आगरा। सिकंदरा स्थित नहर वाली मस्जिद के ख़तीब व इमाम जुमा मुहम्मद इक़बाल ने ख़ुत्बा ए जुमा में कि आज के जुमा के ख़ुत्बे में बात करेंगे कि अल्लाह ने हमें किस काम के लिए दुनिया में भेजा। क्या हमें इस बात का मालूम है? जो लोग जानते हैं वो क़ाबिले मुबारकबाद है लेकिन जो नहीं जानते वो खुद-अपने दिल से फ़तवा मालूम करें कि वो किस कैटेगरी में हैं, अल्लाह ने इंसान को तमाम कायनात में अशरफ़ बनाया। किस लिए ? क्योंकि इस को बता कर भेजा है कि तुम्हें लोगों को “बुराई से रोकना है और भलाई की दावत देनी है”। सूरह आले इमरान आयत नंबर 110। मगर हम ख़ुद दुनिया में आकर इस काम को भूल गए हैं और अब हमें दूसरों की मिसाल दे कर समझाया जा रहा है। इससे बड़ी इंसान के लिए और क्या “ज़िल्लत” हो सकती है ? मिसाल भी उसकी जिसको खुद इंसान ने बनाया है, जी हाँ ! मोबाइल फोन की। हम सब जानते हैं कि फोन का असल काम एक दूसरे से बात-चीत कराना है लेकिन इस में और भी बहुत से “फ़ीचर” हैं जिनको आप इस्तमाल करते हैं, वाट्स ऐप, फेसबुक और इसी तरह बहुत सारे ऐप, जब हम कोई भी ऐप इस्तमाल कर रहे होते हैं और कहीं से कॉल आ जाए तो आप देखेंगे कि आप का फोन इस ऐप को रोक कर कॉल आप तक पहुँचाता है, असल काम एक दूसरे से बात चीत कराना है वो इसको याद है , लेकिन ये हज़रत, इंसान जिसे अल्लाह ने “अशरफ़ुल मख़लूक़ात” बनाया, वो दुनिया में इस क़दर मगन हो गया कि असल काम छोड़ दिया। हम सब को अपने रब के सामने वापस जाना है और इस का जवाब भी देना होगा। और ये तमाम चीज़ें अल्लाह ने क़ुरआन में और अल्लाह के नबी ने अपनी ज़िन्दगी में क़यामत तक आने वाले इंसानों के लिए बता भी दी हैं, मगर इंसान बहुत ही लापरवाह साबित हुआ है इस पर ना तो क़ुरआन का असर हो रहा है और ना ही हदीस का। हमें ये बात जान लेनी चाहिए कि अगर हम पर अल्लाह के कलाम का या नबी की बताई गई बातों का असर नहीं होता तो हम लोग इस ज़मीन पर चलती-फिरती “लाशें” हैं। हम सिर्फ़ क़ब्र में जाने का अपना वक़्त पूरा कर रहे हैं। जिस का वक़्त सिर्फ़ अल्लाह को मालूम है। अल्लाह के बंदों ! वक़्त बहुत तेज़ी से गुज़र रहा है हमें एहसास भी नहीं है। आख़िर हम नींद से कब जागेंगे? मौत के वक़्त तो फ़िरऔन भी जाग गया था। लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। आज इस मस्जिद से निकलने से पहले हमें ये फ़ैसला करना होगा, नहीं तो एक बहुत बड़ा नुक्सान हमारा इंतज़ार कर रहा है। अल्लाह हमें अपने असल काम पर वापस आने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये। आमीन।