लखनऊ। सम्राट अकबर ने उस समावेशी नज़रिए की नींव रखी जिसपर चलकर भारत एक बहुलतावादी और सशक्त देश बन पाया। अकबर विद्वता और योग्यता के आधार पर प्रशासन की ज़िम्मेदारी देता था। उसके द्वारा भू राजस्व में लाया गया क्रांतिकारी परिवर्तन आज तक चल रहा है। सबको साथ लेकर चलने की अकबर की नीति आज भी प्रासंगिक है।
ये बातें लखनऊ विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर पी के घोष ने अल्पसंख्यक कांग्रेस द्वारा प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पर सम्राट अकबर की जयन्ती पर आयोजित गोष्ठी में कही।
प्रोफेसर घोष ने कहा कि अकबर ने युद्ध में पराजित होने वाली सेनाओं के धर्म परिवर्तन की परंपरा को खत्म कर दिया था। हिंदू धार्मिक त्योहारों पर लगाए गए कर को भी खत्म कर दिया और जज़िया कर भी समाप्त कर दिया। जो अकबर के धर्म निरपेक्ष शासन दृष्टि को रेखांकित करता है।
शिया पीजी कॉलेज लखनऊ के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ० अमित कुमार राय ने अकबर की राजपूत नीति के बारे में बताते हुए कहा कि महाराणा प्रताप महान थे लेकिन इससे अकबर की महानता कम नहीं हो जाती है। अकबर ने राजपूतों का विश्वास हासिल करने का प्रयास किया इसके लिए उसने राजपूतों को बिना धर्म परिवर्तन कराए अपने प्रशासन से जोड़ा।
जेएनपीजी कालेज के प्रो० हिलाल अहमद ने अकबर के राजस्व नीति के बारे में बताया कि किस तरह टोडरमल ने भूराजस्व बंदोबस्त को दुरुस्त किया।
अल्पसंख्यक कांग्रेस के चेयरमैन शहनवाज आलम ने बताया कि अकबर को हमें पढ़ना चाहिए, अकबर एक तार्किक व्यक्ति था वह सभी धर्मों के विद्वानों से इबादतखाने में चर्चा करता था। आज भी हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए।
संचालन करते हुए कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता मनीष हिंदवी ने अकबर के सभी पक्षों को उठाया।
उन्होंने कहा कि पुरानी बातों को भूलकर हमें आज की समस्याओं को सुलझाना चाहिए।कार्यक्रम में लोगों ने अपने प्रश्न भी किए जिसका प्रोफेसर पी के घोष ने जबाब भी दिया। कार्यक्रम में डॉ० श्रवण गुप्त, डा० आलोक यादव,प्रो हनीफ, संजय शर्मा अल्पसंख्यक कांग्रेस के महामंत्री शाहनवाज खान,
उपाध्यक्ष अख्तर मालिक सहित अन्य पदाधिकारियों ने भाग लिया।