राहुल के हाथ ज्यादा मत और मोदी के साथ सत्ता की रेल
चुनाव चुनौती होते हैं और परिणाम चमत्कार करते हैं। चार राज्यों के नतीजे ने हैरान परेशान किया और उलझन भरी एक पहेली की सौगात भी नेता, जनता और राजनैतिक पंडितो के सामने परोस दी जिससे पार पाने की जुगत में सब उलझे जान पड़ते है। क्यों ऐसा हुआ कि ज्यादा वोट हासिल कर भी कांग्रेस कम कुर्सी ही समेट सकी और कम मत पा कर भी भाजपा सत्ताधारी बन गई? यह चुनाव सच में जितने आसान दिख रहे थे एक तो इतने आसान नहीं थे दूसरे कांग्रेस इन चुनाव में सत्ता से दूर होकर भी जन मन में पहले से ज्यादा भरोसेमंद, उम्मीद से भरी और मजबूत बन कर निखरी है जबकि दूसरी ओर सत्ता के शीर्ष पर काबिज़ होकर भी भाजपा सवालों के घेरे में घिरी खड़ी है आखिर क्यों?
क्या जनमन आज अपने ही सवालों से आँखें मूंद कतारों में खड़ा हो मत दे सत्ता उसे हंसी खुशी सौंपने की राह पर बढ़ रहा है जो उसी के राह की मुश्किलें हैं। महंगाई, सम्मान, रोजगार, नारी सुरक्षा क्या ये महज प्रचारी नारों तक सिमटे शब्द महज बन कर रह गए हैं। जिनका जमीनी अर्थ मतदाता के मन में न असर, न घर कर पा रहा है। क्या 750 किसानों की मौत का मातम, सोना जीतने वाली बेटियों के सीने पर बूट, आदिवासियों के मुुँह पर मूत्रपात और सरकारी कर्मचारियों को उनका हक ओपीएस का खुलेआम विरोध जैसी घटनाओं का असर दम तोड़ गया है, शायद नहीं इसका जवाब साफ है कांग्रेस ने जनहित में जो मुद्दे उठाए भले ही उनके सहारे वो कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए पर कुर्सी हथियाने वाली भाजपा से ज्यादा वोट आज कांग्रेस के हाथ में है जो उसको जन मन का दल बनाती है।
चार राज्यों में हुए चुनाव के मतों के मंथन के बाद जो नतीजे सामने हैं उन्हें भाजपा में चार राज्यों में जबरदस्त प्रचार, मंत्रियों को मैदान में उतार और प्रधानमंत्री का धुआंधार अंदाज, धनबल-जन बल की भरमार के बावजूद फूल निशान को चार राज्यों के चुनावों में कुल 4,81,29,325 वोट ही हासिल हुए, जबकि कांग्रेस के पास राहुल और प्रियंका की अथक मेहनत के अलावा प्रचारकों की भारी कमी, साधनों संसाधनों में भी कांग्रेस बीजेपी के पीछे नजर आई। इसके बावजूद जनता के दिल में कांग्रेस असरदार जगह बना पाई। नतीजा 4,90,69,400 वोट बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस को मिले जो फूल से 9,40,137 वोट ज्यादा हैं। ये आंकड़े इस बात की तसदीक करते हैं कि देश में कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा चाहने वालों की संख्या है जिससे यह भी संदेश जन जन तक सहजता से जाता है कि महंगाई, बेरोजगारी, बृजभूषण का अत्याचार और टैनी की थार आज भी लोगों को झकझोर रहे हैं। लोग आज भी इन मुद्दों के साथ कांग्रेस का हाथ थामे मजबूती से खड़े हैं। कांग्रेस को जिताने और भाजपा को हराने की इच्छा ज्यादा लोगों के मन में आज भी प्रबल है। वोट ज्यादा बटोरने के बाद भी कुर्सी कांग्रेस से भाजपा खींच ले गई यह कैसा खेल हुआ? कारण बेहद स्पष्ट है भाजपा ने अपने वोट एकजुट कर बटोरे रखे और कांग्रेस के साथी उसके वोट में सेंध लगाने पर आमादा दिखे। सपा, आप और बसपा का मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ना एक बहुत बड़ा वोट कटवा साबित हुआ इन दलों की चुनाव लड़ने को जिद्द ने कांग्रेस की करारी हार और बीजेपी की शानदार जीत की राह बनाई।
