नगर निगम की कार्य शैली से आगरा का आम नागरिक उत्पीड़ित है,
नगर निगम के कामकाज सुधार करने की आवश्यकता के लिए मुकदमा दायर
निगम की वेबसाइट पर अर्जियों और फाइलों की ट्रैकिंग की उपयुक्त व्यवस्था संभव करवायी जाये
नगर निगम एक्ट में न्यायिक मजिस्ट्रेट की नियुक्त का प्राविधान है.
आगरा। नगर निगम आगरा में कामकाज सही प्रकार से नहीं चल रहा है। सफाई और सड़कों व गलियों के प्रबंधन को लेकर तो अक्सर चर्चा होती ही रहती है,लेकिन अब निगम के सम्पत्ति विभाग के कामकाज की शैली से भी आम शहरवासी बेहद परेशान है। संपत्तियों का निगम रजिस्टर में नामांतरण जैसे सामान्य कार्य करवाने तक को लेकर समस्याएं उत्पन्न की जा रही हैं। अविवेकी परिश्रम और अनुचित मांगें रखकर उत्पीड़न करते हैं और जानबूझकर सर्विस डिलिवरी गैप को बड़ा करते हैं ।
हालातों का आकलन अभिनय प्रसाद के द्वारा अपने मकान का नामांतरण करवाने में हुई असुविधा से जूझने को लेकर किया जा सकता है। अभिनय अपनी मां स्व. डा सुधा सक्सेना के नाम दर्ज़ मकान अपने नाम करवाना चाहते थे। उनके पास मां के द्वारा की गयी वसीयत भी थी। लेकिन नगर निगम एक्ट और उप्र जनहित गारंटी अधिनियम 2011 के तहत इस अनिवार्य औपचारिकता को करवाने में जिन दुश्वारियों का सामना करना पडा वे अपने आप में निगम के कामकाज की स्थिति का आकलन करने के लिये पर्याप्त हैं।
–मुकदमा दायर करना पड़ा 166 आई पी सी में
नामांतरण संबंधित नगर निगम की अविवेकी, अनुचित और दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही के चलते अधिवक्ता देवेंद्र कुमार त्रिपाठी नें 25 अगस्त 2023 को नगर आयुक्त, नगर निगम को 166 आई पी सी का नोटिस दिया जिसका नगर आयुक्त, नगर निगम ने जवाब नहीं दिया। इससे क्षुब्ध होकर और अंतिम प्रयास के रूप में अपनाकर ‘166 आई पी सी’ के तहत अधिवक्ता द्वारा 03 अक्टूबर 2023 को मुकदमा दर्ज करने के लिये प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया। नगर आयुक्त नगर निगम आगरा के विरूद्ध दायर इस वाद में वादी के अधिवक्ता ने नगर निगम अधिनियम के तहत सभी औपचारिकताएं पूरी किये जाने के बावजूद प्रकरण को लंबित बनाये रखने पर गंभीर एतराज जता इसे भ्रष्टाचार संबंधित मामला बताया गया था।
एड. त्रिपाठी का कहना है यह एक गंभीर प्रकरण था। नामांतरण में विलंब का कारण नगरायुक्त के अधीनस्थ अधिकारियों और निरिक्षकों द्वारा अनुचित वसूली करने का प्रयास था। वादी की ओर से इस संबंध में अपने हलफनामे में संपत्ति विभाग के संबंधित क्लर्क व राजस्व निरीक्षक को आरोपित किया गया ।
उनके मकान का नामांतरण तो अंतत: नगर निगम के द्वारा कर ही दिया गया, लेकिन इसमें एक साल से अधिक का समय लगा। जिसमें अदालत का दरवाज़ा खटखटाना भी शामिल है। हाँलाकि ‘166 आई पी सी’ के प्रर्थनापत्र के दायर होने के बाद कि गई नामांतरण की कार्यवाही नगर निगम द्वरा अपराध कि स्विकारोक्ति है ।
बेहद बदलाव की जरूरत
सिविल सोसायटी ऑफ आगरा ने कहा कि मामला एक या दो प्रकरणों का ही नहीं अपितु उन तमाम शहरवासियों के हक और हित से संबंधित है जिनके साधारण से साधारण कार्य नगर निगम की कार्यप्रणाली के कारण नहीं हो पा रहे हैं। निगम की इस शिथिल और भ्रष्टाचार करने वालों के अनुकूल इस व्यवस्था में बेहद बदलाव की जरूरत है।अपने आप में विचारणीय है कि आनलाइन औपचारिकताएं पूरी करने के बावजूद लोगों के काम नहीं होते। ।
ऑनलाइन अर्जियों की ट्रेकिंग नगर निगम की वेबसाइट पर संभव नहीं है। फलस्वरूप आवेदकों में से अधिकांश को अपने कागज लेकर निगम क्लर्कों के पास पहुंचना मजबूरी हो जाता है। अर्जियों और फाइलों को लटकाना यहां प्रचलन में है, कार्य निस्तारण करना तो दूर फाइल मूवमेंट तक रूटीन तरीके से नहीं होता ।
पब्लिक एप्लीकेशन की ट्रैकिंग सुविधा हो
सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा के जनरल सेक्रेटरी अनिल शर्मा ने कहा है कि निगम की वेबसाइट पर अर्जियों और फाइलों की ट्रैकिंग की उपयुक्त व्यवस्था संभव करवायी जाये और सिटीजन चार्टर में निर्धारित अवधि से अधिक लटकने वाले प्रकरणों की जांच कर त्वरितता से निस्तारित करवाया जाये। उप्र जनहित गारंटी अधिनियम 2011 का पालन सुनिश्चित हो ।
सिविल सोसायटी ऑफ आगरा ने मांग की है, कि आगरा नगर निगम में न्यायिक मजिस्ट्रेट की नियुक्ति शासन के माध्यम से की जाए जो कि निगम में व्याप्त अनियमितताओं के कारण जनित विवादों पर तेजी के साथ सुनवाई और निस्तारण संभव हो।
शर्मा ने कहा है कि नगर निगम एक्ट में न्यायिक मजिस्ट्रेट की नियुक्त का प्राविधान है, निगम के तंत्र की व्यस्तता और अपने दायित्वों के प्रति बरती जाने वाली उदासीनता को दृष्टिगत नगर आयुक्त को शासन से एक न्यायिक मजिस्ट्रेट को नियुक्त करवाने को अनुरोध करना चाहिये। आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में, शिरोमणि सिंह, अनिल शर्मा, राजीव सक्सेना और अभिनय प्रसाद मौजूद रहे।