अन्य

मेल-मिलाप कितना ज़रूरी ! हाजी मुहम्मद इक़बाल

आगरा। सिकन्दरा स्थित नहर वाली मस्जिद के ख़तीब व इमाम जुमा हाजी मुहम्मद इक़बाल ने ख़ुत्बा ए जुमा में कहा कि आज के जुमा के ख़ुत्बे में बात करेंगे मेल-मिलाप की, इसकी हमारी ज़िन्दगी में कितनी अहमियत है, इस बात को इस हदीस की रौशनी में पहले समझ लें, मुस्नद अहमद की हदीस नम्बर 5022 में बताया गया है कि “वो मोमिन जो लोगों से मेल-जोल रखता है और उनसे मिली तकलीफ़ पर सब्र करता है, वो सवाब में उससे ज़्यादा है जो ऐसा नहीं करता।” कितनी बड़ी बात की तरफ़ इशारा किया गया है, अल्लाह ने मोमिन को एक ज़िम्मेदारी के साथ इस दुनिया में भेजा है। वो ज़िम्मेदारी है एक दीन की दावत देने वाले की। ये मोमिन पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है कि जिस काम के लिए अल्लाह ने नबियों को भेजा, अब वो काम एक मोमिन को करना है और उसमें सबसे पहली सीढ़ी है मेल-मिलाप की। अगर उसमें कामयाब हो गए तभी आप अल्लाह का पैग़ाम दूसरों को पहुँचा सकते हैं। उसके लिए बहुत ज़रूरी है कि हमारे रिश्ते उससे अच्छे हों जिसको हम दावत दे रहे हैं, वो हमारी बात जो हम अल्लाह के पैग़ाम की सूरत में उसको समझाना चाहते हैं तभी सुन पाएगा। यही तरीक़ा है अल्लाह के पैग़ाम को सुनाने का, उसी तरीक़े से हम ज़िम्मेदारी अदा कर सकते हैं और मेल-मिलाप एक यूनिवर्सल सिस्टम भी है। ये सिस्टम इंसान को भी इख़्तियार करना है। क़ुरआन में सूरह यासीन आयत नम्बर 40 में इसी सिस्टम का ज़िक्र अल्लाह ने इस तरह किया है: “कायनात का निज़ाम आपसी टकराव के बग़ैर, दुरुस्त तौर पर, आपसी मेल-मिलाप के ज़रिए चल रहा है।” ठीक इसी तरह इंसानी ज़िन्दगी का सिस्टम भी दुरुस्त तौर पर चल सकता है। अगर इंसान इस यूनिवर्सल सिस्टम को इख़्तियार करे और जो मिशन अल्लाह ने मोमिन को दिया है वो तो इसके बग़ैर मुमकिन ही नहीं है। इसीलिए ज़रूरी है कि हम आपस में एक-दूसरे से मेल-मिलाप रखें, ख़ास तौर पर उन लोगों से जिनको हम दीन की दावत देते हैं दावत देने वाले शख़्स के लिए ‘नर्मी’ बेहद ज़रूरी चीज़ है। मूसा अ़लैहिस्सलाम को अल्लाह ने ख़ास तौर पर कहा था कि फ़िरऔन से ‘नर्मी’ से बात करना। अल्लाह हम सब को मेल-मिलाप की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।