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सरकार बनाम सरकारी एक देश दो विधान क्यों?

काम करें सरकारी और मौज करें सरकार... यह पंक्ति ही तकरार की गाथा समझने को काफी है। वह माननीय सांसद, माननीय विधायक जो चुनकर आते हैं हमारी आपकी वोट की ताकत से महज पांच साल के लिए वो सब मिल जुल कर, अपना एक मुखिया चुन सरकार हो जाते हैं, वहीं दूसरी ओर जीवन के शुरुआती सफर के बीस पच्चीस साल लगातार किताबों की कतार पार कर दुख, दर्द, गुरबत, मान, अपमान, मजबूरी की ठोकरें सह सैकड़ों परीक्षा फॉर्म भर कभी फेल, कभी पास होने के बाद कलेक्टर, इंजीनियर, डॉक्टर, इंस्पेक्टर, अधीक्षक, अध्यापक बनते हैं। ये सरकारी सरकार की वर्दी तन बदन पर सजा कभी देश के लिए हर वक्त हथेली पर प्राण लिए सरहद पर खड़ा जवान हो जाते हैं या फिर हर सांस को बचाने के लिए प्रतिपल बेताब अस्पताल के डॉक्टर नर्स बन यमराज से हमारे लिए लड़ जाते हैं, तो कहीं काले बोर्ड के कणों से भारत की बुलंद तस्वीर उकेरते मास्टर हो देश की नींव मजबूत कर रहे हैं या फिर चांद के पार ले जाने वाले वैज्ञानिक बन देश सेवा को ही जीवन की आराधना मान बैठे हैं। यह सब पढ़े लिखे अपनी काबिलियत का लोहा मनवा नौकरी पाने वाले सरकारी कहलाते हैं। सरकार का सारा बोझ इन्हीं सरकारी मुलाजिमों के कंधे पर होता है। सरकार का उत्थान करने वाले यह सरकारी अपने से कम कई बार तो अंगूठा छाप सरकार बन बैठे खाकी धारी का बोझ उठाते-उठाते इतना दब जाते हैं या यूं कहें दबा दिए जाते हैं कि अपने हक, अधिकार, हुकूक, न्याय के लिए लड़ना तो दूर कहना भी भूल जाते हैं। ऐसी एक सरकार ने अटल के नेतृत्व में आकर फैसला लिया। बात है सन 2004 की और इस सरकार के कार्यकाल में सरकार बनाम सरकारी की एक गहरी खाई खोदी गई या यूं भी कहा जा सकता है कि एक देश में एक संविधान वाली सोच पर एक देश दो विधान जबरिया थोप दिया गया। इस अटल आदेश से सरकार को पेंशन मिलती रहेगी और सरकारी की पेंशन एकदम बंद। इस कर्मचारी विरोधी अटल नीति के कारण आज देश में सरकारी कर्मचारियों की दुर्दशा हो रही है और महज कुछ महीने, कुछ ही दिन या कुछ साल के लिए सेवक बन चुनकर आने वालों पर सरकारी खजाना बेपनाह लुटाया जा रहा है। कुछ दिन भी संसद में या विधानसभा में बैठ जिंदगी भर पेंशन लेने के हकदार बनने वाले नेताओं की पेंशन क्यों जारी है? पीड़ा महज इस भेदभाव, चरित्र, नियति से है कि यह जितनी बार भी संसद या विधानसभा में चुन कर आएंगे उतनी ही बार, हर बार, बार-बार पेंशन पाएंगे। इस कर्मचारी विरोधी अटल नीति का दुष्प्रभाव यह हुआ कि सरकारी बन पूरी जिंदगी सरकार की चाकरी में खपा देश हित में खड़े रहने वाले कर्मचारियों के हिस्से बुढ़ापे में हासिल होगा शिफर और नेता नगरी के हिस्से सात-सात आठ-आठ पेंशन की हिस्सेदारी मनमानी से आ रही है। यह सरकार चलाने का तरीका है जिसमें सरकारी शोषण की छूट, खजाने की लूट और दोहरी नीति की भावना की अपार संभावना भरपूर बरस रही है। सरकार अपनी बनाई नीति से मौज मार रही है और सरकारी का हक अधिकार, बुढ़ापे का सहारा, जवानी के सपने छीन मगरूर हो चली है। अगर पुरानी पेंशन जरूरी और मजबूरी नहीं होती तो आखिर सरकार इसे खुद के लिए लागू क्यों रखती? सरकार जो देश के खजाने की चाबी बन बैठी है, अपने तमाम भत्ते, हवाई सफर, बिजली, फोन, यात्रा, नौकर, चाकर, कार, पेट्रोल, डीजल, सुख सुविधा समेत वह सभी कुछ डकार रहे हैं जिसका अधिकार स्वयं ही स्वयं को दे वह देश के अधिकारी बन बैठे हैं। यही पेंशन जो जिंदगी में महज एक बार सरकारी कर्मचारी को मिलनी है वह पुलिस, जवान, कलेक्टर, डॉक्टर, इंजीनियर, नर्स, अध्यापक, पटवारी, चपरासी, न्यायाधीश से छीन यह कैसा और कैसे देश हित कर रहे हैं? यह एक देश दो पेंशन का नियम पहेली बन सरकारी लोगों के दिलों में शूल बन चुभ रहा है और इस शूल के मूल में है अटल बिहारी वाजपेेयी की वह गलती है जिसमें सरकारी कर्मचारी और सरकार को एक ही देश में दो विधान बना अलग-अलग खेमे में खड़ा कर दिया गया है। इस दुर्भाग्यपूर्ण खून पसीना बहाने वाले का हिस्सा छीन लिया गया और सरकारी मौन है, सहने को मजबूर भी हैं और अपने ही ख्वाब का ताला थामे खामोश जुबां से दूर खड़े नजर आते हैं। सरकारी है तो सरकार है यह अब समझना ही होगा, सरकारी है तो सुरक्षा है, सरकारी है तो शिक्षा है, सरकारी है तो रक्षा है, सरकारी है तो नीति है, सरकारी है तो तो जख्मों पर मरहम है, इलाज की संभावना है, सरकारी कर्मचारियों की अनदेखी कर सरकार अगर खुद ही आठ-आठ पेंशन डकारती रही तो अब सरकारी कर्मचारी मिल-जुल कर एक ऐसी सरकार चुनने को मजबूर हो जाएंगे और चुनकर लाएंगे जो डंके की चोट पर ललकार कर एलानिया कहेगी पहली कलम से पुरानी पेंशन बहाल होगी। 1 अक्टूबर ऐतिहासिक रामलीला मैदान गवाह बनेगा उस चेतावनी भरे एलान का "जो पेंशन से करे इनकार, बदलो बदलो वह सरकार।" "पेंशन नहीं तो वोट नहीं" का नारा दे एनएमओपीएस ने पेंशन पुरुष विजय बंधू के नेतृत्व में पांच राज्य में सत्ता बदलकर सरकार से पेंशन बहाल कर ली है। अब 2024 में केंद्र की बारी है यह साफ है अबकी बार पेंशन वाली सरकार तो सरकारी कर्मचारी भाईयो बहनों नातेदार रिश्तेदारों के साथ हो जाओ तैयार क्योंकि बात हमारे आपके मान-सम्मान, स्वाभिमान, सुरक्षा और बुढ़ापे के सहारे की है। अब नहीं तो कब साथियों अब नहीं तो कब ?

ललिता अध्यापक

लेखक