आगरा। ग्यारहवीं शरीफ का पर्व महान इस्लामिक ज्ञानी और सूफी संत हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी के याद में मनाया जाता है। उनका जन्म उस समय के गीलान प्रांत में हुआ था। जो कि वर्तमान में ईरान में है। हर साल इस्लामिक कैलेंडर के रबीउस सानी महीने में 11 तारीख को ग्यारहवीं शरीफ मनाई जाती है।
हजरत अब्दुल क़ादिर जीलानी को समर्पित है। जिनका जन्म इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार रमादान के पहले दिन सन् 470 हिजरी में हुआ था (ग्रोगोरियन कैलेंडर के अनुसार 17 मार्च सन् 1078 ईस्वी में) उनका जन्म उस समय के गीलान राज्य में हुआ था, जोकि वर्तमान में ईरान का हिस्सा है। उनके पिता का नाम शेख अबु सालेह मूसा था और उनकी माता का नाम सैय्यदा बीबी उम्मल कैर फातिमा था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हनबाली विद्यालय से प्राप्त की थी, जोकि सुन्नी इस्लामिक शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था। यही ग्यारहवीं शरीफ का इतिहास है।
आज देशभर में ग्यारहवीं शरीफ का त्यौहार मनाया जायेगा। यह त्यौहार इस्लाम के सबसे बड़े संत पीरों के पीर शेख सैय्यद अबू मोहम्मद अब्दुल कादिर जीनी रहमतुल्लाह अलैह से निस्बत रखता है। जिन्हें गौस ए आजम के नाम से जाना जाता है।
अब्दुल कादिर का ये मशहूर है उनका ये वाक्य
गौस ए आजम के करामात बचपन से ही दुनिया वालों ने देखी है। जब आप छोटे ही थे तो इल्म हासिल करने के लिए मां ने 40 दीनार (रुपये) देकर काफिला के साथ बगदाद रवाना किया। रास्ते में 60 डाकुओं ने काफिला को रोक कर लूटपाट मचाया डाकुओं ने किसी को भी नहीं छोड़ा और सबों का माल व पैसे लूट लिये। गौस ए आजम को नन्हा जान कर किसी ने नहीं छेड़ा चलते-चलते जब एक डाकू ने यूं ही पूछ लिया कि तुम्हारे पास क्या है. गौस ए आजम ने पूरी इमानदारी से कहा मेरे पास 40 दीनार है।
वह मजाक समझा और आगे निकल गया।एक दूसरे डाकू के साथ भी यही सब हुआ जब लूट का माल लेकर डाकू अपने सरदार के पास पहुंचे और नन्हें बच्चे का जिक्र किया तो सरदार ने बच्चे को बुलाकर कर मिलना चाहा. सरदार ने भी जब वही यही सब हुआ. जब लूट का माल लेकर डाकू अपने सरदार के पास पहुंचे और नन्हें बच्चे का जिक्र किया तो सरदार ने बच्चे को बुलाकर कर मिलना चाहा। सरदार ने भी जब वही बातें पूछा तो गौस ए आजम ने जवाब में वही दोहराये कि मेरे पास चालीस दीनार हैं। तलाशी ली गई तो 40 दीनार निकले।
आपकी शिक्षा से डाकुओं ने गुनाहों से की तौबा
डाकुओं ने जानना चाहा कि आप ने ऐसा क्यों किया। गौस ए आजम ने फरमाया सफर में निकलते वक्त मेरी मां ने कहा था हमेशा हर हाल में सच ही बोलना। इसलिए मैं दीनार गंवाना मंजूर करता हूं लेकिन मां की बातों के विरुद्ध जाना पसंद नहीं किया। गौस ए आजम की बातों का इतना असर हुआ कि सरदार समेत सभी डाकूओं गुनाहों से तौबा कर नेक इंसान बन गये। गौस पाक अपनी जिंदगी में मुसीबतें झेल कर वलायत के मुकाम तक पहुंचे। उन्हें वलायत में वह मुकाम हासिल हुआ जो किसी अन्य वली यानी संत को नहीं मिला।
