उत्तर प्रदेश

रज़वी परचम से हुआ तीन रोज़ा उर्से रज़वी का आगाज़

बरेली। आला हज़रत फ़ाज़िले बरेलवी का 105 वा उर्से रज़वी का आगाज़ परचम कुशाई की रस्म के साथ हो गया। रात में नातिया मुशायरा व हुज्जातुल इस्लाम के कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। उर्स की सभी रस्में दरगाह प्रमुख हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान (सुब्हानी मियां) की सरपरस्ती व सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रज़ा क़ादरी (अहसन मियां) की सदारत में दरगाह परिसर व इस्लामिया मैदान में अदा की जा रही है। नातिया मुशायरा देर रात तक जारी था। नेपाल,साउथ अफ्रीका,मलावी,यूके,बांग्लादेश,श्री लंका के अलावा देश के कोने कोने से ज़ायरीन पहुँच गए है।
मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि आज इस्लामिया मैदान में रज़वी परचम मुख्य गेट पर नसब कर दिया गया। रज़वी परचम लहराते ही विधिवत उर्स का आगाज़ हो गया। नारे तकबीर अल्लाह हो अकबर,मसलक-ए-आला हज़रत ज़िंदाबाद के नारों के बीच दरगाह प्रमुख हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान (सुब्हानी मियां) ने अपने दस्ते मुबारक से (हाथों) सज्जादानशीन मुफ़्ती अहसन मियां,सय्यद आसिफ मियां व देश-दुनिया से आये उलेमा की मौजूदगी में ठीक 6बजे परचम कुशाई की रस्म अदा की। यहाँ फातिहा के बाद खुसूसी दुआ की। परचम कुशाई होते ही फ़िज़ा में आला हज़रत की लिखी नात व मनकबत गूँजने लगी। इससे पहले आजम नगर स्थित हाजी अल्लाह बख्श के निवास पर फातिहाख्वानी का एहतिमाम हुआ। लंगर के बाद परचमी जुलूस बजे दरगाह के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां की क़यादत में कुमार टाकीज,इंदिरा मार्केट होते हुए बिहारीपुर के ढाल के रास्ते दरगाह पहुँचे। यहाँ सलामी देने के बाद जुलूस दरगाह से दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हानी मियां की क़यादत में वापिस इस्लामिया मैदान पहुँचे। बाद नमाज़-ए- मग़रिब महफ़िल-ए-मिलाद हाजी गुलाम सुब्हानी व आसिम नूरी ने पेश की। *रात में 10 बजकर 35 मिनट पर आला हज़रत के बड़े साहिबजादे हुज्जातुल इस्लाम मुफ्ती हामिद रज़ा खान (हामिद मियां) के कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। मुफ़्ती सलीम नूरी बरेलवी ने अपने खिताब में कहा कि शिक्षा के लिए आज प्रचार प्रसार किया जा रहा है लेकिन हुज्जातुल इस्लाम ने 1938 में मुरादाबाद में हुई एक बड़ी कॉन्फ्रेंस में मुसलमानों से अपने बच्चों तालीम दिलाने पर ज़ोर देते हुए अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत करने का आव्हान किया। दुनिया भर में सुन्नियत की पहचान कराने में अहम रोल अदा किया। आला हज़रत की वजह से बरेली सुन्नियत का केंद्र बन गया। हम लोग मुल्क की हिफाज़त और आपसी सौहार्द और हिंदू मुसलमानो में बड़ी दूरियों के खत्म करने के लिए प्रयास करे।
इसके बाद नातिया मुशायरा हज़रत अहसन मियां की सदारत में मुफ़्ती आकिल रज़वी,मुफ्ती सलीम नूरी,मुफ्ती सय्यद कफील हाशमी,मुफ्ती मोइनुद्दीन,मुफ़्ती अफ़रोज़ आलम,मुफ़्ती अय्यूब,कारी अब्दुर्रहमान क़ादरी,मुफ़्ती अनवर अली,मौलाना डॉक्टर एज़ाज़ अंजुम,मौलाना अख्तर,मौलाना जिकरुल्लाह,की निगरानी में शुरू हुआ जो देर रात तक जारी था। मुफ्ती सलीम नूरी बरेलवी ने बताया कि मुशायरा का मिसरा तरही *”उंगलियॉ कानों में दे दे कर सुना करते है।”* पर शायरों ने अपने-अपने कलाम पेश किये। मुशायरा की निज़ामत (संचालन) मौलाना फूल मोहम्मद नेमत रज़वी व कारी नाज़िर रज़ा बरेलवी ने किया।
दूसरी तरफ दिन भर जिले भर से चादरों के जुलूस दरगाह पहुंचते रहे। रहपुरा से समी खान,अजमल खान,हफीज खान,उवैस खान, ठिरिया निजावत खा से वसीम खान,फहीम खान,रफत अली खान,राशिद खान,मुशाहिद खान स्वाले नगर से मुजाहिद रज़ा,सलमान रज़ा,वसीम रज़ा,आसिफ रज़ा आजम नगर से ज़ीशान कुरैशी,शहजाद कुरैशी,ज़ैद कुरैशी,फैज़ कुरैशी,किला,जसोली,फरीदापुर,आंवला,तिलयापुर,पुराना शहर आदि लेकर आए।

उर्स की व्यवस्था में उर्स प्रभारी राशिद अली खान,मौलाना ज़ाहिद रज़ा,कारी इकबाल रज़ा,मौलाना बशीर उल कादरी,परवेज़ नूरी,अजमल नूरी,ताहिर अल्वी,शाहिद नूरी,औरंगजेब नूरी,हाजी जावेद खान,नासिर क़ुरैशी,मंज़ूर रज़ा,आसिफ रज़ा,शान रज़ा,सय्यद फैज़ान रज़ा,यूनुस गद्दी,खलील क़ादरी,रईस रज़ा,मोहसिन रज़ा,तारिक सईद,मुजाहिद रज़ा,जुहैब रज़ा,आलेनबी,इशरत नूरी,ज़ीशान कुरैशी,हाजी अब्बास नूरी,सय्यद माजिद अली,सय्यद एज़ाज़,काशिफ सुब्हानी,अब्दुल माजिद,आसिफ नूरी,आरिफ रज़ा,फ़ारूक़ खान,सय्यद असद,साजिद नूरी,गौहर खान,सबलू अल्वी,हाजी फय्याज,,गफ़ूर पहलवान,सरताज बाबा,शहज़ाद पहलवान,आरिफ रज़ा,एडवोकेट काशिफ रज़ा,अजमल खान,समी खान,सुहैल रज़ा,शाद रज़ा,अरबाज़ रज़ा,आदिल रज़ा,जावेद खान,अब्दुल माजिद,साकिब रज़ा,रोमान रज़ा,हाजी शकील नूरी,ज़हीर अहमद,फ़ैज़ कुरैशी,नईम नूरी,मुस्तक़ीम नूरी,इरशाद रज़ा, आसिम नूरी,अश्मीर रज़ा,फ़ैज़ी रज़ा,अल्ताफ रज़ा,सलमान रज़ा,सय्यद जुनैद,सय्यद फरहत,ताहिर रज़ा,शाहीन रज़ा,जावेद खान,नफीस खान, हाजी शारिक नूरी,अज़हर बेग,जुनैद चिश्ती,अब्दुल वाजिद नूरी, शारिक बरकाती,गजाली रज़ा,मिर्जा जुनैद,वसी खान,नदीम रज़ा शेरपुरी, कैफ़ी रज़ा आदि दिन रात जुटे है।