संवाद/विनोद मिश्रा
बांदा। अगर इरादे मजबूत हों तो मुश्किल हालात भी घुटने टेक देते हैं। सफलता कदम चूमती है। कुछ ऐसा ही गोमती नें कर दिखाया है। उन्होंने कोरोना काल जैसे खराब दौर को अवसर में बदल सफलता को आँचल में भर लिया। स्वयं सहायता समूह बनाकर गांव में ही साबुन उत्पादन की शुरुआत की। रोजगार की डगर बना ली। 15 हजार से हुई शुरुआत प्रतिवर्ष 20 लाख रुपये के टर्नओवर में पहुंच गई है। उन्होंने साबुन के झाग से खुद के गरीबी के दाग तो धुले ही, 25 अन्य महिलाओं को भी रोजगार देकर आर्थिक संबल दिया है।
यह हकीकत बबेरू क्षेत्र के भभुवा गांव निवासी गोमती की है। वह ज्यादा शिक्षित नहीं हैं, पर हौसले की धनी साबित हुई हैं। उनके पति कमलेश मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करते थे। घर में तीन-तीन बच्चों व परिवार का चलाना मुश्किल हो गया। गोमती ने इस समस्या से निजात पाने की सोची और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अफसरों से संपर्क कर गुलाब समूह गठित किया। 10 महिलाओं को जोड़कर 15 हजार रुपये का अनुदान लेकर नहाने व कपड़े धोने का साबुन बनाने लगीं। जिले के अन्य समूहों के माध्यम से साबुन की बिक्री शुरू की। श्री ब्रांड के इस साबुन ने गुणवत्ता के कारण कुछ ही दिन में बाजार में पकड़ बना ली।
सरस मेला, कृषि विश्वविद्यालय गोष्ठी और अन्य कई जगह स्टाल में उनके साबुन को सराहा गया। करीब ढाई वर्ष में उनका रोजगार अच्छी स्थिति में पहुंच गया है। गोमती के मुताबिक, वह खुद कानपुर से साबुन बनाने की सामग्री लाती हैं। वर्तमान में साबुन कारखाने में 25 महिलाएं जुड़ी हैं। उन्हें प्रतिमाह 15 से 20 हजार रुपये देती हैं। महिलाएं साबुन बनाने के बाद स्टालों में बिक्री करने में मदद करके पांच से छह हजार रुपये प्रतिमाह कमा लेती हैं।