संवाद -विनोद मिश्रा
बांदा। बुंदेलखंड की भीषण गर्मी में यहां पैदा होने वाला देसी टमाटर तेज धूप के चलते अपनी रंगत और स्वाद दोनों खो देता है। ऐसे में किसानों को टमाटर की खेती का लाभ भी नहीं मिल पाता। इसी को देखते हुए केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना के पंजाब छुहारा प्रजाति के टमाटर को बुंदेलखंड में विकसित करने के लिए रिसर्च कर रहा है। वैज्ञानिकों का दावा है कि जल्द ही बुंदेलखंड की जलवायु के अनुसार पंजाब छुहारा टमाटर यहां के किसान भी उगा सकेंगे।
बुंदेलखंड में मार्च, अप्रैल और मई माह में देसी टमाटर की खेती की जाती है। लेकिन, अक्सर ही यह खेती तेज गर्मी में नुकसान का सौदा साबित होती है।
गर्मी के दिनों में देसी टमाटर के सामने बाजार में जब लुधियाना से पंजाब छुहारा और बंगलूरू का टमाटर आता है तो यहां के टमाटर की रंगत फीकी पड़ जाती है। चूंकि, यहां गर्मी अधिक है तो ऐसे में यहां के किसान पंजाब छुहारा और बंगलूरू का टमाटर नहीं उगा पाता है। किसानों की इसी समस्या को दूर करने के लिए कृषि विश्वविद्यालय ने अब पंजाब छुहारा टमाटर की प्रजाति को बुंदेली जलवायु के अनुरूप विकसित करने पर शोध हो रहा है।
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि देसी टमाटर का छिलका पतला होने के चलते वह दो से तीन दिन में खराब हो जाता है। वहीं, पंजाब छुहारा प्रजाति के टमाटर का छिलका मोटा होता है, जो एक सप्ताह तक आसानी से रखा जा सकता है। जहां देसी टमाटर का बाजार भाव 15 से 20 रुपये होता है, वहीं पंजाब छुहारा के लिए प्रति किलो 25 से 30 रुपये मिल जाते हैं।
जल्द ही बुंदेलखंड के लिए पंजाब छुहारा टमाटर विकसित कर लेंगे।