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ये संसद है साहेब सवालों की सजा मिलेगी

नए निजाम का नया फरमान
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर का तमाशा दुनिया देखकर दंग है। यह कैसी पंचायत है जिसमें पंचों के बोलने पर तालाबंदी है, सवालों की घेराबंदी है और विपक्ष पर प्रतिबंध का वार हथियार है। यह संसद का नया रूप स्वरूप है जिसमें दीवारें चमकदार तो होंगी पर भीतर का खोखलापन पोल खोल देगा वो बनावटीपन का दिखावा चमकती दीवारों को चीर बाहर झांकेगा और ठहाके लगा लगा कर बोलेगा देखो ये दिवारें खोखली हैं, तानाशाही है। इस नए सदन के नए रूप में बात चाहे संस्कारों के तार तार करने की हो या फिर सुरक्षा घेरे के टूट जाने की, जहरीली जुबान भले ही पक्ष की हो तो भी विपक्ष दोषी, पूरे संसद के घेरे में सुरक्षा तोड़ने वालों का पास भले ही पक्ष के सांसद ने बांटा हो तो भी विपक्ष ही दोषी, विपक्ष जवाब मांगने सवाल उठाने पर भी दोषी, मुद्दा उठाने पर भी दोषी, नारा लगाने पर भी और स्लोगन लिखने पर भी विपक्ष ही दोषी मतलब साफ गुनाह कोई भी करे गुनाहगार विपक्ष ही होगा। हालात ये है कि सत्ताशीनो की नजर में विपक्ष इतना गिर गया है कि हर सवाल का जवाब बाहर का रास्ता दिखा जबरिया बाहर भेजना ही शेष बचा है इस एकमात्र विकल्प के कारण बाहर जाने वालों की संख्या सत्ता के हनक सनक के कारण अब तक 141 तक आ पहुँची है, उम्मीद है ये और आगे भी बढ़ेगी। यह नए निजाम के फरमान में फलता फूलता भारत है जिसमें दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत में बोलना आवाज उठाना सवाल पूछना मना है इस तानाशाही को आज देश भी देख रहा है दुनिया भी देख रही है। नए रंग रूप के नए नवेले नुकीले शेर तले भव्य भवन के पहले ही सत्र में सत्ता के मलाई से डबडबाई जहरीली जुबान वाले सांसद ने अपने ही विपक्ष के साथी सांसद को उनके धर्म मजहब में भिन्नता के कारण भारी संसद में जब हर नजर संसद पटल पर टिकी थी तभी वो आतंकवादी... वो... वो... जैसी जहरीली बेखौफ आवाज सुन अवाक् रह गये यह भारत की गरिमा का कत्ल था यह सत्ता का नशा और निजाम को रिझाने की हसरत का असर था जो सर चढ़कर रमेश बिधूड़ी के बोल रहा था। जिनकी बोली ने नेहरू पटेल से लेकर वाजपेयी तक की परंपरा को जमींदोज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संस्कारी पार्टी के संस्कार सुन सदन सन्न रह गया, दुनिया हैरान और विपक्षी सांसद के आँखों में से अपमान भरे आँसुओं की धार बह निकली। कोई कैसे उसके ही देश में सबसे बड़ी पंचायत में चुनकर आए व्यक्ति को सदन में आतंकवादी बोल भद्दी-भद्दी गाली सदन में सरेआम दे सकता है और सत्ता के लोग रोकने के बजाय हंसते मुस्कुराते रहे। लोग सोच रहे थे यह बात प्रधानमंत्री मोदी जी को बर्दाश्त नहीं होगी वो तो सबका साथ, सबका विकास का नारा बुलंद करते हैं लेकिन मोदी पर भरोसा करने वालों की उम्मीद पर पानी फिर गया सांसद रमेश पर इस कुकृत्य के लिए कहा तो सजा तय करनी चाहिए थी कहां भारतीय जनता पार्टी ने उनका प्रमोशन कर चुनाव जीतने की जिम्मेदारी दे जहरीली जुबान को वरदान दे दिया। इस नई नवेली संसद के पहले सत्र में संस्कार की बलि चढ़ी तो दूसरे सत्र में इस महान भवन सुरक्षा के खोट की चोट से हरा सदन पीले पीले धुएं में बदल गया। उसके बाद बलशाली सांसदों की धुआंधार लात घूंसो की बरसात भी हमने आपने देखी। आपातकाल में जुवावीर फाइटरो ने घुसे लात की बौछार कर जगजाहिर कर दिया की सुरक्षा में सांसदों को अब जाने अंजाने आत्मनिर्भर होना ही पड़ेगा। जिंदा रहना है तो संसद में घुसने वालों को खुद ही पकड़ना, खुद ही पीटना, खुद ही सजा देना पड़ेगा तभी संसद के भीतर सासंद सुरक्षित बैठ पाएंगे? वह बात अलग है लाख जतन कर जान बचाने वाले फिर भी सवाल नहीं पूछ पाएंगे। इस बार जो संसद के भूतपूर्व सुरक्षा घेरे को छेड़ कर जो भी युवक रोटी रोजगार की मांग लेकर सदन में घुस आवाज उठा रहे थे पीला पीला धुंआ फैला रहे थे वह भी बीजेपी के ही सांसद के पास से संसद में दाखिल हो संसद का तमाशा बना दुनिया को दिखा दिया कि भारत के संसद में सांसद सुरक्षित नहीं है। दुर्भाग्यवश इस बार भी बीजेपी के सांसद ही सवालों के घेरे में घिरे रहे बजाय दोषी संसद को सजा मिलती सजा उन्हें एक-एक कर उन्हें नाम ले ले कर सुना दी गई जिनका आग्रह बस इतना था कि संसद को गृह मंत्री संबोधित करें भरोसे में लें बताएं कि क्यों संसद की पहरेदारी में चौकीदारी में हो गई खौफनाक चूक? हैरान करता है यह फैसला जो बोले वही बाहर, सांसदों के जुबान पर पहरा संसद के भीतर लगेगा तो देश की बात आखिर करेगा कौन? सवालों के बौछार से डरने वाली सरकार जवाब देने के बजाय सवाल करने वालों पर ही कार्रवाई करने लगेगी तो लोकतंत्र बचेगा कैसे? इस नई सदन के दो ही सत्र में तीन दागदार कीर्तिमान गढ़ दिए जिनमें एक रमेश बिधुड़ी की बदजुबानी, दो सुरक्षा में सेंध मार सदन में धुंआ धुंआ करने वाले जवान और तीसरा सांसदों की बर्खास्तगी का नया कीर्तिमान बना दिया। हर सांसद अपने क्षेत्र की सरकार होता है, लोगों की उम्मीद भरोसा जिम्मेदार और जवाबदेह भी, सरकार अगर सांसदों के मुँह पर सरकारी ताला जड़ इस बेरहमी से खामोश करती है जो जनता की जुबान काटने जैसा है। काश ये बात सरकार को समझ आ जाती काश सरकार समझ जाती कि कोई भी सरकार सदा सदा के लिए नहीं होती, कोई भी सरकार खुद से नहीं चुनी जाती और कोई भी सरकार बिना जनता के मत के सत्ता पर काबिज हो ही नहीं सकती और जनता की आवाज छीन जनता के बीच वोट मांगने कैसे जाओगे? यह तो सोच रही होगा।

पंडित संदीप मिश्र