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ऐ रामलीला मैदान तू जिंदाबाद

एक ऐसा मंच जो आवाज का अड्डा, नारों की जमीं, ललकार, एलगार, पुकार, दुतकार, फटकार, अर्चना, याचना, निवेदन, वंदन, अभिनंदन, संदेश, आदेश या फिर तानाशाही मनमानी पर उतारू सरकारों को चेतावनी हो, यह आह्वान प्रतीक बन जीत की राह तय करता है "चलो रामलीला मैदान।" दिल्ली का रामलीला मैदान समतल होने से पहले एक बड़े तालाब के रूप में जाना जाता था। समतल होने के बाद सुनामी बन देश और दुनिया के सामने जिंदा है, जिंदाबाद है। जो रामलीला मैदान 1880 में मुगल सैनिकों ने जो प्रभु राम की लीला मंचन का आरंभ किया था उस रामलीला मंच को माँ यमुना के रेतीले तट से हटा कर सन् 1930 में इसी दर पर, इसी जमीन पर स्थित तालाब को पाट सपाट किया गया था रामलीला के मंचन के लिए तभी से इस विशाल मैदान को रामलीला मैदान का नाम मिला। सन् 1961 में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के स्वागत के लिए देश के दिल दिल्ली के इस मैदान को राजनीति के लिए पहली बार खोलने का श्रेय मुल्क के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को जाता है। सन् 1963 में हिंदी चीनी युद्ध के बाद स्वरकोकिला लता मंगेशकर ने इसी रामलीला मैदान के मंच से पंडित नेहरू की उपस्थिति में पंडित प्रदीप का गीत "ए मेरे वतन के लोगों" को सुरों में पिरो सुरमाओं का वंदन किया था जो अपने लहू का चंदन मां भारती के चरणों में लगा सदा सदा के लिए सो गए। सन् 1965 में ललिता पति लाल बहादुर शास्त्री ने हिंदुस्तान को इसी विराट मैदान से "जय जवान जय किसान" का कालजई नारा दिया। अब तक रामलीला मैदान सरकार और सरकारी फरमान का साक्षी बनता रहा था। 25 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण ने इस मैदान से सरकार को ललकार "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" उद्घोष दिया, जन बल देख सरकार कांप गई, इंदिरा जेल गई। यह पहला विरोध प्रदर्शन इतिहास का नया अध्याय बन जन मन के सामने आया रामलीला मैदान। फरवरी 1977 बाबू जगजीवन राम, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेेयी की अगुवाई में जनता पार्टी की इसी मैदान की छांव में नींव डाली। उसके बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ 2011 अन्ना आंदोलन का रूप 2013 और 2015 केजरीवाल सरकार का शपथ ग्रहण समारोह। उसके बाद फिर एक गहरी नींद की चादर ओढ़, खामोशी का बिस्तर सजा रामलीला मैदान एक दशक से ज्यादा चुपचाप, गुमनाम रहा। इस बार ऐतिहासिक मैदान को जगाने इतिहास लिखने का जिम्मा लिया एक गरीब किसान के लाल, पुरानी पेंशन बहाली के प्रणेता एक साधारण अध्यापक की असाधारण सोच ने जिसने इस मैदान के चप्पे चप्पे को खचाखच भर इस मैदान के चारों ओर सिरों का सैलाब इकट्ठा कर सरकार को चुनौती दी "पेंशन नहीं तो वोट नहीं"। 