हिंदू और आदिवासी समुदायों के बीच दूरी पैदा करने के लिए मणिपुर में करवाई जा रही है हिंसा
लखनऊ। मणिपुर में पिछले दो महीने से जारी हिंसा के बीच कूकी समुदाय की महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न का नया वीडियो सामने आने पर अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है।
लखनऊ मुख्यालय से जारी विज्ञप्ति में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि पिछ्ले 19 अप्रैल से जारी हिंसा के लिए केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारें ज़िम्मेदार हैं। वहाँ संघ के एजेंडे के तहत मैतेयी लोगों को कुकी जनजाति के खिलाफ़ हिंसा के लिए उकसाया जा रहा है। इसी कारण प्रशासन हिंसा को रोकने की गम्भीर कोशिश नहीं कर रहा। इसलिए वहाँ की स्थिति को देखते हुए संविधान के आर्टिकल 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाना चाहिए।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मणिपुर की हिंसा के लिए 19 अप्रैल को मणिपुर के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम वी मुरलीधरन का वह फैसला भी ज़िम्मेदार है जिसमें उन्होंने राज्य सरकार से मैतेयी लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार से केंद्र को सिफारिश भेजने का निर्देश दिया था। जो संविधान सम्मत नहीं था क्योंकि अनुसूचित जातियों और जनजातियों के श्रेणिकरण का अधिकार हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को है ही नहीं यह राष्ट्रपति का अधिकार है। इसीलिए सुप्रीम ने भी एमवी मुरलीधरन के इस फैसले को तथ्यात्मक तौर पर गलत बताते हुए सख्त टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा कि मणिपुर की हिंसा की किसी भी जाँच के दायरे में इस फैसले को देने वाले जज एम वी मुरलीधरन को भी रखा जाना चाहिए।
शाहनवाज़ आलम ने बताया कि संविधान बेंच के खिलाफ़ जाकर फैसला देने वाले जज के खिलाफ़ कार्यवाई के लिए 5 जुलाई 2023 को ही यूपी अल्पसंख्यक कांग्रेस ने हर ज़िले से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन भेजा था।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि पीएम के फ्रांस दौरे के समय यूरोपियन यूनियन द्वारा मणिपुर की हिंसा को रोक पाने में मोदी सरकार की विफलता संबंधित पास किये गए प्रस्ताव को सरकार ने गंभीरता से लिया होता तो आज मणिपुर की हिंसा रुक चुकी होती। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर के राज्य महिला प्रधान समाज हैं। ऐसी घटनाओं का वहाँ के लोगों पर मनोवैज्ञानिक तौर पर बुरा और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा जो देश की एकता और अखंडता के लिए घातक है।