सुप्रीम कोर्ट को आर्टिकल 32 के तहत मणिपुर के लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए
लखनऊ। मणिपुर की हिंसा संघ और भाजपा की विभाजनकारी राजनीति का हिस्सा है। इसके ज़रिये वो पूरे पूर्वोत्तर में आदिवासी बनाम गैर आदिवासी का तनाव पैदा करना चाहती है। इसी वजह से सरकार इसे रोकना नहीं चाहती। यह बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 106 वीं कड़ी में कहीं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर रहा है। लेकिन मोदी जी राष्ट्रपति शासन लगाना तो दूर एक बार भी उन्होंने शांति बहाली की अपील तक नहीं की। उन्होंने कहा कि 8 अप्रैल 1992 को मणिपुर में कांग्रेस की सरकार बनी थी। राजकुमार दोरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बनाए गए। तब वहां पर जातीय हिंसा हो गई। उस वक्त नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल की सलाह पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। क्या शांति के पक्ष में मोदी जी ऐसा करने का साहस दिखा सकते हैं?
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इस हिंसा के पीछे 19 अप्रैल 2023 को मणिपुर के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमवी मुरलीधरन का वह फैसला भी ज़िम्मेदार है जिसमें मैतेयी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का निर्देश राज्य सरकार को दिया था। जबकि यह अधिकार उनके दायरे में आता ही नहीं है। यह अधिकार राष्ट्रपति को है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से हाई कोर्ट के जज की इस अनुशासनहीनता पर कार्यवाई की मांग भी दोहराई जिसको लेकर अल्पसंख्यक कांग्रेस ने 5 जुलाई को हर ज़िले से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन भी भेजा था।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को आर्टिकल 32 के तहत कार्यवाई कर मणिपुर के लोगों के मौलिक अधिकारों की गारंटी सुनिश्चित करनी चाहिए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से रिटायर्ड जजों, रिटायर्ड अफ़सरशाहों, बुद्धिजीवियों का संयुक्त जाँच और शांति दल भी गठित करने की अपील की ताकि लोगों में संवाद और विश्वास बहाल हो सके।