जीवन शैली

एडजस्टमेंट का उसूल! मुहम्मद इकबाल

आगरा। मस्जिद नहर वाली सिकंदरा के ख़तीब-ए-जुमा मुहम्मद इक़बाल ने नमाज़-ए-जुमा से पहले अपने ख़ुत्बे में एडजस्टमेंट के उसूल पर बात की। उन्होंने कहा कि जब से ये दुनिया बनी है ये उसूल ही कामयाब है। अगर आप देखें कि जब अल्लाह ने ‘आदम’ को बनाया तो फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सज्दा करें तो सबने इस हुक्म को माना, लेकिन इब्लीस ने इनकार कर दिया। वो एडजस्टमेंट नहीं कर सका। नतीजा आपके सामने है क़यामत तक इस पर लानत रहेगी। दूसरी बात, जब अल्लाह ने आदम को कहा कि इस जन्नत में तुम और तुम्हारी बीवी रहो मगर इस दरख़्त के पास भी मत जाना, लेकिन इब्लीस ने उनको बहकाया और उस दरख़्त का फल खिला दिया। ये भी अल्लाह की ना फ़रमानी थी, अल्लाह ने जन्नत से निकल जाने का हुक्म आदम को दे दिया। यहां भी आदम ने एडजस्टमेंट किया अपनी ग़लती की माफ़ी मांगी, अल्लाह ने माफ़ किया। और भी बहुत सी मिसालें दी जा सकती हैं। क्योंकि आप ‘स्मार्ट फ़ोन’ इस्तेमाल करने वाले हैं तो आपको बात समझ आ गई होगी। इसी उसूल को अगर हम अपनी ज़िंदगी में अपनाएँ तो हमारे बहुत से मसाइल हल हो सकते हैं। चाहे वो कारोबार हो, आपसी मेल-जोल हों, शादी ब्याह हो या ज़िंदगी में आने वाले कोई भी मसाइल हों सब इसी उसूल पर हल किये जा सकते हैं। हक़ीक़त ये है कि मामलात हमेशा टकराव की वजह से ख़राब होते हैं। टकराव से बचना ही एडजस्टमेंट का उसूल है। ये ही वो कामयाब उसूल है जिससे एक कामयाब ज़िंदगी का रास्ता खुलता है। हमको इसी फ़ॉर्मूले पर अमल करना पड़ेगा। दूसरा ऑप्शन है ही नहीं। या फिर टकराव पर अमल करके दुनिया और आख़िरत दोनों ख़राब करलें। फ़ैसला हमें ही करना है। अल्लाह हम सबको नेक अमल की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।