदीस को बार-बार पढ़ने की ज़रूरत है ताकि अच्छी तरह याद रहे। ये हदीस बहुत संगीन है। इसकी रौशनी में हम सब को ग़लत फ़हमी या बदगुमानी के मामले में बहुत होशियार रहने की ज़रूरत है, अगर कोई भी शख़्स किसी दूसरे के बारे में कोई बात कहता है तो आपको एकदम उसको मानने की ज़रूरत नहीं जब तक कि आप उसके बारे में पूरी जानकारी हासिल न कर लें, आधी-अधूरी मालूमात आगे चल कर बहुत संगीन चीज़ें बन जाती है इसका नुक़्सान पूरे समाज को अपनी लपेट में ले लेता है ये एक अख़्लाक़ी या शरई जुर्म की हैसियत का मामला बन जाता है। इसीलिए बहुत ज़रूरी है कि किसी भी बात को उस वक़्त तक नहीं माना करें जब तक आपके पास उसका सबूत न हो, नहीं तो आप और वो शख़्स जिसने किसी भी दूसरे पर ‘इल्ज़ाम’ लगाया वो ख़ुद इस हदीस की ‘ज़द’ में आ जाएगा और वो मुजरिम क़रार पाएगा। ये इस क़द्र संगीन मसला है, हमें हद दर्जे एहतियात की ज़रूरत है। ग़लत फ़हमी या बदगुमानी कोई आम बात नहीं कि एक कान से सुना और उस पर अपनी राय क़ायम करली ये बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी की बात है इसीलिए इससे बचना ख़ुद अपने फ़ायदे के लिए ज़रूरी हो जाता है नहीं तो ये ख़ुद अपना मसला बन जाएगा इसीलिए ज़रूरी है इस मामले में बेहद संजीदगी का रोल अदा किया जाए। अल्लाह हम सबको सही सूझ-बूझ अता फ़रमाए और इस बीमारी से बचाए। आमीन।