18 हजार किलोमीटर की पेंशन यात्रा कर एक एक सरकारी कर्मचारियों को जोड़ सरकार के जड़ें हिला दी, यह पहला मौका रामलीला मैदान के दिल में कैद हुआ जिसमें सरकार के खिलाफ सरकारी आ खड़े हुए। पेंशन विहीन सरकारी कर्मचारियों का रेला देख राजनीतिक पंडितो की बुद्धि चकरा गई, खबरों की दुकान चलाने वाले इस जन सैलाब को छुपाने के लाख जतन करने के बजाय छापने को मजबूर हो गए। लाख पहरा, बाधा, रोड़ा, रुकावटो के बाद भी विजय बंधु की अद्भुत विजय हुई और साक्षी बने लाखों लाख लोग जो आज से पहले कभी रामलीला मैदान एक साथ एक नारे एक पुकार पर कभी नहीं आए। जेपी, अन्ना की भीड़ को मात दे बंधु विजय की पटकथा लिख आज देश के सामने सबसे आगे खड़े हैं। सरकार के खिलाफ सरकारी सुनामी 24 से पहले की वह लहर है जिसे सरकार ने अगर नजरअंदाज करने की कोशिश की तो तख्तो ताज का बह जाना निश्चित है। आज देश भर में सरकार के खिलाफ चार करोड़ पेंशन विहीन सरकारी कर्मचारी हैं। अगर वे इस आह्वान पर परिवार सहित लामबंद हो खड़े हो गए जिनकी वोटों की गिनती 20 करोड़ के पार है तो आंकड़ा साफ है यह संख्या सिंहासन पर भारी पड़ेगी। यह करदाताओं, मतदाताओं, सरकारी कर्मचारियों की सुनामी है जो पेंशन के विरुद्ध खड़ी किसी भी सरकार को बहा ले जाने की धार रखती है। रामलीला मैदान जो आंदोलनो की जननी है, सरकारों की सत्ता बनाने बिगाड़ने के लिए भी प्रसिद्ध है इस बार पुरानी पेंशन पाने की जंग को जीतने के लिए बेताब है। पेंशनविहीनो की इस लड़ाई में अंगड़ाई ली दिल्ली के कांग्रेस अध्यक्ष अरविंद सिंह लवली, संदीप दीक्षित के साथ पहुंच पेंशन विहीनों को खुला समर्थन दिया और राहुल गांधी का संदेश मंच से पूरे देश को दिया "सरकार हमारी, तो पेंशन तुम्हारी" पहली कलम से बहाल होगी। कांग्रेस पहले ही पेंशन विहीनो के हाथ से हाथ मिला हिमाचल, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में जीत का स्वाद चख चुकी है। मध्य प्रदेश में पेंशन बहाली की घोषणा प्रियंका गांधी पहले ही कर चुकी हैं और इस रामलीला मैदान से लाखों कर्मचारियों के सामने कांग्रेस का वादा फिर दोहरा गए लवली साफ साफ बोल कर "राहुल गांधी आएंगे, देश में पेंशन लाएंगे।" मीलों मील ट्रक, रेल, बस, साईकिल, पैदल चल पहुंचने वालों के बीच रामलीला मैदान को एक नया नारा संकल्प के रूप में फिर मिला। इस बार बारी थी दिल्ली की नारी, आवाज ललिता अध्यापक की पेंशन विहीन लाखों साथियों की सुनामी को संबोधित करते हुए उन्होंने रामलीला मैदान के मंच से उदघोष किया "पेंशन से जो करे इनकार, बदलो बदलो वो सरकार।" यह नारा आज सरकार के खिलाफ हर सरकारी की ललकार बन पूरे देश के हर सरकारी कार्यालय में लहर बन गूंज रहा है। यह नारा आज सरकार के कानों में शीशे की तरह पड़ रहा है जो 24 में एक नया इतिहास रच पेंशन बहाल की राह बनाएगा। संदेश साफ है तुम पेंशन नहीं दोगे तो दूसरे को चुनेंगे पेंशन ले कर रहेंगे अब और नहीं सुनेंगे और नही सहेंगे। विजय बंधु ने एक बार फिर सोते हुए रामलीला मैदान को जगा सरकार की नींद उड़ा दी है। यह एक पेंशन विहीन अध्यापक की जीत है, यह एक आंदोलन की जीत है, यह एक उम्मीद की जीत है, यह जीत है भारत के लोकतंत्र की। संदेश साफ है तानाशाही नहीं चलेगी मनमानी नही चलेगी। सरकार के खिलाफ खड़े सरकारियों का यह आंदोलन एक नया इतिहास रचने को अब बेताब है जिसमें सरकारी ही सरकार के खिलाफ ताल ठोक बता रहे हैं हमारी नहीं सुनोगे तो सत्ता में कैसे रहोगे?

पंडित संदीप मिश्रा