उत्तर प्रदेश

कौन हैं आज़म खान, जिन्हें तबाह करना चाहती है भाजपा

वर्तमान में भाजपा सरकार पर कई विपक्षी नेताओं के खिलाफ बदले की कार्रवाई के आरोप लगे लेकिन इन नेताओं में भी जिनके खिलाफ पूरी बीजेपी टूट पड़ी है, उनका नाम है समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व सांसद, पूर्व क़ाबीना मंत्री, पूर्व विधायक आज़म खान साहब।

कांग्रेस राज में आपातकाल के विरोध में तमाम छोटे-बड़े नेताओं में आज़म खान भी जेल में रहे। उनका एक लंबा राजनीतिक संघर्ष रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शासन की इन हरकतों से उनका वह पुराना इतिहास नहीं धुल जाएगा जिसमें वे रामपुर और आस-पास की राजनीति का चेहरा बदल देने वाले नायक के तौर पर नजर आते हैं।

आज़म खान के रामपुर की राजनीति के आजम बनने की कहानी 1974 से शुरू होती है, जब वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र संघ के महासचिव चुने गए थे। उसी समय आपातकाल लगा और उनके कांग्रेस विरोधी रवैये के कारण उन्हें भी जेल भेज दिया गया।

आपातकाल में जहां ज्यादातर नेताओं को राजनीतिक कैदी का दर्जा देकर ठीक-ठाक तरीके से जेल में रखा गया था, वहीं आज़म खान उन खास लोगों में थे, जिन्हें पांच गुणा आठ फीट की ऐसी कोठरी में डाला गया था जिसमें रोशनी तक नहीं थी, बाद में छात्र होने के नाते उन्हें जेल में बी क्लास की सुविधा मिली।

प्रताड़ना केवल आज़म खान को ही नहीं, उनके परिवार को भी झेलनी पड़ी थी। उनके इंजीनियर भाई शरीफ खां पर तो नौकरी तक छोड़ने का दबाव पड़ा था। बहरहाल, छात्र राजनीति और जेल से शुरू हुई आजम की असली राजनीतिक पहचान नवाबी राजनीति के विरोध को लेकर रही।

आपातकाल के बाद जेल से छूटने पर आज़म खान का कद तो बढ़ गया लेकिन माली हालत खस्ता ही रही। उनके पिता मुमताज खान शहर में एक छोटा-सा टाइपिंग सेंटर चलाते थे। आज़म जेल से आते ही विधानसभा का चुनाव लड़ गए, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण कांग्रेस के मंज़ूर अली खान से हार गए।

इसके बाद शुरू हुआ दौर रामपुर के नवाब खानदान से टकराने का। रामपुर के नवाब यूसुफ अली 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के साथ थे, लेकिन उनकी बाद की पीढ़ी बदलते दौर में राजनीति में आ गई और उन्हें 1967 में कांग्रेस के टिकट पर उन्हीं के वारिस मिकी मियां के नाम से चर्चित जुल्फिकार अली खान सांसद बने।

तमाम रजवाड़ों की तरह रामपुर का नवाबी खानदान राजनीति में आते ही अपनी पुरानी धाक जमाने में सफल रहा। मिकी मियां तो 1967, 1971, 1980, 1984 और 1989 में सांसद बने ही, उनकी मौत के बाद 1996 और 1999 में उनकी पत्नी बेगम नूर बानो भी सांसद चुनी गईं।

नवाबी खानदान की राजनीति के उरूज के उस दौर में उन्हें चुनौती देने वाले बेहद मामूली खानदान के आज़म खान ही थे, जो निचले तबके और मजदूरों में अपनी पैठ बनाते जा रहे थे। उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी और रामपुर लोकसभा में जहां मिकी मियां सफलता हासिल कर रहे थे, वहीं विधानसभा चुनावों में आज़म भी जीतने लगे थे।

अंग्रेजी सरकार के विरोध के प्रतीक रहे पत्रकार और शायर मौलाना मोहम्मद जौहर अली को अंग्रेज-परस्त नवाबी खानदान ने भी काफी प्रताड़ित किया था। आज़म खान ने अपने इस प्रेरणा स्रोत के काम को प्रचारित करने का जो फैसला किया वो अब तक जारी है। उनकी जिस यूनिवर्सिटी पर भाजपा सरकार की निगाहें टेढ़ी हैं, वह इन्हीं जौहर अली के नाम पर है। मौलाना अली जौहर प्रमुख शिक्षाविद थे और जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना उन्होंने ही की थी। वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। उनका राउंड टेबल कांफ्रेंस में अंग्रेजों के सामने दिया गया ये बयान काफी चर्चित है कि हमें आजादी दे दो या फिर कब्र के लिए दो गज जमीन दे दो। 2003 में यूपी में सपा सरकार बनने पर आजम ने मौलाना अली जौहर ट्रस्ट बनाया और फिर इस यूनिवर्सिटी के निर्माण की कवायद शुरू की थी।

आज़म जैसे-जैसे ताकतवर होते गए, वैसे-वैसे रामपुर के नवाब खानदान की राजनीति पस्त होती गई। इस इलाके में सपा का असर बढ़ता चला गया। 2004 में तो सपा ने मुंबइया फिल्मों की हीरोइन जया प्रदा को यहां चुनाव में खड़ा किया और वे चुनाव जीत गईं।

2014 की मोदी लहर में भी भाजपा रामपुर से मामूली अंतर से ही जीत सकी, लेकिन यह तय हो गया कि नवाब का खानदान की सियासत के दिन चुक गए हैं। कांग्रेस के टिकट पर खड़े नवाब काज़िम अली खान को तकरीबन 16 प्रतिशत वोट ही मिले और वे तीसरे नंबर पर रहे। नवाबी खानदान की राजनीति 2019 में और सिमट गई। कांग्रेस ने भी नवाब के खानदान को टिकट नहीं दिया। कांग्रेस ने संजय कपूर को टिकट दिया जो केवल 35 हजार वोट पा सके थे, जबकि आज़म खान 5 लाख 59 हजार वोट पाकर सांसद बने। कभी उन्हीं पार्टी में रहीं जया प्रदा भाजपा के टिकट पर लड़कर 4 लाख 49 हजार वोट ही पा सकीं।

अब सत्ता में न होते हुए भी आज़म खान रामपुर के आज़म हैं, और उनका यही रसूख भाजपा को अखर रहा है। मंदिर आंदोलन के बाद आज़म सपा की मुस्लिम राजनीति के भी चेहरे बन गए लेकिन उनकी कभी सांप्रदायिक छवि नहीं रही। रामपुर शहर के विकास में उनकी भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। बीजेपी की यूपी में कई बार सरकारें रहीं, लेकिन बीजेपी का कोई नेता आज तक जौहर यूनिवर्सिटी जैसा कोई शिक्षा संस्थान नहीं बना पाया, जहां हर धर्म के हजारों विद्यार्थी उच्च शिक्षा ग्रहणन कर रहे हैं।

इस कारण से उनको प्रताड़ित करके भाजपा अपने कट्टर समर्थकों को भी खुश करना चाहती है।