लखनऊ । ग्रेटर नोएडा का रहने वाला एक नवयुवक कैलाश पर्वत तक की पदयात्रा पर निकला है। ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर निवासी 23 वर्षीय शिवम यादव को इस बात की लगन है कि वह कैलाश पर्वत तक पैदल यात्रा पूरी करें। सूरजपुर से गत 11 मई को अपने सफर पर निकले शिवम यह खबर लिखे जाने तक अयोध्या से गोंडा के रास्ते बहराइच की तरफ बढ़ रहे थे। वहां से रूपईडीहा सीमा से वह नेपाल में दाखिल होंगे।
अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते हुए लखनऊ पहुंचे शिवम ने पीटीआई- से बातचीत में कहा कि वह बाबा भोलेनाथ के अनन्य भक्त हैं और उनकी यह आस्था ही उन्हें भगवान शंकर के घर यानी कैलाश पर्वत तक ले जाएगी। इस सवाल पर कि क्या उन्होंने चीन के नियंत्रण वाले क्षेत्र में पड़ने वाले कैलाश पर्वत तक की यात्रा के लिए भारत सरकार के साथ-साथ चीन की सरकार से इजाजत ली है, शिवम ने कहा कि उन्होंने ऐसा नहीं किया है लेकिन उन्हें पूरा भरोसा है कि उनकी आस्था की शिद्दत को देखकर कोई भी देश उन्हें इस पुण्य कार्य को करने से नहीं रोकेगा।
उन्होंने कहा कि भोलेनाथ ने उन्हें बुलाया है तो वह अपनी मंजिल पर पहुंचने में जरूर कामयाब हो जाएंगे। चीन में प्रवेश करने और कैलाश पर्वत क्षेत्र की यात्रा करने के लिए तिब्बत यात्रा परमिट के साथ चीनी वीजा अनिवार्य होता है क्योंकि पर्वत तिब्बत के सुदूर क्षेत्र में स्थित है, जो एक प्रतिबंधित क्षेत्र है। हर साल सैकड़ों भारतीय तीर्थयात्री चीन के तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र में पर्वतीय इलाकों से गुजरते हुए कैलाश मानसरोवर की यात्रा करते हैं। तीर्थयात्रा जून से सितंबर तक विदेश मंत्रालय द्वारा दो अलग-अलग मार्गों- उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रा और सिक्किम में नाथू ला दर्रा के माध्यम से आयोजित की जाती है।
शिवम ने कहा कि जिस तरह शिहाब केरल से मक्का तक की 8,640 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा पर निकले हैं उसी तरह वह खुद भी ग्रेटर नोएडा से कैलाश पर्वत तक की लगभग 1,850 किलोमीटर की यात्रा जरूर पूरी करेंगे। शिहाब ने पिछले साल जून में केरल के मल्लपुरम से मक्का तक की 8,640 किलोमीटर की यात्रा शुरू की थी। वह हाल ही में सऊदी अरब में दाखिल हुए हैं। उन्होंने एक वीडियो में इसकी पुष्टि की है। शिवम के पिता का निधन हो चुका है। उनके परिवार में सिर्फ उनकी मां ही हैं। उनकी मां मंजू ने बताया कि उनके बेटे के मन में बचपन से ही भगवान शिव के प्रति अगाध आस्था है।
उसने पैदल ही कैलाश पर्वत तक जाने की इच्छा व्यक्त की। वह जानती हैं कि यह यात्रा कितनी मुश्किल और जोखिम भरी है लेकिन भोलेनाथ के प्रति उसकी लगन ने उन्होंने उसे इस यात्रा पर जाने की इजाजत दे दी। शिवम ने ग्रेटर नोएडा से अयोध्या तक की लगभग 600 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर ली है। उन्होंने इरादा किया था कि वह अयोध्या में रामलला के दर्शन करने के बाद बहराइच की तरफ मुड़ेंगे। घर से कुछ कपड़े और कुछ अन्य जरूरी सामान लेकर निकले शिवम ने बताया कि रास्ते में उन्हें हर पड़ाव पर मददगार लोग मिल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जो भी उनकी कहानी सुनता है वह उनकी मदद के लिए आगे आ जाता है तथा जिससे जो बन पड़ता है वह सहायता करता है। शिवम ने कहा कि कुछ लोग भावुक भी हो जाते हैं, रास्ते में लिफ्ट देने वाले लोग भी बहुत मिलते हैं लेकिन वह यह कहते हुए मना कर देते हैं कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो भगवान भोलेनाथ नाराज हो जाएंगे। शिवम ने बताया कि सबके आशीर्वाद और साथ से उनका सफर आगे बढ़ रहा है और वह अकसर ढाबों पर ही रात में रुकते हैं और सुबह होते ही अपनी यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
उन्होंने कहा कि वह रोजाना औसतन 35 से 40 किलोमीटर की यात्रा कर रहे हैं तथा कई बार पैरों में छाले पड़ जाते हैं लेकिन उनकी आस्था नहीं डिगती। उनका कहना है कि सऊदी अरब की यात्रा पर पैदल निकले शिहाब को पाकिस्तान ने वीजा देने से मना कर दिया था लेकिन उनकी अकीदत के आगे पड़ोसी मुल्क को घुटने टेकने पड़े थे। उन्हें विश्वास है कि चीन भी उनकी श्रद्धा और आस्था को देखकर उन्हें नहीं रोकेगा। शिवम की यह यात्रा कुछ मायनों में शिहाब की यात्रा से ज्यादा चुनौतीपूर्ण है क्योंकि शिहाब हज के इरादे से सऊदी अरब निकले थे लिहाजा उन्हें सऊदी अरब की सरकार और कुछ वक्त के लिए पाकिस्तान को छोड़कर रास्ते में पड़ने वाले किसी अन्य देश की सरकारों से किसी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा।
लेकिन शिवम के मामले में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उन्हें कैलाश पर्वत तक जाने के लिए चीन में दाखिल होना होगा और भारत के साथ मौजूदा रिश्तों को देखते हुए यह बहुत बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। हालांकि शिवम का यह मानना है कि उन्हें भगवान शंकर ने बुलाया है तो वही बेड़ा पार लगाएंगे और उन्होंने आगे की सारी चीजें उन्हीं पर छोड़ दी हैं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के कलान क्षेत्र स्थित विक्रमपुर गांव निवासी शिवम का इरादा है कि वह नेपाल में दाखिल होने के बाद काठमांडू जाएंगे और वहां से तिब्बत होते हुए कैलाश पर्वत तक पहुंचेंगे।
साभार – प्रभासाक्षी