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कोर्ट में हंसते थे बापू की हत्या के साजिशकर्ता, न था कोई पछतावा ना कोई डर

अकरम खान की कलम से

2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन है। इस मौके पर हम आपको उनकी हत्या में गिरफ्तार अभियुक्तों की पेशी के दौरान का एक दुर्लभ वीडियो के बारे में बताने जा रहे हैं। इसमें अदालत की कार्रवाई के दौरान वे हंसते हुए नजर आ रहे हैं। इसे देख ऐसा लगता है मानों उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा और अपने अंजाम का कोई डर नहीं था।

ऐतिहासिक क्लिप सहेजने वाली एजेंसी ब्रिटिश पाथे का यह वीडियो 27 मई 1948 को मुकदमे की सुनवाई शुरू होने के वक्त का है। इस वीडियो की शुरुआत लाल किले के शॉट से होती है जहां मुकदमा चल रहा है। इसके बाद मुकदमे की सुनवाई देखने जाते लोगों की तलाशी का दृश्य नजर आता हैं।

आगे बिड़ला भवन दिखता है। उस जगह पर अब एक चबूतरा बना दिया गया है जहां गांधीजी को गोली लगी थी। इस पर हे राम लिखा है। लोग जूते उतारकर इस जगह पर दर्शन करने आ रहे हैं। इसके बाद कैमरा मुकदमे के न्यायाधीश आत्माचरण को दिखाता है जो शायद पत्रकारों से बातचीत कर रहे हैं।

फिर जस्टिस आत्माचरण अदालत में बैठे दिखते हैं और अगले ही दृश्य में कैमरा कटघरे में बैठे आरोपी नजर आते है। सुनवाई के दौरान अदालत में वैसा ही हंगामा था जैसा आज दिखता है। लोग आ-जा रहे हैं और कटघरे में बैठे आरोपियों से बात भी कर रहे हैं। वीडियो में नाथूराम गोडसे और बाकी आरोपियों को कैमरे में कैद करते पत्रकार भी इसमें नजर आ रहे हैं।

गोडसे के पड़ोस में बैठे नारायण आप्टे, विष्णु करकरे और पीछे बैठे मदनलाल पाहवा को देखकर ऐसा लगता है कि उन्हें अपने जुर्म की गंभीरता का अहसास नहीं है। नाथूराम गोडसे, नारायण दत्तात्रेय आप्टे और विष्णु रामकृष्ण करकरे कठघरे में पहली पंक्ति में बैठे हैं। उनके पीछे दूसरी पंक्ति में दिगंबर रामचंद्र बडगे, मदनलाल पाहवा और नाथूराम के भाई गोपाल गोडसे है।

तीसरी पंक्ति में शंकर किष्टैया, विनायक दामोदर सावरकर और दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे को भी देखा जा सकता है। वीडियो देखकर लगता है जैसे नाथूराम गोडसे अदालत में होकर भी वहां नहीं हैं। ज्यादातर वक्त वह आसपास के माहौल से कटा हुआ नजर आता है। एक ही दिशा में देखते हुए। 1965 में इस मुकदमे के बारे में जस्टिस जीडी खोसला ने कहा भी कि उसके चेहरे पर इस काम के लिए कोई पछतावा नहीं दिखता था।

उधर गोडसे के पड़ोस में बैठे नारायण आप्टे, विष्णु करकरे और पीछे बैठे मदनलाल पाहवा को देखकर ऐसा लगता है कि उन्हें अपने जुर्म की गंभीरता का अहसास ही नहीं है। उनके हावभाव (खासकर करकरे के) ऐसे हैं जैसे वे अपने घर के ड्राइंग रूम में बैठे हों। आप्टे और करकरे आपस में बात करते हुए खूब हंस भी रहे हैं। करकरे तो कई बार उत्साह से उचक-उचककर लोगों की बात का जवाब देते दिखता है।

इस वीडियो में ठीक मदन लाल पाहवा के पीछे और तीसरी पंक्ति में बीच में बैठे विनायक सावरकर को शांति से बैठा दिखाया गया है। वीडियो में मदनलाल पाहवा को पहली नजर में देखकर ही ऐसा लगता है कि जैसे वह आज की किसी बॉलीवुड फिल्म का नायक हो। वह शर्ट भी बिलकुल आज के चलन के हिसाब से पहने हुए है जिसकी ऊपर की बटन खुली हुई है।

गांधी जी की हत्या 30 जनवरी 1948 को हुई थी। हत्या के जुर्म में गोडसे और नारायण आप्टे को मौत की सजा हुई। सावरकर को बरी कर दिया गया और गोपाल गोडसे और अन्य को उम्र कैद की सजा हुई। उच्च न्यायालय में अपील के बाद दो आरोपितों परचुरे और किष्टैया की सजा माफ हो गई जबकि बाकी की सजा बरकरार रही। गोडसे और आप्टे के लिए 15 नवंबर 1949 फांसी की तारीख तय हुई।

इस मुकदमे के बारे में एक दिलचस्प बात यह भी है कि इसके तीन आरोपितों का कभी कोई पता नहीं चला। ये थे गंगाधर दंडवते, गंगाधर जादव और सूर्यदेव शर्मा. वे फरार हो गए थे और आज तक कोई नहीं जानता कि उनका क्या हुआ।

उन दिनों देश में तब सर्वोच्च न्यायालय नहीं था। उच्च न्यायालय के बाद अपील करनी हो तो मुकदमा इंग्लैंड स्थित प्रिवी काउंसिल में जाता था। बताते हैं कि गोडसे नहीं चाहता था कि उसकी जान बचाने के लिए आगे अपील की जाए, लेकिन उसके घरवालों ने उसे बिना बताए अपील कर दी।

यह अक्टूबर 1949 की बात है। प्रिवी काउंसिल ने सुनवाई से मना कर दिया। उसका तर्क था कि 26 जनवरी 1950 को भारत में सर्वोच्च न्यायालय अस्तित्व में आ जाएगा और उससे पहले उसके लिए मुकदमा खत्म करना संभव नहीं होगा। लिहाजा उसकी सुनवाई का कोई मतलब नहीं बनता। इसके बाद गोडसे के परिजनों ने तत्कालीन गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी से उसकी सजा माफी की अपील की जो खारिज हो गई। यह सात नवंबर 1949 की बात है। इसके बाद गोडसे और आप्टे को अंबाला जेल में फांसी दे दी गई।