सब वालियों की गर्दनों पर है उनका कदम
इसलिए गौस ए आजम ने फरमाया मेरा यह कदम अल्लाह के हर वली की गर्दन पर है।यह सुन कर संसार के सभी वलियों ने अपनी गर्दन झुका ली। मुल्क शाम में पीरों के पीर कहे जाने वाले हजरत मोहम्मद मुल्क शाम में पीरों के पीर कहे जाने वाले हजरत मोहम्मद बिन उमर अबू बकर बिन कवाम ने भी गौस ए आजम के एलान पर अपनी गर्दन झुका ली ख्वाजा गरीब नवाज सय्यदना मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुललाह अलैह मुल्क खरामां के एक पहाड़ में उन दिनों इबादत किया करते थे।
जब आप गौस ए आजम का एलान सुने तो अपना सिर पुरी तरह जमीन तक झुका लिया और अर्ज किये गौस ए आज आप का एक नहीं, बल्कि दोनों पैर मेरे सिर और आंखों पर है। गौस ए आजम परहेजगार, इबादत गुजार, पाकीजा, पाक व अल्लाह वालों के इमाम हैं. आप के हुक्म पर आम इंसान ही नहीं बल्कि सभी वली भी अमल करते हैं। अल्लाह ने गौस ए आजम को वह बलुंद मुकाम अता फरमाया कि वह अपनी नजर ए वलायत से वह सब कुछ देख लेते, जहां तक किसी आम इंसान की नजर, अक्ल व सोच भी नहीं जाती।
आपकी आवाज में अल्लाह ने वो असर दिया बिना लाउडस्पीकर के 70 हज़ार को करते थे संबोधित
गौस ए आजम की मजलिस में चाहने वालों का मजमा लगा होता था। लेकिन आप की आवाज में अल्लाह ने वह असर दिया था कि जैसे नजदीक वालों को आवाज सुनाई देती थी, वैसी ही दूर वालों को भी।गौस ए आजम की पैदाइश रमजान महीने में हुई थी।जन्म के समय ही आप सेहरी से इफ्तार तक मां का दूध नहीं पीते. जिस तरह रोजेदार रोजा रखता है, उसी तरह आप मां का दूध केवल सेहरी व इफ्तार के वक्त पीते थे।आप जब दस साल के हुए और मदरसा में पढ़ाई करने जाया करते थे तो फरिश्ते आते और आप के लिए मदरसा में बैठने की जगह बनाते थे।
फरिश्ते दूसरे बच्चों से कहते थे अल्लाह के वली के लिए बैठने की जगह दो आप का लकब मोहिउद्दीन है।जिसका अर्थ मजहब को जिंदा करने वाला है। आप मजहब की तबलीग करने के लिए बगदाद गये।आप ने 521 हिजरी में बगदाद में लोगों को मजहब व दीन की बातें फैलाने के लिए बयान फरमाये और 40 सालों तक अर्थात 561 हिजरी तक मुसलसल बहुत मजबूती से नेकी व मजहब की बातों को फैलाते रहे। बगदाद में लोगों को मजहब व दीन की बातें फैलाने के लिए बयान फरमाये और 40 सालों तक अर्थात 561 हिजरी तक मुसलसल बहुत मजबूती से नेकी व मजहब की बातों को फैलाते रहे।
आप की मजलिस में लोगों की भीड़ उमड़ती भीड़ को देखकर ईदगाह में बयान देना शुरू किये, लेकिन वहां भी जगह कम पड़ जाती इसके बाद शहर से बाहर दूर खाली जगहों पर जाकर बयान करते. उस जमाने में मजलिस में 70-70 हजार लोगों की भीड़ उमड़ आती थी. रवायत है कि आपका बयान सुनने के लिए जिन्नात भी आया करते थे। आप के पास बेशुमार इल्म था। जिसका फायदा दुनिया को मिला और इस्लाम नये सिरे से जिंदा हुआ।