मध्य प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने 70 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा, समाजवादी पार्टी में 46 सीटों पर और जो परिणाम आए वह करीबी मुकाबले वाली सीटों पर जीत हार के अंतर से ज्यादा वोट साइकिल, झाड़ू, हाथी के खाते में चला गया। जिसके कारण कांग्रेस का हाथ कमजोर हो हार गया और आम आदमी को दिल्ली में रगड़ने वाली भाजपा जीत गई। इन चुनाव ने आम आदमी पार्टी की कलई खोल कर रख दी कि उसका विजय अभियान अभिमान के कारण अब और न बढ़ पाएगा। मध्य प्रदेश में कुल 0.54 फीसदी वोट ही झाड़ू समेट पाई, समाजवादी की साइकिल 0.46 जबकि जनता दल यूनाइटेड तो बुरी तरह धराशाई हो तीर पर सिर्फ 0.2% वोट ही टांग पाई, हालांकि हाथी के हिस्से 3.40 फीसदी वोट रहा यही वोट काट की रणनीति में फंसा बीजेपी मध्य प्रदेश में कांग्रेस को हरा इन क्षेत्रीय दलों को आईना दिखा विश्वासघात भी साबित करने में सफल हो गई।
मध्य प्रदेश में पिछली बार कांग्रेस को 40.89 फीसदी वोट मिले वहीं इस बार मामूली अंतर के साथ 40.40 फीसदी वोट कांग्रेस ने अपनी झोली में समेटे रखा। सपा, बीएसपी, आप, जदयू को मिलाकर तकरीबन 6% वोट मिले जो कम वोट और कुर्सी ज्यादा की कहानी बना बीजेपी की जीत की अनचाहे सारथी बन चुनावी रण में लड़ते दिखाई दिए और खाता भी न खोल पाए। भले ही इनके हाथ में एक भी सीट हासिल नहीं हो पाई लेकिन कांग्रेस की वापसी की राह बंद करने में यह कामयाब हो ही गए। यही हाल छत्तीसगढ़ का भी है जहाँ आप को 0.53, सपा को 0.4 और बीएसपी को 2.5% वोट प्राप्त कर बिना खाता खोले खामोश होना पड़ा। जबकि राजस्थान में एक सीट आईएनएलडी, भारत आदिवासी पार्टी तीन और बीएसपी को दो सीट कांग्रेस का प्रबल विरोध कर भाजपा की प्रचंड आंधी के सहायक बनी। इंडिया गठबंधन के नेताओं को इस 24 के महामुकाबले से पहले हुए इन चुनावों में भाजपा के विरोध में अगर कांग्रेस का साथ देते तो तस्वीर कुछ अलग कुछ जुदा होती और 24 की राह कुछ आसान नजर जरूर आती। अखिलेश को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आधा प्रतिशत वोट भी नहीं मिले लेकिन अखिलेश की जिद्द ने कांग्रेस को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। केजरीवाल की झाड़ू भी बीजेपी की जीत की सहायक ही बनी एमपी में झाड़ू को 0.54 और छत्तीसगढ़ में 0.93 दोनों राज्य मिलाकर डेढ़ फीसदी से भी कम वोट पड़े लेकिन यह हाथ को मरोड़ कमल को खिलाने के कारगर हथियार जरूर बने। केजरीवाल अखिलेश, नितीश, लालू अगर गठबंधन धर्म निभाने और भाजपा को हराने का आह्वान करते तो कांग्रेस के खाते में ज्यादा वोट आते। इंडिया गठबन्धन की मुख्य पार्टी कांग्रेस यह चुनाव भाजपा से नहीं हारती कांग्रेस भले ही तीन राज्यों में कुर्सी नहीं बचा पाई पर वोट बढ़ा उसने 24 की जंग में जमीनी मुद्दे महिला सुरक्षा, बेरोजगार, युवा, किसान, भ्रष्टाचार के नारों को जिंदा रखा है, इन जनहित के वजूद को बचा रखा है। यह सच मायने में कांग्रेस की कुर्सी ना मिलने के बाद भी एक बड़ी जीत है। जनता आज भी भाजपा से ज्यादा कांग्रेस के पक्ष में खड़ी दिखाई दे रही है। काश केजरीवाल, अखिलेश और विपक्ष के नेता इस चुनावी परिणाम को समझ मंथन चिंतन कर पाते कि विरोध के बजाय कांग्रेस के साथ खड़े हो तो जनता के मुद्दे जीत जाएंगे। जनता तो पहले ही कांग्रेस का हाथ मजबूती से थामे खड़ी है ये परीक्षा की घड़ी है विपक्ष को सोचना ही पड़ेगा।
पंडित संदीप मिश्रा