राजस्थान

विश्वविद्यालय में हुआ सामूहिक परिचर्चा का आयोजन

संवाद। मो नज़ीर क़ादरी

अजमेर। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय परिसर के संकुल भवन में संचालित हिंदी विभाग में शुक्रवार को सामूहिक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं व साहित्यकारों के व्यक्तित्व कृतित्व पर मंथन किया गया। विभाग में संकाय सदस्य अतिथि शिक्षकों ने विद्यार्थियों को मार्गदर्शन प्रदान किया। इस मौके पर विभाग की प्रभारी डॉ. दीपिका उपाध्याय ने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य का सरोकार सदैव आम जन से रहा है। विद्यार्थियों के लिए ऐसे आयोजन से चिंतन व सृजनात्मकता का विकास होता है। नवीन जानकारियां मन में जिज्ञासा का भाव उत्पन्न करती हैं, जो साहित्यिक जुड़ाव की ओर अग्रसर करती हैं ।

अतिथि शिक्षक डॉ. नेमीचंद तंबोली ने अपने उदबोधन में कहा कि विचार शक्ति का उदभव समूह परिचर्चा से सरल बन पड़ता है। विभिन्न नवीन विचारों व नवाचारों से पाठ्यक्रम के साथ ही साहित्य के प्रति रुचि बढ़ती हैं। साहित्यिक अवदान व विशेष विषय वस्तु के ज्ञान में इजाफा करने के लिए ऐसा आयोजन वर्तमान की आवश्यकता है।उन्होंने महाकवि तुलसीदास का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके जीवन में आए एक मोड़ ने उन्हें तुलसीदास से गोस्वामी तुलसीदास बना दिया था।

अतिथि शिक्षक सुश्री चंचल मेहरा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि समूह में चर्चा से विद्यार्थियों को अपनी प्रतिभा पहचानने का अवसर मिलता है, वर्तमान में विद्यार्थियों में रटन्त प्रवृत्ति के चलते उनकी विचार शक्ति में कमी होती जा रही है। कक्षा कक्ष में ऐसी सामूहिक परिचर्चा के आयोजन विषय की समझ विकसित करते हैं। उन्होंने कहा कि निरन्तर अभ्यास से प्रतिभा में निखार आता हैं,कहा भी गया हैं कि करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। इस साहित्यक परिचर्चा में एम.ए. पूर्वार्द्ध के विद्यार्थी जगमाल गुर्जर, कमल किशोर,रमेश साल्वी, पीयूष सोनी,सीमा कंवर एम. ए. उत्तरार्द्ध के किरण कंवर राठौड़ ,अर्चना दामेर ,किरण फुलवारी ,कमल ढाबरिया तथा प्रिया खींची ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की शुरुआत चंचल मेहरा द्वारा सुश्री चंचल मेहरा गायत्री मंत्र से करवाई।