आगरा । मस्जिद नहर वाली सिकंदरा के इमाम ए जुमा मुहम्मद इक़बाल ने जुमा की नमाज़ से पहले अपने सम्बोधन में समाज में पल रही एक बहुत बड़ी ‘बुराई’ का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि इस्लाम में ‘ओल्ड एज होम’ का कोई कॉन्सेप्ट नहीं है, मगर अफ़सोस कि ये बीमारी अब हमारी तरफ़ भी बढ़ रही है और इसकी वजह सिर्फ़ दीन से दूरी है। अगर ज़िंदगी में दीन होगा तो मुम्किन ही नहीं कि ‘ओल्ड एज होम’ की बीमारी हमारी तरफ़ क़दम बढ़ाये। जिस दीन में ये बताया गया हो कि ‘माँ’ के क़दमों के नीचे ‘जन्नत’ है वो औलाद बुढ़ापे मैं किस तरह माँ बाप को घर से निकाल कर ओल्ड एज होम में भेज सकती है ? लेकिन अब ऐसा हो रहा है।
मुहम्मद इक़बाल ने कहा कि अल्लाह ने क़ुरआन में अपने बाद माँ-बाप के हुक़ूक़ बयान किए हैं, लेकिन हमारे अंदर दीन है ही नहीं। सूरह बनी-इस्राईल आयत नंबर 23 में बताया गया है– “अगर तेरी मौजूदगी में उनमें से एक या दोनों बुढ़ापे को पहुंच जाएं तो उनको उफ़ तक ना कहना, ना उन्हें डाँट डपट करना, बल्कि उनके साथ अदब व एहतिराम से बात करना।” ये है इस्लाम की तालीमात।
मुहम्मद इक़बाल ने खा कहा कि हम सबने एक जुमला ज़रूर सुना होगा कि “माँ मेरे साथ रहती है” अल्लाह के बंदो ! आज इस जुमले को दरुस्त करलो ये कहा करो “मैं अपनी माँ के साथ रहता हूँ” ये है ठीक बात। असल में जो ‘जुमला’ हम बोल रहे हैं वो पहली सीढ़ी है माँ-बाप को घर से बाहर करने की। इस पर ग़ौर करें। क्या कोई बचपन में ये कहता है कि मेरे माँ बाप मेरे साथ रहते हैं ? बच्चा कहता है कि मैं अपने माँ बाप के साथ रहता हूँ। बड़े हो कर ये तब्दीली ‘क्यों’ ? ये ही असल जड़ है जहां से ख़राबी शुरू होती है। इसको पहले तब्दील करें फिर अच्छा रिज़ल्ट आएगा इन-शा-अल्लाह। अल्लाह तो हमें सिखा रहा है “ऐ हमारे परवरदिगार ! मुझे बख़्श दे और मेरे माँ बाप को भी और बाकी मोमिनों को भी जिस दिन हिसाब होने लगे।” (सूरह इब्राहीम आयत नंबर 41)। कल सबको अल्लाह की अदालत में हाज़िर होना है अगर माँ-बाप ने आपके ख़िलाफ़ गवाही दे दी तो क्या अंजाम होगा ? आज इस पर ग़ौर कर लें। दुनिया और आख़िरत ख़राब ना करें। अगर अभी तक कोई ग़लती हो रही है तो आज ही माफ़ी मांगें और अपने को दरुस्त कर लें। कहीं ऐसा ना हो कि बहुत देर हो जाए। वो वक़्त बहुत मुश्किल होगा। कहीं से भी मदद नहीं मिलेगी। अल्लाह हम सबको अपने साथ-साथ माँ-बाप की क़दर की भी तौफ़ीक़ अता फ़रमाए।