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देश एक बड़े परिवर्तन की ओर है

बिलकुल राज्यों के वही मुद्दे, वही स्थिति है जो 1993 या 2003 में थी। प्रख्यात पत्रकार एवं साहित्यकार राजेश बादल जी ने मध्य प्रदेश चुनाव के संदर्भ में कुछ 1993 और 2003 की चुनावी रिपोर्ट्स रखीं तो लगता है कि आज भी वही मुद्दे वही विश्लेषण है, यदि उसी रिपोर्ट को आज अक्षरश: प्रस्तुत कर दिया जाए तो कतई अंतर नहीं आएगा। शत प्रतिशत चुनाव उन्हीं मुद्दों पर हो रहा है, लेकिन लोकसभा की वोटिंग बड़े और अलग मुद्दों पर हो रही है।
देश एक बड़े परिवर्तन की ओर है अभी तक अगर हमने बबूल के पेड़ बोए हैं तो आम तो लगेंगे नहीं। हमने शिक्षा दी है और हुनर छीना है। सबका मकसद नौकरी कर दिया है! मात्र 7.3% नौकरियाँ हैं और हम उसकी लाइन में लगे हैं तो निराशा हाथ लगना स्वाभाविक है, कूट-कूट कर भर दिया गया है कि अंग्रेज़ी बोलने वाले ही पढ़े लिखे हैं और अंग्रेज़ी प्रोडक्ट ही अच्छा है, जो अंग्रेज कहते हैं वही सही है।
युवाओं को समझना होगा कि टाटा से लेकर अंबानी तक सभी ने सफ़र की शुरूआत सड़कों पर ठेला या फेरी लगा कर की है… ‘उत्तम खेती मध्यम बान निषिद्ध चाकरी भीख समान’ यह समझना पड़ेगा और डिग्री आपको कोई भी काम करने से रोकती है तो फाड़ कर फैंकनी होगी। भाषा वही रखनी होगी जो आम आदमी तक पहुँच सके। अंग्रेज़ी झाड़कर रॉब बनाकर या प्रभावी साहित्यिक भाषा में बातकर आम आदमी का जीवन नहीं बदला जा सकता। विलायती बबूल की ज़रूरत उस समय जंगल के लिये ज़मीन घेरने के लिए थी, उसी तरह शिक्षित करने के लिये जो व्यवस्था मिली स्थान दिया विडंबना यह है कि आज़ादी और भ्रष्टाचार के उन्माद में अपनी व्यवस्थायें ध्वस्त हो गयीं और विलायती बबूल के जंगल में हम खो गए और जंगलों से जंगली भी सड़कों पर आ गये। आज सड़कों पर बंदरों का आतंक भी कम नहीं है। छायादार फलदार पेड़ ही लगाने होंगे, विलायती बबूल को अब साफ करने का समय है।
इतिहास के प्रस्तुतिकरण या जो ग़लतियाँ हुई हैं वह सुधारनी होंगी। तुष्टिकरण के मुद्दे, जातिवादी मुद्दे हल करने ही होंगे, इतिहास की गलतियों और उनके दूरगामी परिणामों पर दृष्टि भी रखनी होगी और सुधार भी करना होगा। यह कड़वी अवश्य लगती है और वर्तमान में उथल-पथल भी कर सकती हैं। प्रजातंत्र की प्रक्रिया इसीलिये धीमी है। बिलकुल! यही तो महात्मा गांधी के स्वराज की भावना थी। उसी भावना पर काम हो रहा है बाकी सरकार चलानी है तो राजनीति भी करनी ही होगी। व्यवस्था सुधारने में लंबा समय लगेगा। जनसंख्या क़ानून, एक देश एक क़ानून, एक देश एक चुनाव (स्थानीय निकायों से लेकर राज्य और लोकसभा तक एक साथ) न्याय प्रक्रिया बड़ा सुधार और पुराने एक्ट समाप्त कर समयबद्ध न्याय .. इन्हीं की आशा मोदी जी से है और उसी पर जनता वोट कर रही है, साल 2024 निर्णायक होने वाला है।
पूरन डावर : सामाजिक चिंतक एवं विश्लेषक