अजमेर।गुरुदेव श्री सौम्य दर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि अगर व्यक्ति थोड़े से विवेक को धारण कर लेवे तो हर क्रिया में वह धर्म कर सकता है। खाते,उठते बोलते समय धर्म हो सकता है। इसी के स्नान करते समय भी धर्म हो सकता है ।जैन दर्शन में पानी को जीव माना गया है, और इसके आश्रित भी अनेक जीव माने गए हैं ।इसलिए जीव रक्षा के लिए स्नान के विवेक की आवश्यकता है , स्नान निषेध की बात कही जाती है अगर आप पूर्ण रूप से स्नान का त्याग नहीं कर सकते हैं और स्नान करना भी पड़े तो आप कुछ बातों का विवेक अवश्य रखें जैसे कि ठंडे पानी में गर्म पानी और गर्म पानी में ठंडा पानी नहीं मिलाएं, इसी के साथ मस्ती के साथ स्नान नहीं बल्कि मजबूरी मानकर स्नान करने का प्रयास करें की जीव बिराधना तो हो रही है ,मगर मेरी कमजोरी है कि मैं बिना स्नान के नहीं रह सकता। एवं खड़े-खड़े स्नान नहीं करें क्योंकि उचाई से पानी गिरने पर पानी के जीवों को कष्ट ज्यादा होता है ।जहां तक संभव हो सके साबुन शैंपू आदि के प्रयोग से बचने का प्रयास करें i इससे त्वचा को नुकसान होता है एवं पानी भी अधिक खर्च होता है। तालाब, समुद्र, स्विमिंग पूल आदि में स्नान से बचने का प्रयास करें । आगे फरमाया कि चलते समय भी धर्म हो सकता है। इसके लिए बिना जूते चप्पल पहने चलने का अभ्यास करें ,पांव की त्वचा कोमल होने से जीवो को कष्ट होने की संभावना कम रहती है ।नीचे देखते हुए ध्यान पूर्वक चलने का प्रयास रहना चाहिए ।इधर उधर देख कर चलने से दुर्घटना की संभावना रहेगी अतः नीचे देखते हुए एक लक्ष्य से कि मेरे चलने से किसी भी जीव की विराधना ना हो ऐसा लक्ष्य रखकर चलने का प्रयास रहा तो चलते समय भी धर्म क्रियाओं को करने में व्यक्ति सफल हो सकेगा ।
धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया