आगरा। छीपीटोला स्थित दरगाह हज़रत सय्यदना ओलिया बाबा रह0 पर 11वी शरीफ़ के मौके पर हज़रत गोसुल आज़म शेख अब्दुल क़ादिर मौहीउद्दीन जिलानी रजि• फातिहा का एहतमाम हुआ |हज़रत गोसुल आज़म शेख अब्दुल क़ादिर मौहीउद्दीन जिलानी रजि• की शान मनकबत का नज़राना पेश किया |
सज्जादानशीं मियां मौहम्मद हुसैन रशीदी ने हज़रत गोसुल आज़म शेख अब्दुल क़ादिर मौहीउद्दीन जिलानी रजि• की हयात के बारे में कहा कि आपकी वालादत रमज़ान के महीने में हुई । आप अल्लाह के महबूब तरीन हस्तियों में से एक हस्ती आसमाने विलायत के आफ़ताब इल्मो ,मार्फत के ताजदार , सुल्तानुल ओलिया ,सुल्तान ऐ तरीकत हुज़्ज़ातुल आरफीन ,अलीम ऐ रब्बानी कुतबे ,रब्बानी कुतबे ज़मानी ,महबूबे सुब्हानी ,इमामुल फरीकेन वल तरिकेन गोसुस सकलेन, गोसुल वरा गोसे आज़म मोहीउद्दीन हज़रत मीरे मीरा पीर दस्तगीर हज़रत अब्दुल क़ादिर जिलानी रजि० की ज़ात अकद्दश वो ज़ात जो बागें सय्यदा फातमातुज ज़ोहरा रजि० के महकते बाग़ के फ़ूल है और इल्मो कायनात मोल अली रजि० रोशन चिरांग है । जो नाज़िबत तरफैन यानी जद्दी हसनी हुसैनी सय्यद है जिनका इल्मी मुकाम इतना रोशन और बुलन्द है । आप खुद गौसे आज़म खुद फरमाते है ” के में इल्म पढ़ते पढ़ते कुतब हो गया मेने अल्लाह ताला की मदद से सआदत को पालिया हज़रत गोसे आज़म को समझने के लिये आप के इल्मी मुकाम समझना उनकी मेहनत ज़ुस्तसज़ू और तकलीफ जो आपने बर्दास्त की उसको समझना बहुत ज़रूरी है तालिबे इल्म के लिये गोसे आज़म रजि० की कुर्बानिया फकरो फाका की तबील दास्तान है जो आपने इल्म हासिल करते वक़्त उठाई । इल्म हासिल करने वक़्त सख्त तरीन मुश्किलों का सामना किया । अपनी माँ को छोड़ा अपने वतन को छोड़ा 18 वर्ष की उम्र में तन्हा 400 मील से ज़्यादा खतरनाक सफर तय करके बगदाद शरीफ तशरीफ़ ले गये शुरुआत दौर में कई कई दिन भूखे पियासे रहे एक मर्तबा 20 दिनों तक आप को कुछ खाने को मयस्सर न हुआ । जब आप की तालीम शुरू और खत्म होने तक 8 साल की मुद्दत कैसी कैसी मुश्किलात का सामना किया गोसे आज़म रजि० खुद फ़रमाते है के मेने ऐसी ऐसी सख्तियां और मुसीबतें बर्दाश्त की है अगर वो किसी फहाड़ पर गुज़र जाये तो वो फहाड़ रेज़ा रेज़ा हो जाता ।आप गोसे आज़म खुद फ़रमातें है के जब मुझ पर ज्यादा सख्ती हो जाती तो में ज़मीन पर लेट जाता और क़ुरान की इस आयात का विरद करता ” बे शक तंगी के साथ आसानी है बे शक तंगी के साथ असानी है ” इस आयात की तकरार के बाद मुझे तस्कीन हो जाती फिर में ज़मीन से उठता मेरे सारे रंजो गम दूर हो जाते । आप फ़रमाते है के ज़माना ए तालिबे इल्मी से फारिग हो कर में जंगल बियाबान बिराने की तरफ निकल जाता शहर की बजाय में बिराने में रात बशर करता ज़मीन मेरा बिस्तर होती ईट या पत्थर मेरा तकिया होता ,वारिश, अंधी ,तूफान ,सर्दी गर्मी हर चिज़ से बे न्याज़ हो कर रात की तनहाइयों और तारीको में अपने खलीक और मालिक की ताशभी तहरीर में मगन होता । लिबास और गीज़ा का ये हाल था सरे अकद्दश पर छोटा सा इमाम बदन पर एक सूफ का जुब्बा होता। पेड़ के पत्ते और बूटियाँ और सब्जियां उन्हें तोड कर खता । आपने इन सब तकलीफो और मुसीबतों की परबाह न की ” मन्ज़िलों से आगे बढ़कर मंज़िल तलाश कर मिलजाए तुझको दरया तो समन्दर तलाश कर ” अल्लाह ताला पर तबककुल करके शुक्र और सब्र इत्मिनाम के साथ इत्मिनान के साथ हर इम्तिहान को बर्दाश्त करते हुए आगे बढते रहे फिर अल्लाह ताला ने आप को उलूमे ज़ाहिरी और बातिनी से और वो मुकाम आता किया उलमाए बगदाद किया उलमाए ज़माना आप से फ़ैज़ हासिल करते थे और आप सब पर सफ़क़त ले गए आप गोसे आज़म के इल्मो फ़ज़ल इल्मो मार्फत का पूरी दुनिया मे इतना शोरा हुआ की दूर दूर से बडे बड़े उलमा औलिया बल्कि जिन्नात जिनकी तादाद मजलिस में इंसानो से से ज्यादा होती वो शरीक होते और रिज़ॉलगैब भी आप की मजलिस में शरीक होते। हज़रत गोसुल आज़म शेख अब्दुल क़ादिर मौहीउद्दीन जिलानी रजी•की शान वो शान है के क्यामत तक आपकी बगैर मोहर के कोई वली नही बन सकता | आपके इजाज़त के बगैर विलायत अता नही हो सकती |
इस मौके पर पीर ज़ादा मौहम्मद उबार हुसैन, पीर ज़ादा मौहम्मद हस्सान , खादिम सुनील कुमार, मौहम्मद इकराम शान ईलाही , फरीद कादरी , फ़ैज़ान उस्मानी आदि उपस्थित रहे ।