जीवन शैली

हाजी साहब, सुनो!

आगरा। सिकंदरा स्थित नहर वाली मस्जिद के खतीब व इमाम जुमा हाजी मुहम्मद इकबाल ने खुत्बा ए जुमा में कहा कि आज के जुमा के ख़ुत्बे में हज्ज और हाजी साहब के बारे में कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं आप सब से दरख़्वास्त है कि बहुत ग़ौर से सुनें और दूसरों तक भी पहुँचाएं। पहले हज्ज के बारे में― “हज्ज का सफ़र अल्लाह की तरफ़ एक सफ़र है, ये सफ़र अपने रब से सबसे क़रीब होने की आख़िरी शक्ल है। दूसरी इबादतें अल्लाह की याद में हैं और हज्ज एक तरह से ख़ुद अल्लाह तक पहुँच जाने का ज़रिया है। ये एक बन्दे की रब से मुलाक़ात की रिहर्सल है। इसीलिए वो अल्लाह का मेहमान कहलाता है।” इस साल का हज्ज अल्हम्दुलिल्लाह ख़ैर व आफ़ियत से पूरा हो चुका है और अब अल्लाह के मेहमान, जिनको हम लोग ‘हाजी’ के नाम से पुकारते हैं, वो अपने-अपने घरों को वापस आना शुरू हो चुके हैं। कुछ वक़्त बाद सारी औरतें व मर्द अपने घरों में होंगे इन-शा-अल्लाह, और अब वो ‘हाजी और हज्जन’ के नाम से पुकारे जाएंगे और वो ख़ुश भी होते हैं। हाजी और हज्जन से दरख़्वास्त है कि वो अल्लाह के नबी को, सहाबा को, सहाबियात को हाजी या हज्जन के नाम से क्यों नहीं पुकारते ? उन सबने अल्लाह के नबी के साथ हज्ज किया है। अरफ़ात में अल्लाह के नबी के साथ ज़ुह्र और अस्र की नमाज़ें एक साथ पढ़ी हैं। मिना में क़ियाम किया है, यानि सारे अरकान अल्लाह के नबी के साथ अदा किए हैं। कोई भी अल्लाह के नबी या सहाबा को ‘हाजी’ नहीं कहता है, फिर हम ख़ुद को या दूसरों को हाजी क्यों कहते हैं ? आप ज़िन्दगी में एक बार हज्ज करके ‘हाजी’ कहलाएं और जो बेचारा दिन में पाँच बार अल्लाह के सामने हाज़िर हो रहा है वो ‘नमाज़ी’ क्यों नहीं कहलाए ? इसीलिए आप सब से दरख़्वास्त है कि इस चीज़ से ख़ुद को बचाएँ और सिर्फ़ अल्लाह का शुक्र अदा करें कि उसने आपको अपने घर बुलाकर अपना मेहमान बनाया। हम जितना भी शुक्र अदा करें वो कम है ना कि हम ख़ुद को या दूसरों को हाजी के नाम से पुकारें, मैं उन सारे अहबाब से दरख़्वास्त करता हूँ कि वो इस बिदअ़त से ख़ुद को बचाएँ और जो अहबाब मुझे ‘अलहाज’ या ‘हाजी’ लिखते हैं या इस नाम से पुकारते हैं अल्लाह के वास्ते इससे परहेज़ करें। अल्लाह आप सबको बेहतरीन अज्र से नवाज़े। आमीन। अलाह से दुआ है कि अल्लाह हम सब को नेक अमल की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।